साहिबगंजः बच्चा माता-पिता की आंखों के सामने बड़ा होता है, वो चलने, खेलने-कूदता है और दौड़ता-भागता है. लेकिन 12 और 9 साल के बच्चों को जब सहारा देना पड़े, उसे गोद में लेकर चलना पड़े तो उन बच्चों के माता-पिता के दिल पर क्या बीतेगी ये तो सिर्फ वो ही जानते हैं. कुछ ऐसा ही गुजर रहा है कैलाश यादव पर. डॉक्टर से मुताबिक उनके दो बच्चे मांसपेशी से संबंधित गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं.
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कम उम्र में बच्चे जब शरारत ना करे, खेले-कूदे नहीं तो अभिभावकों का मच कचोटता है. जब बच्चा गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो तो परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है. साहिबगंज में सदर प्रखंड के पंचायत गंगा प्रसाद पूर्व स्थित शोभनपुर गंगोताटोला गांव में रहने वाले कैलाश यादव बच्चों का दुख और कष्ट झेल रहे हैं. ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी गंभीर बीमारी ने इस परिवार पर जैसे कब्जा कर लिया है.
अपने माता-पिता के साथ कैलाश यादव का भरा-पूरा परिवार है. कैलाश के चार बच्चे हैं, तीन बेटा और एक बेटी. मांसपेशी से संबंधित खतरनाक बीमारी ने 16 साल की उम्र में उसके बड़े बेटे को लील लिया. अब उनका दो बेटा इस बीमारी की जद में है. बीमारी की गंभीरता इतनी है कि ये दोनों भाई अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते, ना दोनों के पैर ठीक से काम करते हैं और ना ही कमर में उतनी ताकत बची है.
आज दोनों बेटे को गोद में लेकर नित्य क्रिया से लेकर हर काम कराना पड़ता है. दोनों बच्चों का पैर काम नहीं कर रहा है, हाथ भी काम नहीं कर रहा, कमर का भी काम करना बंद हो रहा है. अब किसी तरह दीवार के सहारे दोनों बच्चों को बैठाया जाता है.
घर के पुत्र बीमारी की भेंट चढ़ गया
बच्चों की दादी ने बताया कि उनके एक पोते की मौत इसी गंभीर बीमारी से हो चुकी है, अब दोनों को भी वही बीमारी लग गई है. यह बीमारी 5 से 7 साल के बाद शुरु हो जाता है, पहले पैर में ताकत खत्म हो जाता है, धीरे-धीरे हाथ भी काम करना बंद कर देता है. दोनों को इलाज के लिए कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर सहित अन्य जगह पर लेकर गए, पर कुछ भी सुधार नहीं हुआ. आज माता-पिता थक-हारकर घर पर बैठ गए हैं.
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पिता ने लगाई मदद की गुहार
बच्चों की बीमारी से पिता कैलाश यादव ने मदद की गुहार लगाई है. उन्होंने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि मजदूरी करके घर का गुजारा चल रहा है. बड़े बेटे के इलाज में उन्होंने अपनी जमीन बेच दी, पर पुत्र को बचा नहीं पाए. अब उनके पास मिट्टी के घर के अलावा कुछ नहीं बचा है. मेरे दोनों बेटों के इलाज के लिए मदद की जरूरत है.
अपने घर की किलकारियों और खुशियों को याद करते हुए कैलाश यादव बताते हैं कि मेरे चारों बच्चे जब छोटे थे तो उनको देखकर अच्छा लगता था. उनकी भागदौड़ से घर में चहलपहल रहती थी. बड़ा बेटा गंभीर बीमारी की चपेट में आया. शुरुआत में इलाज चला, मामला जब गंभीर हो गया तो उन्होंने पड़ोसी राज्य बिहार के कई राज्यों का रूख किया. लेकिन उसे बचा नहीं पाए, अब उनके दोनों बेटे भी इस बीमारी की चपेट में है. कैलाश यादव ने बताया कि ये बीमारी बच्चों के मामा और मौसी को भी थी.
