रांची: 2022 अब अपने समापन की तरफ चल निकला है. पूरे साल की खट्टी मीठी यादों को अपने में समेटे यह साल झारखंड के लिए कई ऐतिहासिक बातों को अपने अलेख में अंकित कर गया है. नक्सल के नासूर से सिसकते झारखंड को 2022 में बड़ी राहत मिली, जब बूढ़ा पहाड़ से सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को खदेड़ दिया. 22 साल के सूबे का सफरनामा और 2022 के साल के अंत में नक्सल की कहानी किस तरह टूटी है. जानिए इस रिपोर्ट में.
आज से 22 साल पहले जब झारखंड का निर्माण हुआ था. उस समय परिस्थिति बिल्कुल उलट थी. साल 2000 से लेकर 2017 तक नक्सलियों ने झारखंड के सीने पर कई गहरे जख्म दिए हैं. इस क्रम में 300 से ज्यादा पुलिसवालों को अपनी शहादत देनी पड़ी. जिनमें दो आईपीएस भी शामिल थे. लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं, साल 2021 की कामयाबी को झारखंड पुलिस में और बड़ा करते हुए नक्सलियों के सबसे बड़े आश्रय स्थल बूढ़ा पहाड़ और बुलबुल जंगल को नेस्तनाबूद कर दिया (Victory on Budha Pahad is biggest success of 2022). हालांकि इस दौरान झारखंड पुलिस को भी अपने दो जवानों की शहादत देनी पड़ी, लेकिन नुकसान सबसे ज्यादा भाकपा माओवादियों को हुआ, झारखंड पुलिस के आंकड़े साबित करते हैं कि साल 2022 में नक्सल फ्रंट पर झारखंड पुलिस बेहद कामयाब रही.
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370 गिरफ्तार: साल 2022 के जनवरी महीने से लेकर नवंबर महीने तक झारखंड पुलिस और केंद्रीय बलों की संयुक्त कार्रवाई में 370 नक्सलियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया है. गिरफ्तार नक्सलियों पर कुल 72 लाख का इनाम भी घोषित है. ऐसा नहीं है कि छोटे मोटे नक्सलियों को ही पुलिस ने गिरफ्तार किया, 2022 में झारखंड पुलिस ने 3 सैक मेंबर, 04 जोनल कमांडर, 07 सब जोनल कमांडर और 16 एरिया कमांडर को गिरफ्तार कर जेल भेजा है.
15 ने डाले हथियार: एक तरफ जहां झारखंड पुलिस की तरफ से नक्सलियों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया जा रहा था. वहीं, दूसरी तरफ नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए भी प्रेरित किया जा रहा था. साल 2022 में अब तक 15 हार्डकोर नक्सली पुलिस के सामने हथियार डाल चुके हैं. विमल यादव, महाराज प्रमाणिक, सुरेश सिंह मुंडा, भवानी सिंह खेरवार, विमल लोहरा, अभय जी जैसे कुख्यात नक्सलियों ने हथियार डाले, इन सब पर मिलाकर कुल 49 लाख का इनाम भी घोषित था.
कुल 12 नक्सली मारे गए: झारखंड पुलिस और केंद्रीय बलों के द्वारा चलाए गए अभियान के दौरान 12 कुख्यात नक्सली मारे गए, जिनमें लाखा पाहन, दिनेश नागेशिया और काली मुंडा जैसे दुर्दांत शामिल थे.
हथियार और असलहे भी हुए रिकार्ड बरामद: साल 2022 में झारखंड पुलिस के द्वारा चलाए गए जोरदार अभियान में भारी मात्रा में असलाह और गोला बारूद बरामद किए गए. इस दौरान पुलिस से लूटे गए 45 हथियार भी बरामद किए गए हैं. पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार अभियान में 171 उम्दा हथियार जिनमें एके-47 भी शामिल हैं बरामद किए. वहीं रेगुलर वेपन के साथ-साथ कंट्री मेड कुल 94 हथियार भी पुलिस ने बरामद किए हैं. अभियान के दौरान साल 2022 में नवंबर महीने तक 16033 किलो विस्फोटक, आईईडी-800 बारूद-530 केजी और एक करोड़ तीन लाख रुपये भी हुए रिकवर किए गए है.
