रांची: गैर सरकारी संगठन बनाकर राज्य में विकास कार्य का दावा करने वाली संस्थाओं की संख्या झारखंड में इन दिनों काफी बढ़ गई है. वैसे तो यह सिलसिला झारखंड गठन के पूर्व संयुक्त बिहार के समय से ही है, लेकिन हाल के वर्षों में संस्थानों के निबंधन में काफी तेजी आई है. इसके पीछे कई कारण हैं.
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संस्थाओं का सरकारी शुल्क महज 50 रुपए
राज्य में सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत निबंधित होने वाली संस्थाओं का सरकारी शुल्क आज भी महज 50 रुपये है, जबकि बिहार और अन्य राज्यों में निबंधन शुल्क बहुत ज्यादा है. दूसरी सबसे प्रमुख कारण सरकार के पास कोई मैकेनिज्म नहीं है, जो इन संस्थाओं की मॉनेटरिंग कर सके. नियमानुसार, हर साल रजिस्टर्ड संस्था को ऑडिट रिपोर्ट देनी होती है, लेकिन जो संस्था ऑडिट रिपोर्ट नहीं देती है उस पर कारवाई करने का अधिकार निबंधक महानिरीक्षक कार्यालय को नहीं है. यही वजह है कि रोजाना 10 से 15 नए एनजीओ के निबंधन के लिए निबंधक महानिरीक्षक कार्यालय में जमा होते हैं.
विकास कार्य करने का दावा
आंकड़ों के अनुसार, 2001 से 2016 के बीच ऑफलाइन 12 हजार 053 संस्था निबंधित हुई है, जबकि 2016 में शुरू हुई ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन में अब तक 6 हजार 148 रजिस्टर्ड हो चुके हैं. इस तरह से झारखंड में 18 हजार 201 एनजीओ निबंधित होकर काम कर रहे हैं. इसके अलावा सैकड़ों नेशनल और इंटरनेशनल संस्था झारखंड में विकास कार्य करने का दावा कर रही हैं.
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कैसे होता है रजिस्ट्रेशन
गैर-सरकारी संगठन पंजीकरण निम्न तरीकों से होता है. चौंकाने वाली बात यह है की ऐसी निबंधित गैर निबंधित सैकड़ों ऐसी संस्थाएं हैं, जो बगैर निबंधन के धार्मिक, सामाजिक और सरकारी कार्यों में निजी स्वार्थवश काम कर रही हैं. एनजीओ पंजीकरण के बाद गैर-सरकारी संगठन कर लाभ लेने के लिए आयकर अधिनियम की धारा 12 ए के तहत पंजीकरण कराकर कराधान से मुक्त होते हैं. गैर सरकारी संगठन अपने दाताओं को अपने दान (Donation) पर कराधान से छूट देने की अनुमति देने के लिए धारा 80G के तहत खुद को पंजीकृत कराते हैं. गैर सरकारी संगठन विदेशी फंड को स्वीकार करने के लिए गृह मंत्रालय के एफसीआरए डिवीजन से पंजीकरण कराते हैं.
सरकारी कार्य के जरिए ठेकेदारी प्रथा की शुरुआत
जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाली दयामनी बारला ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि झारखंड में ऐसे फर्जी संस्थाओं की संख्या बड़े पैमाने पर है, जो अपने एजेंडों पर काम करती है. इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ निजी स्वार्थ होता है. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता एस अली ने सामाजिक संगठनों के बदलते रूप के लिए सरकारी कार्य के जरिए ठेकेदारी प्रथा की शुरुआत होने को माना है. एस अली ने बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से फल फूल रहे ऐसे फर्जी संस्थानों पर कारवाई करने की मांग की है, जो कभी वृद्धाश्रम चलाने के नाम पर तो कभी वृक्षारोपण और जागरूकता फैलाने के नाम पर पैसे की उगाही करते हैं.
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हमेशा उठते रहे हैं सामाजिक संगठनों पर सवाल
गैर सरकारी संस्थाओं को मिलने वाली डोनेशन के पैसों पर टैक्स में छूट मिलती है, जिसका लेखा जोखा ऑडिट रिपोर्ट विभाग को मिलने पर ही सरकार को पता चलेगा. खास बात यह है कि राज्य के वित्त विभाग के पास भी कोई रेकॉर्ड नहीं है. वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव की मानें तो विभाग को इस संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. चापाकल मरम्मती से लेकर वृक्षारोपण तक के सरकारी कार्यों में लगे इन सामाजिक संगठनों पर सवाल उठते रहे हैं. अब तक विभिन्न विभागों में सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी करने के कारण पांच सौ से अधिक सामाजिक संगठनों को ब्लैकलिस्टेड भी किया जा चुका है, लेकिन सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि वैसे संगठन जो निबंधित हुए वगैर धार्मिक, सांस्कृतिक और सरकारी योजनाओं में हस्तक्षेप कर लाभ लेने में सफल हो जाते हैं, उन पर अंकुश आखिर कैसे लगेगा.