रांची: क्षेत्रीय भाषा की मान्यता को लेकर राज्य में जारी विवाद (Language Controversy in Jharkhand) थमने का नाम नहीं ले रहा है. मगही, अंगिका और भोजपुरी को मैट्रिक-इंटर स्तर की परीक्षा में कई जिलों में मान्यता मिलने पर सरकार के अंदर और बाहर विरोध के स्वर फूटने लगे हैं. मगही-भोजपुरी का विरोध कर रहे शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के बयान ने इस विवाद में आग में घी डालने का काम किया है.
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इधर, मान्यता को लेकर उठ रहे विवाद के बीच झारखंड हाई कोर्ट में विद्यापति स्मारक समिति द्वारा जनहित याचिका दाखिल कर राज्य सरकार पर मैथिली के साथ अन्याय करने की बात कहते हुए गुहार लगाई गई है. दरअसल, कार्मिक विभाग के द्वारा जारी चिठ्ठी में एक तरफ जिलों में कई भाषाओं को मान्यता दी गई है तो वहीं दूसरी ओर राज्य स्तर पर इन्हें बाहर रखा गया है. राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को मान्यता नहीं दी गई है, इसी तरह द्वितीय राजभाषा में स्थान पानेवाली मैथिली भाषा ना तो राज्य स्तर की परीक्षा में शामिल है और ना ही जिला स्तर पर उसे मान्यता दी गई है.
झारखंड में ये भाषा हैं दूसरी राजभाषा में शामिल: झारखंड में कुल 17 भाषा द्वितीय राजभाषा में शामिल हैं. 10 दिसंबर 2018 को प्रकाशित झारखंड गजट के अनुसार राज्य में उर्दू, संथाली, बंगला, खड़िया, मुंडारी, हो, कुडुख, कुरमाली, खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया, उड़िया, मगही, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका एवं भूमिज भाषा को मान्यता थी. राज्य सरकार के फैसले में दूसरी राजभाषा में शामिल मैथिली ही एकमात्र भाषा है जिसे ना तो जिलास्तरीय परीक्षा में मान्यता दी गई है और ना ही राज्य स्तरीय परीक्षा में यह शामिल है.
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क्षेत्रीय भाषा की मान्यता पर सियासत जारी: राज्य सरकार के द्वारा जारी अधिसूचना के बाद से इसपर सियासत जारी है. विपक्षी दल भाजपा आजसू ने हेमंत सरकार पर भाषा विवाद के जरिए नौकरी बेचने का आरोप लगाया है. पूर्व स्पीकर और वर्तमान में रांची के बीजेपी विधायक सीपी सिंह ने इसे सरकार प्रायोजित विवाद बताते हुए द्वितीय राजभाषा में शामिल सभी भाषाओं को मान्यता देने की मांग की है. वहीं मगही, भोजपुरी अंगिका का विरोध कर रही आजसू ने सरकार पर भाषा विवाद के जरिए नौकरी बेचने का आरोप लगाया है. पार्टी प्रवक्ता देवशरण भगत ने कहा है कि इस मुद्दे पर आजसू राज्य के सभी विधायकों से 10 से 15 फरवरी के बीच राय जानेगा और 7 मार्च को विधानसभा घेराव होगा.
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सत्तारूढ़ दलों के अंदर ऑल इज वेल नहीं: मगही, भोजपुरी, अंगिका की मान्यता पर उपजे विवाद की आग सत्तारूढ़ दलों के अंदर तक पहुंच गई है. शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के बयान और झामुमो के रुख से सरकार के सहयोगी दल कांग्रेस और राजद सहमत नहीं दिख रहे हैं. राजद कोटे के मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने भाषा के बजाय विकास की बात करने की सलाह देते हुए कहा है कि अभी वक्त भाषा, जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करने का नहीं है. वहीं, कांग्रेस नेता शमशेर आलम ने पार्टी का स्टैंड साफ करते हुए कहा है कि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस सभी भाषा और धर्म में विश्वास करती है. इधर सहयोगी दलों के रुख को भांपते हुए झामुमो का तेवर मंद पड़ा है. झामुमो नेता मनोज पांडे ने इस विवाद के लिए भाजपा आजसू को जिम्मेवार मानते हुए कहा है कि राज्य की जनता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में विश्वास करती है उनका फैसला सही ही होगा इसपर संदेह करना उचित नहीं है.
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बहरहाल, झारखंड में भाषाओं के मान्यता पर विवाद गहराता जा रहा है. इसके पीछे की मुख्य वजह जिला और राज्यस्तर पर अलग अलग मान्यता दिया जाना है. सत्तारूढ़ दल में इस मुद्दे पर एकमत नहीं होने से सरकार भी कन्फ्यूज है कि करें तो करें क्या.