पूर्व मुखिया ने दिया आश्वासन
कैलाश यादव ने अपने बच्चों के इलाज के लिए मदद की गुहार लगाई है. मदद को लेकर गंगाप्रसाद (पूर्व) पंचायत के पूर्व मुखिया ने बताया कि उनके पहले पुत्र की बीमारी से मौत की जानकारी है. लेकिन दो बेटे भी इस बीमारी की चपेट में हैं, ये जानकारी उन्हें ईटीवी भारत के माध्यम से मिली. इलाज को लेकर उन्होंने भरोसा दिलाया है कि वो कैलाश यादव से मिलकर जल्द मामले से अवगत होंगे. इस बाबत सिविल सर्जन से मिलकर परामर्श लेकर समाधान किया जाएगा. इसके अलावा दोनों बच्चों का दिव्यांग सर्टिफिकेट भी मिलने की बात कही. साथ ही कैलाश यादव को पीएम आवास समेत कई योजना से जोड़ने के प्रयास पर बल दिया.
सही जांच सही इलाज संभव- चिकित्सक
बीमारी को लेकर सदर अस्पताल के चिकित्सक बताते हैं कि जो लक्षण दोनों बच्चों में देखा जा रहा है, उससे ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Duchenne Muscular Dystrophy, DMD) जैसी गंभीर बीमारी की आशंका है या फिर मांसपेशी से जुड़ी बीमारी से दोनों ग्रस्त हैं. लेकिन दोनों का सही और पूरा टेस्ट जब तक नहीं होता, तब उनका इलाज संभव नहीं हो पाएगा. जांच के लिए बच्चों को मेडिकल बोर्ड की टीम में भी भेजा जा सकता है. डॉक्टर ने यह भी संभावना जताई है कि ये एक जेनेटिक बीमारी है, जो उनके परिवार में किसी से उनको मिला है.
मदद को लेकर अब तक तो कही से भी कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है. पूर्व मुखिया ने इस बाबत आश्वासन तो दिया है. फिर भी कैलाश यादव को अपने 12 साल के पुत्र सुमित और 9 साल के पीयूष के इलाज के लिए किसी मसीहा का इंतजार है. जो इन दोनों बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद कर सके, उन्हें ताकत और हिम्मत दे सके.
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कैसे होती यह बीमारी
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy) मासपेशियों के रोगों का एक ऐसा समूह है. जिसमें लगभग 80 प्रकार की बीमारियां शामिल हैं. इस समूह में कई प्रकार के रोग शामिल हैं, पर आज भी सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी- ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी (डीएमडी) (Duchenne Muscular Dystrophy, DMD) है. अगर इस बीमारी का समय रहते इलाज ना किया जाता है तो ज्यादातर बच्चों की मौत 11 से 21 वर्ष के बीच हो जाती है. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी यह एक अनुवांशिक बीमारी है, जो खासतौर से बच्चों में होती है.
ऐसे होती है पहचान
ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी सिर्फ लड़कों में ही उजागर होती है और लड़कियां, जीन विकृति होने पर कैरियर (वाहक) का कार्य करती हैं या अपनी संतान को भविष्य में ये बीमारी दे सकती हैं, जबकि लड़कियों में किसी प्रकार के लक्षण उत्पन्न नहीं होते हैं. इस बीमारी की वजह से किशोर होते-होते बच्चा पूरी तरह से डिसेबल हो जाता है. डॉक्टर्स और अभिभावकों में उत्पन्न जागरुकता ने इनकी जान बचाने और ऐसे बच्चों की जिंदगी बेहतर बनाने में विशेष भूमिका निभाई है. विशेष रूप से स्टेम सेल और बोन मैरो सेल-ट्रांसप्लांट के प्रयोग से इन मरीजों की आयु बढ़ाई जा रही है.