साल की सबसे बड़ी सफलता बूढ़ा पहाड़ पर कब्जा
नक्सलियों का सबसे सुरक्षित गढ़ था बूढ़ा पहाड़: साल 2022 की सबसे बड़ी सफलता झारखंड पुलिस के द्वारा चलाया गया ऑपरेशन ऑक्टोपस और डबल बुल था, बूढ़ा पहाड़ कॉर्पोरेशन ऑक्टोपस के जरिए क्लीन करवाया गया, जबकि बुलबुल जंगल को ऑपरेशन डबल बुल के जरिए. दरअसल, झारखंड समेत तीन राज्यों में माओवादियों के मुख्यालय के तौर पर बूढ़ापहाड़ का इस्तेमाल पिछले तीन दशक से हो रहा था. 1990 से ही घोर नक्सल प्रभाव वाला इलाका रहा. बूढ़ापहाड़ झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ के माओवादियों के लिए बड़ा आश्रय स्थल था. केंद्रीय गृह मंत्रालय के टास्क पर काम करते हुए झारखंड पुलिस ने 32 साल से माओवादी गतिविधियों के केंद्र रहे बूढ़ापहाड़ को नक्सल मुक्त करा लिया है. बूढ़ापहाड़ को नक्सलमुक्त कराने के लिए साल 2022 में पुलिस और सीआरपीएफ ने ऑपरेशन ऑक्टोपस चलाया था. अब बूढ़ापहाड़ पर आधे दर्जन से अधिक कैंप बना दिए गए हैं. नदी नालों पर पुल बना दिए गए हैं. बूढ़ा पहाड़ फिलहाल नक्सलियों से मुक्त है. जवानों की यह कोशिश है कि अब दोबारा इस पहाड़ पर नक्सलियों को नहीं आने दिया जाए.
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झारखंड से नक्सलवाद का पुराना नाता: 2022 भले ही नक्सलियों के कम होती ताकत की वजह से याद किया जाएगा, लेकिन झारखंड में अभी भी कई ऐसी जगह है जहां नक्सली अपने आप को दोबारा मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. झारखंड का इतिहास भी रहा है कि नक्सली समय-समय पर बड़ी घटनाओं को अंजाम देकर पुलिस की मेहनत पर पानी फेरने की कोशिश करते हैं. 1967 में नक्सलवाड़ी से शुरू सशस्त्र आंदोलन की विचारधारा नक्सलवाद ने आहिस्ता आहिस्ता अविभाजित बिहार, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, उड़िसा में पांव पसारे. नक्सलवाद और झारखंड की बात करें तो झारखंड में जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ नक्सलवादी आंदोलन की शुरूआत 80 के दशक में हुई थी.
अविभाजित बिहार में रोहतास, कैमूर की पहाड़ी से नक्सली गतिविधियों का संचालन होता था. धीरे धीरे नक्सलवाद की आग झारखंड के पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा तक पहुंच गई, उस दौरान पलामू से नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा और निराला यादव इसकी मजबूत धूरी थे. हालांकि बाद में कामेश्वर बैठा संगठन से अलग हुए, कामेश्वर बैठा ने उस समय संगठन को छोड़ा जिस समय नक्सलवाद चरम पर था. उसी दौरान कामेश्वर बैठा ने सरेंडर किया और मुख्यधारा में लौटे. मुख्यधारा में लौटने के बाद बैठा ने चुनाव लड़ा और सांसद भी बने, लेकिन कामेश्वर बैठा के आत्मसमर्पण करने के बाद भी झारखंड में नक्सलवाद की आग ठंडी नहीं हुई, बल्कि नक्सली गतिविधियां की जद में पलामू के बाद झारखंड के अधिकांश जिले आ गए.
ग्रामीणों के सहयोग से खड़ा हुआ संगठन: 80 के दशक में चतरा, पलामू, गढ़वा, कोल्हान और गिरिडीह में ग्रामीणों को एकजुट करने में नक्सली सफल हो गए थे. उस दौरान झारखंड के गिरिडीह और चतरा जिले में लालखंडी नाम का एक गुट सक्रिय हुआ था. वह ग्रुप महाजनी प्रथा के खिलाफ लोहा तो ले रहा था, लेकिन उसके पास हथियार नहीं थे. इस दौरान कई लाल खंडी संघर्ष में मारे भी गए. बाद में लाल खंडी संगठन के लोग तेज तलवार, धारदार हथियार का इस्तेमाल करने लगे. उन्होंने दहशत फैलाने के लिए लोगों की गर्दन काट कर बीच सड़क पर रखना शुरू किया, लेकिन हथियार की कमी की वजह से संगठन आगे नहीं बढ़ रहा था.
