चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम एक कृषि प्रधान जिला है जहां 60 प्रतिशत से भी अधिक आदिवासी बहुल जनजाति निवास करती है. यह जिला पूरी तरह से कृषि पर ही निर्भर है. लेकिन बदलते मौसम और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इस बार भी मानसून देर से आई. लेकिन आई भी तो इतनी रफ्तार से कि यहां के किसानों को अपना फसल बर्बाद होने का डर सताने लगा है.
बता दें कि चाईबासा जिले के अंतर्गत कुल 18 प्रखंड आते हैं, जिसमें से एशिया के सबसे प्रसिद्ध जंगल सारंडा नामली प्रखंड है जो मनोहरपुर तक फैला हुआ है. वहीं, पोड़ाहाट वन प्रमंडल गोदड़ी प्रखंड से लेकर बंद गांव प्रखंड तक फैला हुआ है. यहां औद्योगिकिकरण और विकास के नाम पर लगातार खनिज संपदाओं का पुरजोर तरीके से दोहन हो रहा है. इसके साथ ही वृक्षों को काटकर खनन किए जाने से भी जंगल को काफी नुकसान पहुंच रहा है. जिस कारण भी बारिश कम होने लगी है.
ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही इस पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय काफी भयावह हो सकता है. वहीं, सोमवार को कहीं तेज तो कहीं मामूली बारिश हुई. जिससे किसानों को अपनी फसलें खराब होने का डर सता रहा है. कम बारिश होने से वैसे ही आधे से अधिक किसानों के खेत परती पड़ी हुई है. मौसम के बदलते मिजाज से सप्ताह में दो बार रिमझिम बारिश हो चुकी है. अभी तक फसलों को इससे कोई नुकसान नहीं हुआ है.
जिला कृषि पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि खेतों की मिट्टी में नमी है जो बुवाई के लिए काफी है. 30 जून तक जिले में 55% बारिश हुई है. जिससे किसान धान, मक्का और अरहर की खेती में जुट गए हैं. उन्होंने कहा कि फिलहाल सभी जगह छिट-पुट बारिश होने से रोपाई का काम शुरू होने लगा है. वहीं, बदलते मौसम की वजह से हमने अपनी तरफ से सुझाव दिया है कि किसानों को दलहन और तिलहन की खेती पर ध्यान देना चाहिए जो कम बारिश में भी की जा सकती है.