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सही समय पर इलाज से सामान्य जीवन जी सकते हैं मिर्गी पीड़ित

मिर्गी की बीमारी, दूसरी बीमारियों जैसी ही है लेकिन हमारे देश में ना सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी इस रोग को लेकर काफी अंधविश्वास तथा मिथक व्याप्त हैं. जिसका नतीजा है कि सही इलाज और सही समय पर इलाज मिलना तो दूर, मिर्गी रोगियों को सामान्य जीवन में भी सामाजिक भेदभावों व समस्याओं का सामना करना पड़ता है. न सिर्फ मिर्गी को लेकर फैले अंधविश्वास को मिटाने बल्कि इस रोग के इलाज तथा मिर्गी पीड़ितों की देखभाल को लेकर लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से देश में 17 नवंबर को राष्ट्रीय मिर्गी दिवस मनाया जाता है.

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राष्ट्रीय मिर्गी दिवस
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Published : Nov 17, 2021, 5:00 AM IST

वर्ष 2019 के इंडियन एपिलेप्सी एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में करीब 5 से 6 करोड़ लोग मिर्गी से पीड़ित थे. वहीं कुछ अन्य आंकड़ों की मानें तों वर्तमान समय में सिर्फ भारत में 1.20 करोड़ लोग मिर्गी की बीमारी से ग्रसित हैं. एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान समय में हमारे देश में औसतन प्रति हजार में से 5-6 लोग इस रोग से पीड़ित हैं. वहीं इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष दुनिया भर में लगभग 25 लाख लोग इस रोग की चपेट में आ जाते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि इस गंभीर समस्या से जुड़े आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं.

यहां यह भी जानना जरूरी है कि मिर्गी पीड़ितों को यदि समय पर उचित उपचार मिल जाए तो रोगी पूरी तरह ठीक होकर सामान्य जीवन जी सकतें हैं. लेकिन विडंबना यह है कि भारत में मिर्गी के 70 फीसदी रोगियों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार उचित इलाज ही नहीं मिल पाता है. ऐसे में 17 नवंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय मिर्गी दिवस एक मौका है, इस रोग तथा उसके उपचारों को लेकर गांव-गांव, शहर-शहर तक लोगों को जागरूक करने का.

क्या है मिर्गी और इसके कारण व लक्षण

मिर्गी एक ऐसा रोग है जो हमारे तांत्रिका तंत्र की आवृत्तियों में बाधा उत्पन्न होने की वजह से होता है. इस न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर में दिमाग में असामान्य तरंगें पैदा होने लगती हैं जिसके चलते पीड़ित को बार-बार दौरे पड़ने लगते हैं. इस रोग की गंभीरता इस बात से आंकी जा सकती है कि यदि सही समय पर इस समस्या का उपचार ना करवाया जाए तो यह आपके मस्तिष्क को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.

मिर्गी के कारणों की बात करें तों 15 से 50 साल के लोगों में मिर्गी का सबसे आम कारण न्यूरोसाइटिस्टेरोसिस होता है. वहीं इसके कारणों में आनुवंशिकता भी शामिल है. आमतौर पर मिर्गी के लक्षण 5 से 20 की उम्र में दिखने लगते हैं. लेकिन कई बार चिकित्सीय या किसी दुर्घटना के चलते बाद में भी मिर्गी के लक्षण नजर आ सकते हैं, जैसे गिरने से सिर पर गहरी चोट लग जाना, स्ट्रोक, ब्रेन ट्यूमर, डिमेंशिया और अल्जाइमर्स जैसी बीमारियां, मेनिन्जाइटिस, जन्मजात मानसिक समस्याएं, भावनात्मक दबाव व नींद की कमी, तथा मस्तिष्क की रक्त कोशिकाओं में असामान्यता आदि.

