हैदराबाद: आज, 14 फरवरी को जब दुनिया भर में जोड़े वैलेंटाइन डे मना रहे हैं, तो प्यार की परिभाषा गुलाब, चॉकलेट और कैंडल लाइट डिनर तक सीमित नहीं रह जाती. आइए आज हम आपको प्यार की एक ऐसी सच्ची कहानी सुनाते हैं, जिसके सामने प्यार के बड़े-बड़े दावे भी फीके पड़ जाएंगे. ये कहानी है बिहार के मोतिहारी के मोहम्मद सैदुल्लाह और उनकी पत्नी नूर की.
मोहम्मद सैदुल्लाह, एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने अपनी पत्नी के लिए कुछ ऐसा कर दिखाया जो शायद ही कोई कर पाता. 1975 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के दौरान, जब सैदुल्लाह को अपनी पत्नी तक पहुंचने में मुश्किल हो रही थी, उन्होंने एक नाव बनाने की ठानी. लेकिन सैदुल्लाह ने कुछ और ही कर दिखाया. उन्होंने बनाई पानी पर चलने वाली साइकिल!
कहा जाता है कि गांव जाने वाली नावें हमेशा खचाखच भरी रहती थीं, जिसकी वजह से सैदुल्लाह को अपनी पत्नी के पास समय पर पहुंचने में दिक्कत होती थी. एक दिन, एक मल्लाह ने बाढ़ के दौरान उन्हें बिना पैसे दिए नाव में बैठाने से मना कर दिया. यहीं से सैदुल्लाह के मन में इस साइकिल को बनाने का विचार आया. उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरकार इस अनोखे आविष्कार को अंजाम दिया.
अपनी पत्नी नूर के नाम पर रखा साइकिल का नाम
सैदुल्लाह ने अपनी इस साइकिल को पटना में गंगा नदी में भी चलाकर दिखाया था, जिसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया. और सबसे खास बात, उन्होंने अपने इस अनमोल आविष्कार का नाम अपनी पत्नी नूर के नाम पर रखा. यह उनके प्यार का अद्भुत प्रतीक था.
सैदुल्लाह के अन्य आविष्कार, डॉ. अब्दुल कलाम ने भी किया था सम्मानित
डॉ. अब्दुल कलाम भी उनकी प्रतिभा के कायल थे. उन्हें 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा ग्रासरूट इनोवेशन अवार्ड से सम्मानित किया गया था. उन्होंने कई आविष्कार किए, जिसके लिए उन्हें ग्रासरूट इनोवेशन अवार्ड से सम्मानित किया गया था. यह सम्मान उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा दिया गया था. उन्होंने एक या दो नहीं, बल्कि दर्जनों पुरस्कार जीते थे, लेकिन पानी में चलने वाली साइकिल ने उन्हें देश-विदेश में मशहूर कर दिया. दुर्भाग्यवश, मोहम्मद सैदुल्लाह (75) का 2023 में निधन हो गया, लेकिन उनकी कहानी आज भी प्रेरित करती है.
पैसे के अभाव में रह गई एक कसक
सैदुल्लाह ने अपनी प्रतिभा के दम पर बहुत कुछ हासिल किया, लेकिन एक कसक उनके दिल में हमेशा रही. पैसों की कमी के कारण वह अपने आविष्कारों को पेटेंट नहीं करा सके. इस बात का उन्हें हमेशा अफसोस रहा. आर्थिक तंगी के कारण उनके बनाए उत्पाद बाजार में नहीं आ सके.
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