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हर गरीब आदिवासियों में खुद की छवि देखते थे स्टेन स्वामी, ऐसा रहा तमिलनाडु से झारखंड तक का सफर

फादर स्टेन स्वामी ने सोमवार को मुंबई के फैमिली अस्पताल में अंतिम सांस ली. 1991 में झारखंड पहुंचे स्टेन स्वामी करीब 30 सालों तक आदिवासी क्षेत्रों में काम करते रहे. उनके ऊपर कई गंभीर आरोप भी थे. इस रिपोर्ट में पढ़िये स्टेन स्वामी का तमिलनाडु से झारखंड तक का सफर.

Stain Swami
स्टेन स्वामी
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Published : Jul 5, 2021, 7:12 PM IST

रांची: एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का सोमवार को मुंबई में निधन हो गया. 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के त्रिची में जन्मे स्टेन स्वामी करीब 30 साल पहले 1991 में झारखंड आए थे. आदिवासियों की हक के लिए स्टेन स्वामी ने लंबी लड़ाई लड़ी. उन्होंने संविधान में पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासियों को मिले विशेष अधिकार की रक्षा, पेसा (पंचायत एक्टेंशन टू शेड्यूल एरिया) कानून आदि को लेकर कई लड़ाइयां लड़ी.

ऐसा रहा सफर

जमशेदपुर के जेवियर सेवा संस्थान के डॉ. जोसेफ मरियानुस कुजूर बताते हैं कि स्टेन स्वामी की प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु के त्रिची में हुई. 1957 में वे सोसाइटी ऑफ जीसस के सदस्य बने. 1965 में वे पहली बार चाईबासा आए थे. 1965 से 1967 तक वे सेंट जेवियर्स स्कूल में शिक्षक के पद पर रहे. 1967 में वे फिलीपिंस चले गए. 1967 से 1971 तक उन्होंने ईश शास्त्र की पढ़ाई की. इसके बाद वहीं से एमए की डिग्री ली.

यह भी पढ़ें: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी फादर स्टेन स्वामी का निधन, पढ़िए सोशल मीडिया पर किसने क्या कहा

15 सालों तक रहे इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष

फिलीपिंस से लौटने के बाद उन्होंने बेंगलुरू में भी कुछ वक्त तक पढ़ाई की. 1975 से 1990 तक वे इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट (आईएसआई) के डायरेक्टर रहे. 1991 में स्टेन स्वामी चाईबासा आए. तब बिहार-झारखंड एक हुआ करता था. यहां उन्होंने आदिवासियों की हक के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन और ट्राइब एडवाइजरी काउंसिल ऑफ झारखंड सरकार के पूर्व सदस्य रतन तिर्की बताते हैं कि स्टेन स्वामी हर दलित, आदिवासी और पिछड़ों में अपनी छवि देखते थे.

स्टेन स्वामी को आइकॉन मानते थे युवा

चाईबासा में उन्होंने देखा कि आदिवासियों के अधिकार की रक्षा नहीं हो रही है. तब उन्होंने हक के लिए आवाज उठाई. अन्याय के खिलाफ लोगों को एकजुट किया. धीरे-धीरे युवा उन्हें अपना आइकॉन मानने लगे. वे युवाओं को बताते कि आप बिरसा मुंडा, सिदो कान्हो, नीलांबर-पीतांबर के वंशज हैं. वे युवाओं में जोश भरते थे.

रतन तिर्की के मुताबिक स्टेन स्वामी ने झारखंड के लिए भी आंदोलन किया. उनका यह मानना था कि असली लड़ाई शिक्षा के द्वारा ही लड़ी जा सकती है. वे बच्चों की शिक्षा पर बल देते थे. उनकी यह सोच थी कि पढ़े लिखे युवा ही देश की तकदीर बदल सकते हैं. वे युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की बात करते थे. आदिवासियों और दलितों को वे कहते थे कि साथ मिलकर लड़ो तो सरकार जरूर झुकेगी.

आदिवासियों पर लिखी कई किताबें

स्टेन स्वामी ने विस्थापन, जमीन अधिग्रहण, स्वायत्त, पत्थलगड़ी को लेकर भी आवाज मुखर की. आदिवासियों को लेकर कई आर्टिकल और किताबें लिखी. 2015-16 के दौरान नक्सल गतिविधि का आरोप लगाकर 102 युवाओं को गिरफ्तार किया गया तब स्टेन स्वामी ने सभी पर अध्ययन किया. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक 97% लोग फॉल्स एलीगेशन के तहत गिरफ्तार हुए थे. इसके अलावा झारखंड के अलग-अलग जेलों में बंद आदिवासियों का मामला उन्होंने कोर्ट में उठाया.

यह भी पढ़ें: फादर स्टेन स्वामी का मुंबई में निधन, जानिए झारखंड से क्या था नाता

स्टेन स्वामी का विवादों से पुराना नाता

स्टेन स्वामी का विवादों से पुराना नाता रहा है. साल 2017 में पथलगड़ी आंदोलन को लेकर स्टेन स्वामी विवादों में आए थे. खूंटी में लोगों को पत्थलगड़ी के लिए उकसाने के आरोपी स्टेन स्वामी पर पुलिस ने देशद्रोह, सोशल मीडिया के माध्यम से पत्थलगड़ी को बढ़ावा देने, सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने और सरकारी योजनाओं का विरोध करने का आरोप लगाया था.

