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ओलंपिक खिलाड़ी का गांव बदहालः जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं बच्चे - झारखंड न्यूज

झारखंड का सिमडेगा जिला हॉकी की नर्सरी कहा जाता है. इस गांव के गली-कूचों से निकलकर कई खिलाड़ियों ने पूरी दुनिया में प्रदेश और देश का नाम रोशन किया है. ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसे दिग्गज खिलाड़ियों का गांव भी खुशहाल और सुख-सुविधाओं से भरा-पूरा होगा. लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग है, इस रिपोर्ट से आप भी जानिए नामचीन ओलंपियन और हॉकी खिलाड़ी सलीमा टेटे का गांव किस (bad condition of barki chhapar village) हाल में.

Children study sitting on ground in Olympic player village in Simdega
सिमडेगा
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Published : Oct 15, 2022, 9:07 AM IST

सिमडेगाः जिस गांव से अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी आते हों तो वहां का हाल भी अच्छा ही होगा, ऐसा माना जाता है लेकिन तस्वीरें बिल्कुल इसके उलट है. आज भी ओलंपिक खिलाड़ी का गांव बदहाल है, यहां शिक्षा की बदहाल स्थिति ऐसी कि बिना भवन के बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं. ये कोई और जगह नहीं बल्कि बड़की छापर गांव (bad condition of barki chhapar village) है, जो ओलंपिक खिलाड़ी सलीमा टेटे का पैतृक गांव है.

इसे भी पढ़ें- Tokyo Olympic: बदहाल गांव और घर, सलीमा टेटे का मैच नहीं देख पा रहे लोग


सिमडेगा में शिक्षा की बदहाल स्थितिः शिक्षा जो एक बच्चे का वर्तमान ही नहीं भविष्य भी निर्धारित करता है. जिससे परिवार, समाज, राज्य और देश को समृद्धि और खुशहाली के रास्ते पर ले जाता है. लेकिन सिमडेगा में नौनिहालों को जमीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करता देख बदहाल शिक्षा व्यवस्था की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. लाखों रुपये का भवन बनने के बावजूद ये बच्चे जमीन पर बैठकर शिक्षा ले रहे हैं.

देखें वीडियो
हॉकी के कारण विश्व में विख्यात सिमडेगा जिला में बच्चे जमीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं. जिला का ये वही बरकी छापर गांव (Olympic player village in bad shape) है, जहां से निकलकर सलीमा टेटे ने देश ही नहीं विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. लेकिन आज उसके गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए एक अदद भवन तक नसीब नहीं (village of Olympic player Salima Tete) है. इसके पीछ की वजह यह है कि जर्जर स्कूल भवन, छत कई जगह से टूटे हुए हैं. कोई हादसा ना हो जाए इसलिए बच्चों को बरामदे में (Children study sitting on ground) पढ़ाया जा रहा है.

भवन निर्माण में गुणवत्ता की कमीः हालांकि पास ही नए विद्यालय भवन का निर्माण कराया गया है, पर उसमें भी कक्षाएं शुरू नहीं की गई हैं. इस नये भवन की स्थिति देखकर तो यही लगता है कि संवेदक और काम कराने वाले इंजीनियर ने भवन की गुणवत्ता पर कम और पैसों की बंदरबांट पर विशेष ध्यान दिया है. शायद इसी कारण पूरे छत का पानी कमरे के बीचोंबीच छत पर जमा होकर टपकता रहता है. बारिश के दिनों में कक्षाएं तालाब में तब्दील हो जाते हैं. यहां तक की वर्षों बीतने के बावजूद इस भवन को अब तक पेंट नहीं किया गया है. लाखों खर्च कर विद्यालय भवन का निर्माण तो कराया गया पर अब तक उसमें कक्षाएं शुरू नहीं की गई हैं.

पिछले दिनों बड़की छापर गांव पहुंचे 6 प्रशासनिक अधिकारियों की टीम ने विद्यालय भवन का जायजा लिया था. उन्होंने जल्द ही इस दिशा में पहल करने की बात कही थी. लेकिन एक महीना पूरे होने को है, इसके बावजूद परिस्थिति जस की तस बनी हुई है.

सिमडेगाः जिस गांव से अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी आते हों तो वहां का हाल भी अच्छा ही होगा, ऐसा माना जाता है लेकिन तस्वीरें बिल्कुल इसके उलट है. आज भी ओलंपिक खिलाड़ी का गांव बदहाल है, यहां शिक्षा की बदहाल स्थिति ऐसी कि बिना भवन के बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं. ये कोई और जगह नहीं बल्कि बड़की छापर गांव (bad condition of barki chhapar village) है, जो ओलंपिक खिलाड़ी सलीमा टेटे का पैतृक गांव है.

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सिमडेगा में शिक्षा की बदहाल स्थितिः शिक्षा जो एक बच्चे का वर्तमान ही नहीं भविष्य भी निर्धारित करता है. जिससे परिवार, समाज, राज्य और देश को समृद्धि और खुशहाली के रास्ते पर ले जाता है. लेकिन सिमडेगा में नौनिहालों को जमीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करता देख बदहाल शिक्षा व्यवस्था की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. लाखों रुपये का भवन बनने के बावजूद ये बच्चे जमीन पर बैठकर शिक्षा ले रहे हैं.

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हॉकी के कारण विश्व में विख्यात सिमडेगा जिला में बच्चे जमीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं. जिला का ये वही बरकी छापर गांव (Olympic player village in bad shape) है, जहां से निकलकर सलीमा टेटे ने देश ही नहीं विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. लेकिन आज उसके गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए एक अदद भवन तक नसीब नहीं (village of Olympic player Salima Tete) है. इसके पीछ की वजह यह है कि जर्जर स्कूल भवन, छत कई जगह से टूटे हुए हैं. कोई हादसा ना हो जाए इसलिए बच्चों को बरामदे में (Children study sitting on ground) पढ़ाया जा रहा है.

भवन निर्माण में गुणवत्ता की कमीः हालांकि पास ही नए विद्यालय भवन का निर्माण कराया गया है, पर उसमें भी कक्षाएं शुरू नहीं की गई हैं. इस नये भवन की स्थिति देखकर तो यही लगता है कि संवेदक और काम कराने वाले इंजीनियर ने भवन की गुणवत्ता पर कम और पैसों की बंदरबांट पर विशेष ध्यान दिया है. शायद इसी कारण पूरे छत का पानी कमरे के बीचोंबीच छत पर जमा होकर टपकता रहता है. बारिश के दिनों में कक्षाएं तालाब में तब्दील हो जाते हैं. यहां तक की वर्षों बीतने के बावजूद इस भवन को अब तक पेंट नहीं किया गया है. लाखों खर्च कर विद्यालय भवन का निर्माण तो कराया गया पर अब तक उसमें कक्षाएं शुरू नहीं की गई हैं.

पिछले दिनों बड़की छापर गांव पहुंचे 6 प्रशासनिक अधिकारियों की टीम ने विद्यालय भवन का जायजा लिया था. उन्होंने जल्द ही इस दिशा में पहल करने की बात कही थी. लेकिन एक महीना पूरे होने को है, इसके बावजूद परिस्थिति जस की तस बनी हुई है.

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