मिर्गी के लक्षण आमतौर पर इस बात पर निर्भर करते हैं कि मस्तिष्क का कौन-सा भाग इससे प्रभावित हुआ है और यह गड़बड़ी किस तरह से मस्तिष्क के बाकी भागों में फैल रही है. इसलिए इस रोग के अलग-अलग लोगों में अलग अलग लक्षण नजर आ सकते हैं. मिर्गी के सबसे प्रमुख लक्षणों में दौरों के अलावा शरीर की गति में बदलाव, भावनात्मक बदलाव, चाल गड़बड़ा जाना, देखने, सुनने और स्वाद को पहचानने में गड़बड़ी और और बेहोशी जैसे लक्षण शामिल हैं.

पढ़ें: मस्तिष्क क्षति या स्ट्रोक में तुरंत उपचार जरूरी

मिर्गी से जुड़े मिथक

मिर्गी के दौरे के दौरान रोगी का शरीर अकड़ जाता है और मुंह से झाग आने लगता है. हमारे देश में इन्ही लक्षणों के चलते मिर्गी को लेकर लोगों में बहुत से मिथक और भ्रांतियां फैली हुई हैं. जिनमें से सबसे प्रमुख है भूतप्रेत का प्रभाव. हमारे देश में आज भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मिर्गी के मरीज को डॉक्‍टर के पास ले जाने की बजाय भूत झाड़ने वाले बाबाओं के पास ले जाना ज्यादा उचित समझते हैं. यही नहीं कई बार लोग मिर्गी के मरीजों को पागल तक करार दे देते हैं.

मिर्गी को लेकर देश में व्याप्त कुछ प्रचलित भ्रांतिया तथा उससे जुड़े तथ्य इस प्रकार हैं.

मिथक : मिर्गी से पीड़ित लोग पागल होते हैं.

तथ्य : चूंकि मिर्गी न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है इसलिए दौरे के दौरान तंत्रिकाएं तथा मस्तिष्क से जुड़ी कोशिकाएं कुछ समय के लिए प्रभावित हो जाती हैं, जिससे मरीज की भावना, उत्‍तेजना और व्‍यवहार बदल जाता है. लेकिन मिर्गी पीड़ित पागल नही होते हैं. दौरे से उबरने के बाद ज्यादातर पीड़ित सामान्य व्यवहार करते हैं.

मिथक : मिर्गी के सभी मामलों में रोगी का शरीर ऐंठ जाता है.

तथ्य : मिर्गी के दौरे के कई प्रकार होते हैं. जिनमें पीड़ित में दौरे के अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं. मिर्गी के दौरे के दौरान सभी मामलों में रोगी के शरीर में ऐंठन के लक्षण नजर नहीं आते हैं.

मिथक : मिर्गी का रोगी आजीवन दूसरे लोगों पर निर्भर हो जाता है.

तथ्य : उचित इलाज और सावधानियों के साथ मिर्गी रोगी एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं. और आमतौर पर उन्हें अपने कार्यों के लिए किसी और पर निर्भर रहने की जरूरत नही पड़ती है. लेकिन फिर भी पीड़ितों के तथा उनके आसपास रहने वाले उनके परिजनों तथा दोस्तों को भी तमाम जरूरी सावधानियां बरतने की जरूरत होती है.

मिथक : मिर्गी का दौरा पड़ते समय रोगी का मुंह जोर से दबाना चाहिए, और उसे चप्पल सुंघानी चाहिए.

तथ्य : दौरा पड़ने की अवस्था में मिर्गी के रोगी या उसके मुंह को कभी भी जोर से पकड़ना या दबाना नहीं चाहिए, बल्कि उसके मुंह को सीधा रखना चाहिए. उसके कपड़ों को ढीला कर देना चाहिए. उसके मुंह में कुछ भी डालने का प्रयास नहीं करना चाहिए. आम तौर पर मिर्गी का दौरा 5 मिनट तक रहता है. अगर इससे अधिक रहता है तो उसे तुरंत अस्‍पताल ले जाएं.

मिथक : मिर्गी के रोगी शादी के लिए अयोग्‍य होते हैं.

