रांचीः सरकार द्वारा कोर्ट फी बढ़ाने का विरोध और झारखंड में अधिवक्ताओं की हड़ताल से न्यायिक कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा (Advocates strike in Jharkhand) है. स्टेट और जिला बार एसोसिएशन के साथ प्रदेश के 33 हजार अधिवक्ता झारखंड सरकार के फैसले का विरोध कर कार्य बहिष्कार कर रहे हैं. रविवार को अपने तय कार्यक्रम के तहत रांची में राज्य और जिला बार काउंसिल की आपात बैठक (Bar Council emergency meeting in Ranchi) हुई.
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6 और 7 जनवरी को कार्य बहिष्कार के बाद आगे की रणनीति बनाने के लिए झारखंड के सभी जिला के बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ स्टेट बार काउंसिल की आपात बैठक स्टेट बार काउंसिल परिसर में हुई. इस बैठक में अध्यक्ष राजेंद्र कृष्णा, उपाध्यक्ष राजेश कुमार शुक्ला, सदस्य BCI प्रशांत कुमार सिंह, हेमंत सिखरवार, संजय विद्रोही, धर्मेंद्र नारायण, मनोज कुमार, अनिल महतो, अमर सिंह, एके रसीदी, परमेश्वर मंडल, मृत्युंजय श्रीवास्तव, प्रयाग महतो, कुंदन प्रकाशन, राजकुमार राजू सहित सभी जिलों से आए अधिवक्ता शामिल हुए.
बैठक में सोमवार और मंगलवार (9-10 जनवरी) को भी न्यायिक कार्यों का बहिष्कार करने का फैसला लिया गया. राज्य भर के न्यायालयों में न्यायिक कार्य का बहिष्कार करेंगे. बैठक में मुख्यमंत्री हेमत सोरेन से मांग की गई कि वो अधिवक्ता संघ की पांच सूत्री मांगों पर फैसला लें. अधिवक्ताओं ने कहा कि मंगलवार की शाम तक सरकार ने मांग पर सार्थक कदम नहीं उठाया तो फिर ऑनलाइन बैठक कर आगे की रणनीति बनाएंगे. झारखंड बार काउंसिल के स्टैंड के खिलाफ जाने वाले अधिवक्ताओं को सोमवार शाम तक नोटिस भेज दिया जाएगा.
क्या है अधिवक्ताओं की मांगः राज्य के अधिवक्ता सरकार द्वारा कोर्ट फी में की गयी बढोतरी को वापस लेने, अधिवक्ताओं को मूलभूत सुविधाएं बढ़ाने, APP की बहाली, बजट में अधिवक्ता कल्याण के लिए राशि का प्रावधान करने, एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग और 07 जनवरी को मुख्यमंत्री द्वारा अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए की गयी घोषणाओं को सात दिनों में धरातल पर उतारने की मांग कर रहे हैं (Opposed to increase court fee in Jharkhand).
रविवार की इस बैठक में महाधिवक्ता राजीव रंजन द्वारा मुख्यमंत्री के साथ हुई वार्ता को स्टेट बार काउंसिल ने अविधिक करार दिया है. उन्होंने कहा कि यह संवाद बेमानी है क्योंकि इसमें झारखंड बार काउंसिल सम्मिलित नहीं हुआ, उन्होंने कहा कि महाधिवक्ता राज्य के 40 हजार अधिवक्ताओं के प्रतिनिधि नहीं हो सकते हैं. मीटिंग में अधिवक्ता संजय विद्रोही ने बताया कि वो इस मुद्दे को लेकर पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मिलने गए थे, राज्यपाल से मुलाकात हुई उनसे अपनी मांग भी रखी गयी. लेकिन मुख्यमंत्री से मिलने गए तो कहा गया कि 07 तारीख को मुख्यमंत्री संवाद में बात होगी, यह सही नहीं है.
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मुख्यमंत्री-अधिवक्ता संवाद में निवेदक में महाधिवक्ता का नाम रहने का जिक्र करते हुए अधिवक्ताओं ने कहा कि 40 हजार अधिवक्ता का रखवाला महाधिवक्ता नहीं हो सकते. पलामू से आये अधिवक्ता ने कहा कि कोर्ट फी कम करने को लेकर सरकार कहती है कि विभिन्न राज्यों की कोर्ट फी के स्वरूप की जानकारी लेंगे, इसकी जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि झारखंड बिहार से अलग होकर बना है और अन्य कई बाईलॉज बिहार से लिया गया है तब कोर्ट फी भी उतना दिया जाए जितना बिहार में है. एक सप्ताह में सरकार अपनी घोषणाओं को अमल लाएं.
देवघर और धनबाद से आए जिला बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कहा कि सरकार से टकराने की सोच नहीं रखना चाहिए, हमें यह भी सोचना चाहिए कि जो अधिवक्ता का घर गृहस्थी हर दिन चलने वाले न्यायिक कार्यों से होता है उनका भी ख्याल रखना चाहिए. इन पदाधिकारियों ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शनिवार को जो घोषणा की है, उसपर भरोसा एसोसिएशन के सदस्यों को रखना चाहिए.