प. बंगाल में शुरू हुआ अभियान तो पारसनाथ बना नया ठिकाना: जिस समय झारखंड में लालखंडी अपने आप को मजबूत करने में लगे हुए थे उसी समय बंगाल में नक्सलियों के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया जा रहा था. बंगाल पुलिस के अभियान से घबराकर नक्सलियों की एक टोली छिपते छुपाते गिरिडीह के पारसनाथ पहुंची, वहां लालखंडियों से नक्सली संगठन के नेताओं की मुलाकात हुई. पारसनाथ में ही लाल खंड का विलाय भाकपा माओवादियों के साथ हो गया. धीरे-धीरे नक्सलियों ने पारसनाथ को अपने मजबूत किले में तब्दील कर लिया और वहीं से समानांतर हुकूमत चलाने लगे. जिस समय पारसनाथ से नक्सलियों के समानांतर सरकार चल रही थी उसी दौरान झारखंड के चतरा जिले में भी नक्सलवाद का फैलाव हुआ. धीरे-धीरे नक्सली संगठन जमीन से जुड़े मामलों में दखल देने लगे. पांच साल में हालात इतने खराब हुए की जमींदारों को घर छोड़ना पड़ा. इस दौरान कइयों के घर में आगजनी हुई, जमीन छिन कर भूमिहीनों को बांटा गया। ऐसे में नक्सली आंदोलन से लोगों का जुड़ाव होते चला गया.
2009 में शुरू हुआ ऑपरेशन ग्रीन हंट: राज्य सरकार अपने खुद के बूते पर नक्सलियों से लोहा लेने में नाकामयाब रही थी. ऐसे में नक्सलियों को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार की पैरामिलिटरी फोर्स और राज्य बलो का एक संयुक्त अभियान साल 2009 में शुरू किया गया, जिसे ऑपरेशन ग्रीन हंट का नाम दिया गया. हालांकि ऑफिसियल रूप से सुरक्षाबलों ने कभी भी इस ऑपरेशन को ग्रीन हंट के नाम से इंगित नहीं किया. झारखंड सहित 'रेड कॉरिडोर' में आने वाले पांच राज्यों में नवंबर, 2009 में इस अभियान को शुरू किया गया था. ऑपरेशन ग्रीन हंट भी काफी सफल रहा है और कई नक्सलियों को इसके जरिए ढेर किया गया है. वहीं कई नक्सलियों आत्ममसमर्पण किया है. सबसे महत्वपूर्ण इस ऑपरेशन के जरिए कई नक्सली हमलों को रोकने में भी मदद मिली, 2009 से लेकर 2016 तक नक्सली लगातार पुलिस पर हावी होने के लिए बड़े हमले करते रहे लेकिन 2017 से लेकर 2022 तक पुलिस की विशेष रणनीति की वजह से झारखंड में नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है. अगर जिस तरह का अभियान झारखंड में वर्तमान समय में चल रहा है उसे आगे भी संजीदगी के साथ जारी रखा जाए तो आने वाले वर्ष में झारखंड से नक्सलवाद का खात्मा निश्चित है.
22 सालों में 541 पुलिसकर्मी और 1887 आम लोग हुए नक्सल हिंसा के शिकार: झारखंड गठन के बाद नक्सली वारदातों में 541 से ज्यादा पुलिसकर्मी और 1887 आम लोग मारे गए हैं. वहीं, झारखंड पुलिस ने साल 2001-22 के बीच 319 नक्सलियों को भी मुठभेड़ों में मार गिराया है. भाकपा माओवादियों के हुए बड़े हमलों में पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार, डीएसपी स्तर के अधिकारी डीएसपी प्रमोद कुमार रांची के बुंडू में, पलामू में देवेंद्र राय, चतरा में विनय भारती तक को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया. झारखंड गठन के ठीक एक वर्ष पहले लोहरदगा एसपी रहे अजय कुमार सिंह भी नक्सली हमले में शहीद हो गए थे.
कितने पुलिसकर्मी हुए शहीद
- 2001 में 55 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2002 में 69 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2003 में 20 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2004 में 45 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2005 में 30 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2006 में 45 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2007 में 11 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2008 में 39 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2009 में 64 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2010 में 24 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2011 में 32 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2012 में 26 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2013 में 26 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2014 में 08 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2015 में 04 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2016 में 09 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2017 में 02 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2018 में 09 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2019 में 14 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2020 में 01 पुलिसकर्मी शहीद
- 2021 में 05 पुलिसकर्मी शहीद हुए
- 2022 के अक्टूबर माह तक 03 पुलिसकर्मी शहीद हुए हैं.