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छठ पूजा में बरतनी होगी कई सावधानियां, वाटर बॉडीज में घुलनशील अशुद्धियां, संक्रमण का खतरा - झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद

सरायकेला में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की ओर से स्वर्णरेखा और खरकई नदी के जल में व्रतियों को स्नान करने से सख्त मनाही की गई है. दरअसल, स्वर्णरेखा और खरकई नदी काफी प्रदूषित हो गई हैं, इसकी जांच विभाग ने की है. स्वर्णरेखा और खरकई नदी के जल में नहाने से कई संक्रमण होने का खतरा है.

Pollution level of rivers in seraikela
प्रदूषित नदी
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Published : Nov 19, 2020, 2:25 PM IST

सरायकेला: आस्था का महापर्व छठ पूजा शुरु हो चुका है. चार दिवसीय इस महापर्व में लोगों की गहरी आस्था होती है. पूर्व में सरकार की ओर से नदी, तालाब और जल स्रोत से कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने को लेकर पूजा के सार्वजनिक आयोजनों पर रोक लगाई गई थी. हालांकि, सरकार की ओर से इस नियम में संशोधन करते हुए अब पूरे राज्य में नदियों, तालाबों और अन्य जल स्रोत के तट पर पूजा आयोजित किए जाने की अनुमति प्रदान कर दी गई है.

देखें पूरी खबर

जिले के तकरीबन 50 से भी अधिक छठ घाटों पर सार्वजनिक पूजा आयोजित की जाएगी लेकिन जिले के कई पारंपरिक जल स्रोत प्रदूषित हैं. वहीं, पूरे कोल्हान के लिए लाइफलाइन माने जाने वाली स्वर्णरेखा और खरकई नदी में घुलनशील अशुद्धियां और हेवी मेटल्स पहले से मौजूद हैं, जिनमें स्नान करने से बीमारी और संक्रमण का खतरा भी बना रहेगा.

ये भी पढ़ें-छठ को लेकर फलों के बाजार में दिखी रौनक, खरीदारी में जुटे लोग

प्रदूषण मापने के दौरान ऑक्सीजन लेवल मिला कम

हाल ही में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की ओर से स्वर्णरेखा और खरकई नदी के जल में प्रदूषण की मात्रा जांच करने के दौरान यह बात सामने आई है कि नदियों में घुलनशील अशुद्धियां भारी मात्रा में है, जबकि नदी और जल स्रोत में ऑक्सीजन का लेवल 5 होना चाहिए लेकिन इन नदियों में यह मात्रा 5 से भी कम है. लिहाजा पानी में रहने वाले जीव जंतुओं के लिए यह काफी खतरनाक है.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक एसके झा बताते हैं कि हाल ही में दुर्गा पूजा और काली पूजा के बाद मूर्तियों का विसर्जन नदियों में किए जाने से नदियों का प्रदूषण स्तर अचानक बढ़ा है. उन्होंने बताया कि मूर्तियों में खतरनाक केमिकल और अन्य पदार्थ मिले होने के कारण, जब यह नदी के जल में घुलते हैं तो सामान्य जल में मौजूद ऑक्सीजन का लेवल भयावह रूप से कम होने लगता है जो जलीय जीव-जंतुओं के साथ मनुष्य के लिए भी घातक है. जानकारी के अनुसार एनजीटी समेत सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीधे नदियों और जल स्रोत में मूर्ति विसर्जन करने पर पाबंदी है, बावजूद इसके नदियों में विसर्जन करने से नदी लगातार प्रदूषित हो रही है.

छठ व्रती नदी में नहाने से बचे

महापर्व छठ पूजा को लेकर व्रतियों की नदी में स्नान आदि की परंपरा है लेकिन डॉक्टर मानते हैं कि कोरोना काल में नदियों में स्नान संक्रमण के खतरे को कई गुना बढ़ा सकता है. डॉक्टर मानते हैं कि नदियों में 6 फीट की दूरी बनाना संभव नहीं हो सकता, लिहाजा लोगों को कम से कम एक दूसरे के संपर्क में आना चाहिए और शारीरिक दूरी के साथ मास्क का प्रयोग निश्चित तौर पर करना चाहिए. वहीं, सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि छठ व्रती दूरियां बनाकर रखें और नदियों के जल से कम से कम संपर्क स्थापित करें, जबकि नदियों में स्नान के साथ-साथ मुंह धोने से भी निश्चित तौर पर बचें क्योंकि इन नदियों में पहले से प्रदूषण की मात्रा अधिक है, लिहाजा ऐसे में संक्रमण के अलावा बीमारी का भी खतरा बना हुआ है.