तथ्य: उचित उपचार के साथ महिला हो या पुरुष , एक सामान्‍य जीवन जी सकते हैं. मिर्गी या उसकी दवाएं प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं करती हैं. यहां तक की महिलायें गर्भावस्था के दौरान चिकित्सक की देखरेख में अपनी दवाई ले सकती हैं और सामान्य महिला की भांति बच्चे को जन्म दे सकती हैं.

पढ़ें : आयुर्वेद से करें मिर्गी के दौरों का उपचार

वर्ष 2019 के इंडियन एपिलेप्सी एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में करीब 5 से 6 करोड़ लोग मिर्गी से पीड़ित थे. वहीं कुछ अन्य आंकड़ों की मानें तों वर्तमान समय में सिर्फ भारत में 1.20 करोड़ लोग मिर्गी की बीमारी से ग्रसित हैं. एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान समय में हमारे देश में औसतन प्रति हजार में से 5-6 लोग इस रोग से पीड़ित हैं. वहीं इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष दुनिया भर में लगभग 25 लाख लोग इस रोग की चपेट में आ जाते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि इस गंभीर समस्या से जुड़े आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं.

यहां यह भी जानना जरूरी है कि मिर्गी पीड़ितों को यदि समय पर उचित उपचार मिल जाए तो रोगी पूरी तरह ठीक होकर सामान्य जीवन जी सकतें हैं. लेकिन विडंबना यह है कि भारत में मिर्गी के 70 फीसदी रोगियों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार उचित इलाज ही नहीं मिल पाता है. ऐसे में 17 नवंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय मिर्गी दिवस एक मौका है, इस रोग तथा उसके उपचारों को लेकर गांव-गांव, शहर-शहर तक लोगों को जागरूक करने का.

क्या है मिर्गी और इसके कारण व लक्षण

मिर्गी एक ऐसा रोग है जो हमारे तांत्रिका तंत्र की आवृत्तियों में बाधा उत्पन्न होने की वजह से होता है. इस न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर में दिमाग में असामान्य तरंगें पैदा होने लगती हैं जिसके चलते पीड़ित को बार-बार दौरे पड़ने लगते हैं. इस रोग की गंभीरता इस बात से आंकी जा सकती है कि यदि सही समय पर इस समस्या का उपचार ना करवाया जाए तो यह आपके मस्तिष्क को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.

मिर्गी के कारणों की बात करें तों 15 से 50 साल के लोगों में मिर्गी का सबसे आम कारण न्यूरोसाइटिस्टेरोसिस होता है. वहीं इसके कारणों में आनुवंशिकता भी शामिल है. आमतौर पर मिर्गी के लक्षण 5 से 20 की उम्र में दिखने लगते हैं. लेकिन कई बार चिकित्सीय या किसी दुर्घटना के चलते बाद में भी मिर्गी के लक्षण नजर आ सकते हैं, जैसे गिरने से सिर पर गहरी चोट लग जाना, स्ट्रोक, ब्रेन ट्यूमर, डिमेंशिया और अल्जाइमर्स जैसी बीमारियां, मेनिन्जाइटिस, जन्मजात मानसिक समस्याएं, भावनात्मक दबाव व नींद की कमी, तथा मस्तिष्क की रक्त कोशिकाओं में असामान्यता आदि.

मिर्गी के लक्षण आमतौर पर इस बात पर निर्भर करते हैं कि मस्तिष्क का कौन-सा भाग इससे प्रभावित हुआ है और यह गड़बड़ी किस तरह से मस्तिष्क के बाकी भागों में फैल रही है. इसलिए इस रोग के अलग-अलग लोगों में अलग अलग लक्षण नजर आ सकते हैं. मिर्गी के सबसे प्रमुख लक्षणों में दौरों के अलावा शरीर की गति में बदलाव, भावनात्मक बदलाव, चाल गड़बड़ा जाना, देखने, सुनने और स्वाद को पहचानने में गड़बड़ी और और बेहोशी जैसे लक्षण शामिल हैं.