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण-
- सीढ़ियां चढ़ने में मुश्किल होती है
- पैर की पिंडलिया मोटी हो जाती हैं
- पैरों की मांसपेशियों का फूल जाना
- शुरू में बच्चा तेज चलने पर गिर जाता है
- बच्चा थोड़ा चलने या दौड़ने पर थक जाता है
- उठने में घुटने या हाथ का सहारा लेना पड़ता है
यह गंभीर रोग क्यों है
यह मांसपेशियों का रोग है, इसलिए यह सबसे पहले कूल्हे के आसपास की मांसपेशियों और पैर की पिंडलियों को कमजोर करता है. लेकिन उम्र बढ़ते ही यह कमर और बाजू की मांसपेशियों को भी प्रभावित करना शुरू कर देता है. लगभग नौ वर्ष की उम्र के बाद से यह फेफड़े को और हृदय की मांसपेशियों को भी कमजोर करना शुरू कर देता है. जिससे बच्चे की सांस फूलने लगती है और ज्यादातर बच्चों में मृत्यु का कारण हृदय और फेफड़े का फेल हो जाना होता है.
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स्टेम सेल्स कैसे काम करता है
वैज्ञानिकों के अनुसार स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन (Stem Cell Transplantation) से मांसपेशियों में मौजूद सोई हुई या डॉर्मेन्ट सैटेलाइट स्टेम सेल (Dormant Satellite Stem Cells) (एक प्रकार की विशिष्ट कोशिकाएं) जाग्रत हो जाती हैं और वो नई मांसपेशियों का निर्माण करती हैं. जबकि ग्रोथ फैक्टर (एक प्रकार का उत्प्रेरक) क्षतिग्रस्त मांसपेशियों की रिपेर्यंरग और रिजनरेशन में मदद करता है. इसीलिए आजकल अनेक डॉक्टर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के साथ (आईजीएफ-1) नामक इंजेक्शन का प्रयोग करते हैं, जो एक प्रकार का ग्रोथ फैक्टर है. कई हेल्थ सप्लीमेंट्स इन मरीजों की ताकत बनाए रखने में काफी मदद कर रहे हैं, जो मुख्यत: ओमेगा-3 फैटी एसिड्स और यूबीनक्यूनॉल और एल-कार्निटीन रसायन है.
उपलब्ध इलाज
इस बीमारी को लाइलाज बीमारियों की श्रेणी में रखा जाता है. इसलिए अधिकतर डॉक्टर अभी-भी कार्टिकोस्टेरॉयड (Corticosteroid) को मुख्य इलाज के रूप में प्रयोग करते हैं. इसके दुष्परिणाम आने पर ज्यादातर रोगियों में इस इलाज को रोकना पड़ता है. इसके अलावा फिजियोथेरेपी (Physiotherapy) का प्रयोग किया जाता है. नए इलाजों में आटोलोगस बोन मेरो सेल ट्रांसप्लांट (Autologous Bone Marrow Cell Transplant) और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplantation) को शामिल किया जाता है. यह इलाज मांसपेशियों की सूजन कम करने के साथ-साथ नई मांसपेशियों का निर्माण भी करता है.
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मुंबई की बच्ची की मदद के लिए उठे थे हाथ
ऐसा नहीं है कि इस देश में फरिश्तों की कमी है, कई महीने पहले दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर अट्राफी से पीड़ित मुंबई के बच्ची जैनब के इलाज के लिए सरकार और महाराष्ट्र के लोगों ने क्राउड फंडिंग के जरिये 10 करोड़ जुटाए थे. इस बीमारी के इलाज के लिए इंजेक्शन के लिए बच्ची को 16 करोड़ रुपये की जरूरत थी. अब ऐसे ही देश और झारखंड के लोगों को जीत की जान बचाने के लिए फरिश्ता बनने की जरूरत है.