खूंटी थाना में 26 जुलाई 2018 को आईटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. पुणे के भीमा कोरेगांव केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने अपनी 10 हजार पन्नों की चार्जशीट में स्टेन स्वामी को भाकपा माओवादी संगठन का सक्रिय सदस्य बताया था. उन पर माओवादी कैडरों के लिए फंड का जुगाड़ करने का आरोप भी लगाया गया. 8 अक्टूबर 2020 की रात फादर स्टेन स्वामी को रांची के नामकुम के बगइचा स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया था.

रांची: एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का सोमवार को मुंबई में निधन हो गया. 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के त्रिची में जन्मे स्टेन स्वामी करीब 30 साल पहले 1991 में झारखंड आए थे. आदिवासियों की हक के लिए स्टेन स्वामी ने लंबी लड़ाई लड़ी. उन्होंने संविधान में पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासियों को मिले विशेष अधिकार की रक्षा, पेसा (पंचायत एक्टेंशन टू शेड्यूल एरिया) कानून आदि को लेकर कई लड़ाइयां लड़ी.

ऐसा रहा सफर

जमशेदपुर के जेवियर सेवा संस्थान के डॉ. जोसेफ मरियानुस कुजूर बताते हैं कि स्टेन स्वामी की प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु के त्रिची में हुई. 1957 में वे सोसाइटी ऑफ जीसस के सदस्य बने. 1965 में वे पहली बार चाईबासा आए थे. 1965 से 1967 तक वे सेंट जेवियर्स स्कूल में शिक्षक के पद पर रहे. 1967 में वे फिलीपिंस चले गए. 1967 से 1971 तक उन्होंने ईश शास्त्र की पढ़ाई की. इसके बाद वहीं से एमए की डिग्री ली.

यह भी पढ़ें: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी फादर स्टेन स्वामी का निधन, पढ़िए सोशल मीडिया पर किसने क्या कहा

15 सालों तक रहे इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष

फिलीपिंस से लौटने के बाद उन्होंने बेंगलुरू में भी कुछ वक्त तक पढ़ाई की. 1975 से 1990 तक वे इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट (आईएसआई) के डायरेक्टर रहे. 1991 में स्टेन स्वामी चाईबासा आए. तब बिहार-झारखंड एक हुआ करता था. यहां उन्होंने आदिवासियों की हक के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन और ट्राइब एडवाइजरी काउंसिल ऑफ झारखंड सरकार के पूर्व सदस्य रतन तिर्की बताते हैं कि स्टेन स्वामी हर दलित, आदिवासी और पिछड़ों में अपनी छवि देखते थे.

स्टेन स्वामी को आइकॉन मानते थे युवा

चाईबासा में उन्होंने देखा कि आदिवासियों के अधिकार की रक्षा नहीं हो रही है. तब उन्होंने हक के लिए आवाज उठाई. अन्याय के खिलाफ लोगों को एकजुट किया. धीरे-धीरे युवा उन्हें अपना आइकॉन मानने लगे. वे युवाओं को बताते कि आप बिरसा मुंडा, सिदो कान्हो, नीलांबर-पीतांबर के वंशज हैं. वे युवाओं में जोश भरते थे.

रतन तिर्की के मुताबिक स्टेन स्वामी ने झारखंड के लिए भी आंदोलन किया. उनका यह मानना था कि असली लड़ाई शिक्षा के द्वारा ही लड़ी जा सकती है. वे बच्चों की शिक्षा पर बल देते थे. उनकी यह सोच थी कि पढ़े लिखे युवा ही देश की तकदीर बदल सकते हैं. वे युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की बात करते थे. आदिवासियों और दलितों को वे कहते थे कि साथ मिलकर लड़ो तो सरकार जरूर झुकेगी.

आदिवासियों पर लिखी कई किताबें

स्टेन स्वामी ने विस्थापन, जमीन अधिग्रहण, स्वायत्त, पत्थलगड़ी को लेकर भी आवाज मुखर की. आदिवासियों को लेकर कई आर्टिकल और किताबें लिखी. 2015-16 के दौरान नक्सल गतिविधि का आरोप लगाकर 102 युवाओं को गिरफ्तार किया गया तब स्टेन स्वामी ने सभी पर अध्ययन किया. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक 97% लोग फॉल्स एलीगेशन के तहत गिरफ्तार हुए थे. इसके अलावा झारखंड के अलग-अलग जेलों में बंद आदिवासियों का मामला उन्होंने कोर्ट में उठाया.

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स्टेन स्वामी का विवादों से पुराना नाता

स्टेन स्वामी का विवादों से पुराना नाता रहा है. साल 2017 में पथलगड़ी आंदोलन को लेकर स्टेन स्वामी विवादों में आए थे. खूंटी में लोगों को पत्थलगड़ी के लिए उकसाने के आरोपी स्टेन स्वामी पर पुलिस ने देशद्रोह, सोशल मीडिया के माध्यम से पत्थलगड़ी को बढ़ावा देने, सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने और सरकारी योजनाओं का विरोध करने का आरोप लगाया था.

खूंटी थाना में 26 जुलाई 2018 को आईटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. पुणे के भीमा कोरेगांव केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने अपनी 10 हजार पन्नों की चार्जशीट में स्टेन स्वामी को भाकपा माओवादी संगठन का सक्रिय सदस्य बताया था. उन पर माओवादी कैडरों के लिए फंड का जुगाड़ करने का आरोप भी लगाया गया. 8 अक्टूबर 2020 की रात फादर स्टेन स्वामी को रांची के नामकुम के बगइचा स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया था.

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