पढ़ें: मस्तिष्क क्षति या स्ट्रोक में तुरंत उपचार जरूरी

मिर्गी से जुड़े मिथक

मिर्गी के दौरे के दौरान रोगी का शरीर अकड़ जाता है और मुंह से झाग आने लगता है. हमारे देश में इन्ही लक्षणों के चलते मिर्गी को लेकर लोगों में बहुत से मिथक और भ्रांतियां फैली हुई हैं. जिनमें से सबसे प्रमुख है भूतप्रेत का प्रभाव. हमारे देश में आज भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मिर्गी के मरीज को डॉक्‍टर के पास ले जाने की बजाय भूत झाड़ने वाले बाबाओं के पास ले जाना ज्यादा उचित समझते हैं. यही नहीं कई बार लोग मिर्गी के मरीजों को पागल तक करार दे देते हैं.

मिर्गी को लेकर देश में व्याप्त कुछ प्रचलित भ्रांतिया तथा उससे जुड़े तथ्य इस प्रकार हैं.

मिथक : मिर्गी से पीड़ित लोग पागल होते हैं.

तथ्य : चूंकि मिर्गी न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है इसलिए दौरे के दौरान तंत्रिकाएं तथा मस्तिष्क से जुड़ी कोशिकाएं कुछ समय के लिए प्रभावित हो जाती हैं, जिससे मरीज की भावना, उत्‍तेजना और व्‍यवहार बदल जाता है. लेकिन मिर्गी पीड़ित पागल नही होते हैं. दौरे से उबरने के बाद ज्यादातर पीड़ित सामान्य व्यवहार करते हैं.

मिथक : मिर्गी के सभी मामलों में रोगी का शरीर ऐंठ जाता है.

तथ्य : मिर्गी के दौरे के कई प्रकार होते हैं. जिनमें पीड़ित में दौरे के अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं. मिर्गी के दौरे के दौरान सभी मामलों में रोगी के शरीर में ऐंठन के लक्षण नजर नहीं आते हैं.

मिथक : मिर्गी का रोगी आजीवन दूसरे लोगों पर निर्भर हो जाता है.

तथ्य : उचित इलाज और सावधानियों के साथ मिर्गी रोगी एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं. और आमतौर पर उन्हें अपने कार्यों के लिए किसी और पर निर्भर रहने की जरूरत नही पड़ती है. लेकिन फिर भी पीड़ितों के तथा उनके आसपास रहने वाले उनके परिजनों तथा दोस्तों को भी तमाम जरूरी सावधानियां बरतने की जरूरत होती है.

मिथक : मिर्गी का दौरा पड़ते समय रोगी का मुंह जोर से दबाना चाहिए, और उसे चप्पल सुंघानी चाहिए.

तथ्य : दौरा पड़ने की अवस्था में मिर्गी के रोगी या उसके मुंह को कभी भी जोर से पकड़ना या दबाना नहीं चाहिए, बल्कि उसके मुंह को सीधा रखना चाहिए. उसके कपड़ों को ढीला कर देना चाहिए. उसके मुंह में कुछ भी डालने का प्रयास नहीं करना चाहिए. आम तौर पर मिर्गी का दौरा 5 मिनट तक रहता है. अगर इससे अधिक रहता है तो उसे तुरंत अस्‍पताल ले जाएं.

मिथक : मिर्गी के रोगी शादी के लिए अयोग्‍य होते हैं.

तथ्य: उचित उपचार के साथ महिला हो या पुरुष , एक सामान्‍य जीवन जी सकते हैं. मिर्गी या उसकी दवाएं प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं करती हैं. यहां तक की महिलायें गर्भावस्था के दौरान चिकित्सक की देखरेख में अपनी दवाई ले सकती हैं और सामान्य महिला की भांति बच्चे को जन्म दे सकती हैं.

पढ़ें : आयुर्वेद से करें मिर्गी के दौरों का उपचार

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