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पीपीई किट बना कमाई का जरिया, निजी अस्पतालों में मरीजों से वसूली जा रही है मनमानी कीमत

कोरोना संक्रमण के दौर में पीपीई किट निजी अस्पतालों के लिए कमाई का जरिया बन गई है. बाजारों में जहां ये किट 250 से 700 रुपए के बीच उपलब्ध है. वहीं अस्पतालों में मरीज और उनके परीजनों से इसकी मनमानी कीमत वसूली जा रही है. जिससे अस्पतालों में भर्ती ये मरीज काफी परेशान हैं.

PPE kit became a means of earning
पीपीई किट बना कमाई का जरिया
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Published : Jun 10, 2021, 5:22 AM IST

रांची: पिछले साल देश और राज्य में जब कोरोना ने दस्तक दी थी तब देश में पीपीई किट का निर्माण नहीं हो रहा था. बाहर से मंगाए गए पीपीई किट काफी महंगे दामों में बाजार में बेचे जा रहे थे. लेकिन जब इस मामले में देश आत्मनिर्भर हो गया है. तब भी निजी अस्पतालों की मनमानी के कारण मरीजों को काफी ज्यादा कीमत पीपीई किट के लिए चुकाना पड़ रहा है. बाजार में जिस किट की कीमत 250 से 700 के बीच है वहीं अस्पतालों में इसकी कीमत हजारों में वसूली जा रही है.

ये भी पढे़ं- डायग्नोस्टिक सेंटर या लूट का अड्डा? पोस्ट कोविड जांच में चांदी काट रहे रांची के निजी जांच केंद्र

एक मरीज से वसूले जाते हैं कई पीपीई किट के दाम

राजधानी रांची के ही कई निजी अस्पतालों में ICU और कोविड वार्ड में पड़े एक एक मरीज से हर दिन 10-12 पीपीई किट की राशि वसूले जाने की खबर मिलती है पर कोई भी परिजन इसकी शिकायत लेकर न तो कैमरे के सामने आता है और न ही सिविल सर्जन से शिकायत करता है. अलबत्ता कुछ डॉक्टर ही बताते हैं कि निजी अस्पताल कैसे कमाई का कोई मौका नहीं छोड़ते और डॉक्टर क्यों लाचार हो जाते हैं. डॉक्टर अविनाश की माने तो अगर लगातार ड्यूटी करना पड़े तब भी दिन भर एक ही पीपीई किट से काम चल जाता है. ज्यादा से ज्यादा दो पीपीई किट की जरूरत पड़ती है.

निजी अस्पताल क्यों लेते हैं ज्यादा पैसे?

इस सवाल के जवाब में डॉक्टर कहते हैं कि प्राइवेट अस्पताल और खासकर कॉर्पोरेट अस्पताल में डॉक्टरों की कोई खास भूमिका नही होती और कुल बिल का 20% ही ज्यादा से ज्यादा डॉक्टरों का होता है पर होटलों जैसी सुविधा देने वाले अस्पताल का लक्ष्य कमाई होता है. वैसे में ज्यादा वसूली कोई आश्चर्य नहीं है.

क्या है निजी अस्पतालों का रूख?

प्राइवेट हेल्थ प्रोवाइडर एसोसिएशन इंडिया के झारखंड चैप्टर के अध्यक्ष योगेश गंभीर कहते हैं कि अगर कोरोना संक्रमित मरीज ICU में है तो एक मरीज के लिए 08-10 पीपीई किट लग ही जाता है. डॉक्टर,नर्स,फार्मासिस्ट, पैथोलोजिस्ट, डाइटीशियन, हाउस कीपिंग स्टाफ सहित कई स्टाफ और कई शिफ्ट होते हैं,कोई अस्पताल पीपीई किट का ज्यादा पैसा नहीं लेता है. योगेश गंभीर कहते हैं कि जिस तरह की कैपिंग में कोरोना मरीजों के इलाज के रेट तय कर दिए गए हैं वैसे में सरकार से एक बार फिर से रेट पुनर्निर्धारित करने के लिए आग्रह किया गया है.

नियमों के पालन की मॉनिटरिंग करे सरकार

इसी मामले पर डॉक्टर गजेंद्र नायक कहते हैं कि सरकार की तरफ से तो नियम बना दिया गया, किस मद में कितना पैसा लेना है. पर क्या उसका पालन हो रहा है या नहीं ये कौन देखेगा. उन्होंने कहा सरकार को नियमों का पालन हो रहा है या नहीं इसकी मॉनिटरिंग करनी चाहिए.

बिना शिकायत कैसे करें कार्रवाई?

पीपीई किट को लेकर जब ईटीवी भारत ने रांची सिविल सर्जन से सवाल पूछे तो उनका जवाब चौंकाने वाला था, उन्होंने कहा अब तक इस मामले में एक भी शिकायत नहीं आयी है, ऐसे में कार्रवाई कैसे करें. सिविल सर्जन ने कहा उनके लिए संभव नहीं है कि सभी अस्पतालों का हर दिन जांच करायी जाए. सिविल सर्जन का ऐसा बयान तब है. जब सरकार ने मरीजों के इलाज पर खर्च को 3 तरह के जिलों में बांट कर न्यूनतम 5000 हजार रुपये से अधिकतम 12 हजार रुपये प्रति दिन फिक्स कर दिया है.

रांची: पिछले साल देश और राज्य में जब कोरोना ने दस्तक दी थी तब देश में पीपीई किट का निर्माण नहीं हो रहा था. बाहर से मंगाए गए पीपीई किट काफी महंगे दामों में बाजार में बेचे जा रहे थे. लेकिन जब इस मामले में देश आत्मनिर्भर हो गया है. तब भी निजी अस्पतालों की मनमानी के कारण मरीजों को काफी ज्यादा कीमत पीपीई किट के लिए चुकाना पड़ रहा है. बाजार में जिस किट की कीमत 250 से 700 के बीच है वहीं अस्पतालों में इसकी कीमत हजारों में वसूली जा रही है.

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एक मरीज से वसूले जाते हैं कई पीपीई किट के दाम

राजधानी रांची के ही कई निजी अस्पतालों में ICU और कोविड वार्ड में पड़े एक एक मरीज से हर दिन 10-12 पीपीई किट की राशि वसूले जाने की खबर मिलती है पर कोई भी परिजन इसकी शिकायत लेकर न तो कैमरे के सामने आता है और न ही सिविल सर्जन से शिकायत करता है. अलबत्ता कुछ डॉक्टर ही बताते हैं कि निजी अस्पताल कैसे कमाई का कोई मौका नहीं छोड़ते और डॉक्टर क्यों लाचार हो जाते हैं. डॉक्टर अविनाश की माने तो अगर लगातार ड्यूटी करना पड़े तब भी दिन भर एक ही पीपीई किट से काम चल जाता है. ज्यादा से ज्यादा दो पीपीई किट की जरूरत पड़ती है.

निजी अस्पताल क्यों लेते हैं ज्यादा पैसे?

इस सवाल के जवाब में डॉक्टर कहते हैं कि प्राइवेट अस्पताल और खासकर कॉर्पोरेट अस्पताल में डॉक्टरों की कोई खास भूमिका नही होती और कुल बिल का 20% ही ज्यादा से ज्यादा डॉक्टरों का होता है पर होटलों जैसी सुविधा देने वाले अस्पताल का लक्ष्य कमाई होता है. वैसे में ज्यादा वसूली कोई आश्चर्य नहीं है.

क्या है निजी अस्पतालों का रूख?

प्राइवेट हेल्थ प्रोवाइडर एसोसिएशन इंडिया के झारखंड चैप्टर के अध्यक्ष योगेश गंभीर कहते हैं कि अगर कोरोना संक्रमित मरीज ICU में है तो एक मरीज के लिए 08-10 पीपीई किट लग ही जाता है. डॉक्टर,नर्स,फार्मासिस्ट, पैथोलोजिस्ट, डाइटीशियन, हाउस कीपिंग स्टाफ सहित कई स्टाफ और कई शिफ्ट होते हैं,कोई अस्पताल पीपीई किट का ज्यादा पैसा नहीं लेता है. योगेश गंभीर कहते हैं कि जिस तरह की कैपिंग में कोरोना मरीजों के इलाज के रेट तय कर दिए गए हैं वैसे में सरकार से एक बार फिर से रेट पुनर्निर्धारित करने के लिए आग्रह किया गया है.

नियमों के पालन की मॉनिटरिंग करे सरकार

इसी मामले पर डॉक्टर गजेंद्र नायक कहते हैं कि सरकार की तरफ से तो नियम बना दिया गया, किस मद में कितना पैसा लेना है. पर क्या उसका पालन हो रहा है या नहीं ये कौन देखेगा. उन्होंने कहा सरकार को नियमों का पालन हो रहा है या नहीं इसकी मॉनिटरिंग करनी चाहिए.

बिना शिकायत कैसे करें कार्रवाई?

पीपीई किट को लेकर जब ईटीवी भारत ने रांची सिविल सर्जन से सवाल पूछे तो उनका जवाब चौंकाने वाला था, उन्होंने कहा अब तक इस मामले में एक भी शिकायत नहीं आयी है, ऐसे में कार्रवाई कैसे करें. सिविल सर्जन ने कहा उनके लिए संभव नहीं है कि सभी अस्पतालों का हर दिन जांच करायी जाए. सिविल सर्जन का ऐसा बयान तब है. जब सरकार ने मरीजों के इलाज पर खर्च को 3 तरह के जिलों में बांट कर न्यूनतम 5000 हजार रुपये से अधिकतम 12 हजार रुपये प्रति दिन फिक्स कर दिया है.

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