रांची: हेमंत सरकार के कई महत्वपूर्ण फैसले सिर्फ इसलिए अटक रहे हैं क्योंकि यहां के अधिकारियों को हिन्दी और अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है. इसकी वजह से सरकार की बार-बार किरकिरी हो रही है. इसबार तो मामला थोड़ा ज्यादा ही गंभीर हो गया है. साहब लोगों ने संवैधानिक व्यवस्था को भी नजरअंदाज करना शुरू कर दिया है. राजभवन ने इसकी पोल खोली है.
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दरअसल, भारतीय मुद्रांक शुल्क अधिनियम 1948 में संशोधन के लिए वित्त विधेयक 2021 को पिछले शीतकालीन सत्र में पास कराया गया था. जब उसे राज्यपाल की स्वीकृति के लिए राजभवन भेजा गया तो उसमें कई भाषायी त्रुटियां मिली. करीब 14 बिंदुओं को चिन्हित करते हुए विधेयक को वापस भेजा दिया गया था. लेकिन हद तब हो गई जब त्रुटियों को सुधारकर विधानसभा से पास कराए बगैर राजभवन को भेज दिया गया. यह चूक किस स्तर पर हुई है, इस बारे में कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. वित्त विभाग और विधि विभाग का कोई भी पदाधिकारी ऑन रिकॉर्ड कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. सबसे खास बात यह है कि अधिकारियों की इस चूक की वजह से सरकार को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है. अगर यह बिल पास हो गया होता तो स्टांप शुल्क में वृद्धि होने से सरकार को प्रतिवर्ष 200 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व मिल पाता.
इससे पहले भी लौटाए जा चुके हैं दो बिल: इस साल यह तीसरा बिल है जिसके कुछ बिंदुओं पर आपत्ति जताते हुए राजभवन ने लौटाया है. इससे पहले फरवरी माह में राजभवन ने ट्राइबल यूनिवर्सिटी बिल को वापस किया था. इस बिल के हिन्दी और अंग्रेजी संस्करण में कई त्रुटियां थीं. जनजातीय भाषा और संस्कृति को संरक्षण और शोध के मद्देनजर सीएम ने इस दिशा में कदम बढ़ाया था. लेकिन अधिकारियों के कारण मामला लटक गया. यही हाल झारखंड भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण विधेयक के साथ हुआ. इसमें भी हिन्दी और अंग्रेजी प्रारूप में कई गड़बडियों के साथ-साथ भीड़ की परिभाषा पर सवाल उठाते हुए राजभवन ने लौटा दिया था. अब तीनों बिल की त्रुटियों को सुधाकर विधानसभा से पास कराने के बाद राजभवन भेजना होगा, जो मॉनसून सत्र में ही संभव हो पाएगा.
तीन विभाग सवालों के घेरे में, जिम्मेवार कौन: साल 2021 के शीतकालीन सत्र के दौरान पास तीन विधेयकों को राजभवन ने एक के बाद एक लौटा दिया है. ये तीनों बेहद महत्वपूर्ण विधेयक हैं. ट्राइबल यूनिवर्सिटी विधेयक को शिक्षा विभाग, मॉब लिंचिग निवारण विधेयक को गृह विभाग ने तैयार किया था. जबकि भारतीय मुद्रांक शुल्क अधिनियम 1948 में संशोधन के लिए वित्त विधेयक को वित्त विभाग ने तैयार किया था. आश्चर्य की बात यह है कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकार के कामकाज पर असर पड़ा है. फिर भी अबतक किसी भी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. ईटीवी भारत की टीम ने इस बाबत सूबे के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया.