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बेरुखी मौसम से घबराए पश्चिम सिंहभूम के किसान, कृषि विभाग किसानों को सांत्वना देने में जुटा

चाईबासा में 30 जून तक मात्र 55 प्रतिशत बारिश हुई है. जिसको ध्यान में रखते हुइ जिला कृषि पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद ने किसानों को दलहन और तिलहन की खेती करने की सलाह दी है.

बेरुखी मौसम को लेकर किसानों को सांत्वना
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Published : Jul 1, 2019, 10:01 PM IST

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम एक कृषि प्रधान जिला है जहां 60 प्रतिशत से भी अधिक आदिवासी बहुल जनजाति निवास करती है. यह जिला पूरी तरह से कृषि पर ही निर्भर है. लेकिन बदलते मौसम और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इस बार भी मानसून देर से आई. लेकिन आई भी तो इतनी रफ्तार से कि यहां के किसानों को अपना फसल बर्बाद होने का डर सताने लगा है.

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बता दें कि चाईबासा जिले के अंतर्गत कुल 18 प्रखंड आते हैं, जिसमें से एशिया के सबसे प्रसिद्ध जंगल सारंडा नामली प्रखंड है जो मनोहरपुर तक फैला हुआ है. वहीं, पोड़ाहाट वन प्रमंडल गोदड़ी प्रखंड से लेकर बंद गांव प्रखंड तक फैला हुआ है. यहां औद्योगिकिकरण और विकास के नाम पर लगातार खनिज संपदाओं का पुरजोर तरीके से दोहन हो रहा है. इसके साथ ही वृक्षों को काटकर खनन किए जाने से भी जंगल को काफी नुकसान पहुंच रहा है. जिस कारण भी बारिश कम होने लगी है.

ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही इस पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय काफी भयावह हो सकता है. वहीं, सोमवार को कहीं तेज तो कहीं मामूली बारिश हुई. जिससे किसानों को अपनी फसलें खराब होने का डर सता रहा है. कम बारिश होने से वैसे ही आधे से अधिक किसानों के खेत परती पड़ी हुई है. मौसम के बदलते मिजाज से सप्ताह में दो बार रिमझिम बारिश हो चुकी है. अभी तक फसलों को इससे कोई नुकसान नहीं हुआ है.

जिला कृषि पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि खेतों की मिट्टी में नमी है जो बुवाई के लिए काफी है. 30 जून तक जिले में 55% बारिश हुई है. जिससे किसान धान, मक्का और अरहर की खेती में जुट गए हैं. उन्होंने कहा कि फिलहाल सभी जगह छिट-पुट बारिश होने से रोपाई का काम शुरू होने लगा है. वहीं, बदलते मौसम की वजह से हमने अपनी तरफ से सुझाव दिया है कि किसानों को दलहन और तिलहन की खेती पर ध्यान देना चाहिए जो कम बारिश में भी की जा सकती है.

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम एक कृषि प्रधान जिला है जहां 60 प्रतिशत से भी अधिक आदिवासी बहुल जनजाति निवास करती है. यह जिला पूरी तरह से कृषि पर ही निर्भर है. लेकिन बदलते मौसम और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इस बार भी मानसून देर से आई. लेकिन आई भी तो इतनी रफ्तार से कि यहां के किसानों को अपना फसल बर्बाद होने का डर सताने लगा है.

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बता दें कि चाईबासा जिले के अंतर्गत कुल 18 प्रखंड आते हैं, जिसमें से एशिया के सबसे प्रसिद्ध जंगल सारंडा नामली प्रखंड है जो मनोहरपुर तक फैला हुआ है. वहीं, पोड़ाहाट वन प्रमंडल गोदड़ी प्रखंड से लेकर बंद गांव प्रखंड तक फैला हुआ है. यहां औद्योगिकिकरण और विकास के नाम पर लगातार खनिज संपदाओं का पुरजोर तरीके से दोहन हो रहा है. इसके साथ ही वृक्षों को काटकर खनन किए जाने से भी जंगल को काफी नुकसान पहुंच रहा है. जिस कारण भी बारिश कम होने लगी है.

ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही इस पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय काफी भयावह हो सकता है. वहीं, सोमवार को कहीं तेज तो कहीं मामूली बारिश हुई. जिससे किसानों को अपनी फसलें खराब होने का डर सता रहा है. कम बारिश होने से वैसे ही आधे से अधिक किसानों के खेत परती पड़ी हुई है. मौसम के बदलते मिजाज से सप्ताह में दो बार रिमझिम बारिश हो चुकी है. अभी तक फसलों को इससे कोई नुकसान नहीं हुआ है.

जिला कृषि पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि खेतों की मिट्टी में नमी है जो बुवाई के लिए काफी है. 30 जून तक जिले में 55% बारिश हुई है. जिससे किसान धान, मक्का और अरहर की खेती में जुट गए हैं. उन्होंने कहा कि फिलहाल सभी जगह छिट-पुट बारिश होने से रोपाई का काम शुरू होने लगा है. वहीं, बदलते मौसम की वजह से हमने अपनी तरफ से सुझाव दिया है कि किसानों को दलहन और तिलहन की खेती पर ध्यान देना चाहिए जो कम बारिश में भी की जा सकती है.

Intro:चाईबासा। पश्चिम सिंहभूम जिला कृषि प्रधान जिला है जहां 60 प्रतिशत से भी अधिक आदिवासी बहुल जनजाति निवास करते हैं। जो पूरी तरह से खेती-बाड़ी पर ही निर्भर है बदलते मौसम और ग्लोबल वार्मिंग से इस बार भी मानसून देर से आई बल्कि जिस रफ्तार से बारिश हो रही है उसे यहां के किसानों को अपना फसल बर्बाद होने का डर भी सताने लगा है की कहीं या क्षेत्रा काल के गाल में ना समझ आए और फिर उनका जीवन यापन करना भी दूभर ना हो जाए।


Body:जिले के अंतर्गत कुल 18 प्रखंड आते हैं जिसमें से एशिया के सबसे प्रसिद्ध जंगल सारंडा नामली प्रखंड से लेकर मनोहरपुर तक फैला हुआ है। वही पोड़ाहाट वन प्रमंडल गोदड़ी प्रखंड से लेकर बंद गांव प्रखंड तक फैला हुआ है। औद्योगिक करण और विकास के नाम पर लगातार हो रही खनिज संपदा ओं की पुरजोर तरीके से दोहन हो रही है इसके साथ ही वृक्षों को काटकर खनन किए जाने से भी जंगल को काफी नुकसान पहुंचता रहा है जिस कारण भी बारिश कम होने लगी है ग्रामीण लोग भी इस बात को मानने लगे हैं कि जल्द ही इस पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय काफी भयावह हो सकता है।

सोमवार को कहीं तेज तो कहीं मामूली बारिश हुई किसानों को अपनी फसलें खराब होने का डर किसानों को सता रहा है कम बारिश के चलते वैसे ही आधे से अधिक किसानों के खेत परती पड़ी हुई है मौसम के बदलते में मिजाज से सप्ताह में दो बार रिमझिम बारिश हो चुकी है हालांकि अभी तक फसलों को नुकसान नहीं हुआ है।

जिला कृषि पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि जिले के किसानों की खेतों की मिट्टी में नमी है जो बुवाई के लिए काफी है जिस जिस कारण स्थिति सामान्य है। 30 जून तक जिले में 55% बारिश हुई है जिले के किसान धन्ना मक्का अरहर की खेती में किसान जुट गए हैं आज कहीं कहीं छिटपुट बारिश हुई है। जिससे किसान रोपाई का काम शुरू करेंगे बदलते मौसम के साथ हम लोग किसानों को अपनी तरफ से सुझाव दे रहे हैं कि अल्पावधि वाली जिसमें दलहन तिलहन की खेती की ओर किसानों का रुझान हो जो कम बारिश में भी हो सकती है।

बाइट 1 - किसान- कालिया जामुदा
बाइट 2 - किसान - डैनी देवगम
बाइट 3 - कृषि पदाधिकारी - राजेन्द्र प्रसाद


Conclusion:
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