सरायकेला: आस्था का महापर्व छठ पूजा शुरु हो चुका है. चार दिवसीय इस महापर्व में लोगों की गहरी आस्था होती है. पूर्व में सरकार की ओर से नदी, तालाब और जल स्रोत से कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने को लेकर पूजा के सार्वजनिक आयोजनों पर रोक लगाई गई थी. हालांकि, सरकार की ओर से इस नियम में संशोधन करते हुए अब पूरे राज्य में नदियों, तालाबों और अन्य जल स्रोत के तट पर पूजा आयोजित किए जाने की अनुमति प्रदान कर दी गई है.

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जिले के तकरीबन 50 से भी अधिक छठ घाटों पर सार्वजनिक पूजा आयोजित की जाएगी लेकिन जिले के कई पारंपरिक जल स्रोत प्रदूषित हैं. वहीं, पूरे कोल्हान के लिए लाइफलाइन माने जाने वाली स्वर्णरेखा और खरकई नदी में घुलनशील अशुद्धियां और हेवी मेटल्स पहले से मौजूद हैं, जिनमें स्नान करने से बीमारी और संक्रमण का खतरा भी बना रहेगा.

ये भी पढ़ें-छठ को लेकर फलों के बाजार में दिखी रौनक, खरीदारी में जुटे लोग

प्रदूषण मापने के दौरान ऑक्सीजन लेवल मिला कम

हाल ही में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की ओर से स्वर्णरेखा और खरकई नदी के जल में प्रदूषण की मात्रा जांच करने के दौरान यह बात सामने आई है कि नदियों में घुलनशील अशुद्धियां भारी मात्रा में है, जबकि नदी और जल स्रोत में ऑक्सीजन का लेवल 5 होना चाहिए लेकिन इन नदियों में यह मात्रा 5 से भी कम है. लिहाजा पानी में रहने वाले जीव जंतुओं के लिए यह काफी खतरनाक है.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक एसके झा बताते हैं कि हाल ही में दुर्गा पूजा और काली पूजा के बाद मूर्तियों का विसर्जन नदियों में किए जाने से नदियों का प्रदूषण स्तर अचानक बढ़ा है. उन्होंने बताया कि मूर्तियों में खतरनाक केमिकल और अन्य पदार्थ मिले होने के कारण, जब यह नदी के जल में घुलते हैं तो सामान्य जल में मौजूद ऑक्सीजन का लेवल भयावह रूप से कम होने लगता है जो जलीय जीव-जंतुओं के साथ मनुष्य के लिए भी घातक है. जानकारी के अनुसार एनजीटी समेत सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीधे नदियों और जल स्रोत में मूर्ति विसर्जन करने पर पाबंदी है, बावजूद इसके नदियों में विसर्जन करने से नदी लगातार प्रदूषित हो रही है.

छठ व्रती नदी में नहाने से बचे

महापर्व छठ पूजा को लेकर व्रतियों की नदी में स्नान आदि की परंपरा है लेकिन डॉक्टर मानते हैं कि कोरोना काल में नदियों में स्नान संक्रमण के खतरे को कई गुना बढ़ा सकता है. डॉक्टर मानते हैं कि नदियों में 6 फीट की दूरी बनाना संभव नहीं हो सकता, लिहाजा लोगों को कम से कम एक दूसरे के संपर्क में आना चाहिए और शारीरिक दूरी के साथ मास्क का प्रयोग निश्चित तौर पर करना चाहिए. वहीं, सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि छठ व्रती दूरियां बनाकर रखें और नदियों के जल से कम से कम संपर्क स्थापित करें, जबकि नदियों में स्नान के साथ-साथ मुंह धोने से भी निश्चित तौर पर बचें क्योंकि इन नदियों में पहले से प्रदूषण की मात्रा अधिक है, लिहाजा ऐसे में संक्रमण के अलावा बीमारी का भी खतरा बना हुआ है.

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