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उदीयमान भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य आज, यहां जानें सूर्योदय का समय

लोकआस्था के महापर्व छठ के चौथे दिन आज उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. दूसरा अर्घ्य अर्पित करने के साछ ही छठ का समापन हो जाएगा. छठ के दौरान घाटों में विहंगम नजारा देखने को मिल रहा है.

छठ पूजा
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Published : Nov 11, 2021, 6:22 AM IST

Updated : Nov 11, 2021, 8:24 AM IST

रांची: छठ महापर्व (Chhath Puja In jharkhand) के तीसरे दिन बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के बाद आज चौथे दिन उदीयमान भगवान भास्कर (Chhath Puja 2021 Arghya Time) को अर्घ्य दिया जाता है. जिस घाट से शाम का अर्घ्य दिया जाता है, अगले दिन वहीं से सुबह का अर्घ्य दिया जाता है.

यह भी पढ़ें- chhath puja: भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य, छठ गीतों से गूंजते रहे घाट

सुबह सूर्योदय से पहले ही लोग अपने-अपने घरों से घाटों के लिए निकल पड़ते हैं. कृष्णपक्ष के चंद्रमा के कारण आकाश में कालिमा छाई रहती है. व्रती बांस से बनी टोकरियों को एक अस्थाई मंडप के नीचे सुरक्षित रखते हैं. इस मंडप को गन्ने की टहनियों से बनाया जाता है. एक विशेष सांचा बनाकर इसके कोनों को मिट्टी से बनी हाथी और दीपक की आकृतियों से संवारा जाता है. फिर व्रती और परिवारजन नदी या जलाशय में कमर भर पानी में खड़े रह भगवान भास्कर के उदित होने का इंतज़ार करते हैं. जैसे ही सूर्य की किरणें उदित होती हैं, साड़ी व धोती पहने स्त्री–पुरुष पानी में उतर जाते हैं. इस दौरान भगवान सूर्य की अर्चना करते वक्त मंत्रोच्चार किया जाता है.

उगते सूर्य को अर्घ्य

चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठी माई को याद करते हुए माताएं अपने परिवार की सुख और समृद्धि का वर मांगती है और प्रसाद खाकर व्रत का पारण करते हैं. दूध और जल से भगवान को अर्घ्य अर्पित कर व्रती सुख समृद्धि की कामना करते हैं. प्रकृति पर्व छठ के मौके पर चारों ओर भक्तिमय वातावरण छठ के गीतों से गुंजयमान होता है. पूजा अर्चना के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं और इसी के साथ छठ महापर्व का समापन हो जाता है.

भगवान ब्रह्माजी की पुत्री हैं छठ देवी

शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मईया के नाम से सभी जानते हैं. शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है. इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.

सुबह 6 बजकर 40 मिनट पर सुर्योदय

11 नवंबर को सूर्योदय का समय 06 बजकर 40 मिनट और 10 सेकेंड बताया जा रहा है. उषा अर्घ्य के बाद चार दिवसीय महापर्व छठ का समापन हो जाएगा. उसके बाद छठव्रती अगल साल छठ के आने का इंतजार करेंगे. फिलहाल छठी मईया के गीतों से पूरा बिहार गूंज रहा है. हर ओर छठ की भक्तिमय छटा देखने को मिल रही है.

रांची: छठ महापर्व (Chhath Puja In jharkhand) के तीसरे दिन बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के बाद आज चौथे दिन उदीयमान भगवान भास्कर (Chhath Puja 2021 Arghya Time) को अर्घ्य दिया जाता है. जिस घाट से शाम का अर्घ्य दिया जाता है, अगले दिन वहीं से सुबह का अर्घ्य दिया जाता है.

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सुबह सूर्योदय से पहले ही लोग अपने-अपने घरों से घाटों के लिए निकल पड़ते हैं. कृष्णपक्ष के चंद्रमा के कारण आकाश में कालिमा छाई रहती है. व्रती बांस से बनी टोकरियों को एक अस्थाई मंडप के नीचे सुरक्षित रखते हैं. इस मंडप को गन्ने की टहनियों से बनाया जाता है. एक विशेष सांचा बनाकर इसके कोनों को मिट्टी से बनी हाथी और दीपक की आकृतियों से संवारा जाता है. फिर व्रती और परिवारजन नदी या जलाशय में कमर भर पानी में खड़े रह भगवान भास्कर के उदित होने का इंतज़ार करते हैं. जैसे ही सूर्य की किरणें उदित होती हैं, साड़ी व धोती पहने स्त्री–पुरुष पानी में उतर जाते हैं. इस दौरान भगवान सूर्य की अर्चना करते वक्त मंत्रोच्चार किया जाता है.

उगते सूर्य को अर्घ्य

चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठी माई को याद करते हुए माताएं अपने परिवार की सुख और समृद्धि का वर मांगती है और प्रसाद खाकर व्रत का पारण करते हैं. दूध और जल से भगवान को अर्घ्य अर्पित कर व्रती सुख समृद्धि की कामना करते हैं. प्रकृति पर्व छठ के मौके पर चारों ओर भक्तिमय वातावरण छठ के गीतों से गुंजयमान होता है. पूजा अर्चना के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं और इसी के साथ छठ महापर्व का समापन हो जाता है.

भगवान ब्रह्माजी की पुत्री हैं छठ देवी

शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मईया के नाम से सभी जानते हैं. शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है. इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.

सुबह 6 बजकर 40 मिनट पर सुर्योदय

11 नवंबर को सूर्योदय का समय 06 बजकर 40 मिनट और 10 सेकेंड बताया जा रहा है. उषा अर्घ्य के बाद चार दिवसीय महापर्व छठ का समापन हो जाएगा. उसके बाद छठव्रती अगल साल छठ के आने का इंतजार करेंगे. फिलहाल छठी मईया के गीतों से पूरा बिहार गूंज रहा है. हर ओर छठ की भक्तिमय छटा देखने को मिल रही है.

Last Updated : Nov 11, 2021, 8:24 AM IST
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