रांची: सचिवालय घेराव के दौरान हुए उपद्रव और हिंसा को लेकर जिला प्रशासन के द्वारा धुर्वा थाना में दर्ज कराई गई प्राथमिकी पर राजनीति शुरू हो गई है. भारतीय जनता पार्टी ने सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए इस कार्रवाई की निंदा की है. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने सचिवालय घेराव के दौरान हुए लाठीचार्ज और उसके बाद धुर्वा थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी को तानाशाही बताते हुए राज्य सरकार की निंदा की है.
उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण ढंग से सचिवालय घेराव करने जा रहे भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर जिस तरह से बर्बरतापूर्ण ढंग से पुलिस की कार्रवाई की गई वह लोकतंत्र के लिए काला दिन था. भारतीय जनता पार्टी के सचिवालय घेराव आंदोलन पूर्व घोषित था. इसको लेकर पहले उस क्षेत्र में 144 लगाया गया और फिर लाठीचार्ज कर लोगों को पीटा गया, सर फोड़े गए. इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार की मंशा क्या है. उन्होंने इस आंदोलन को दबाने में अफसरों की भूमिका पर नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्हें भूलना नहीं चाहिए कि आज उनकी सरकार है कल हमारी भी सरकार होगी. जिस तरह से कार्रवाई की गई और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता से लेकर कार्यकर्ताओं के ऊपर में कांड दर्ज किए गए हैं. यह दिखाता है कि राज्य में अराजकता चरम पर है और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जाना तय है.
कानून तोड़ने पर कार्रवाई होना उचित-कांग्रेस: सचिवालय घेराव के दौरान धुर्वा गोल चक्कर के समीप मंगलवार को पुलिस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हुई तीखी नोकझोंक और झड़प के बाद की गई प्राथमिकी को उचित बताते हुए कांग्रेस ने कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में आंदोलन करना सभी का अधिकार है, मगर अराजकता फैला कर कानून तोड़ने का प्रयास यदि होता है तो कार्रवाई होना सर्वथा उचित है.
प्रदेश कांग्रेस महासचिव राकेश सिन्हा ने प्रशासन के द्वारा भाजपा कार्यकर्ता और नेताओं पर किए गए कांड दर्ज को उचित बताते हुए कहा है कि यह सरकार पूरी तरह से संजीदा है और कानून तोड़ने वाले बख्से नहीं जाएंगे. जिस तरह से मंगलवार को सचिवालय घेराव के बहाने भाजपा कार्यकर्ताओं ने कानून तोड़ने की कोशिश की ऐसे में पुलिस की कार्रवाई उचित थी और यह होना भी चाहिए था. इस पर राजनीति करना कहीं से भी उचित नहीं है. बहरहाल मंगलवार के सचिवालय घेराव के बाद बुधवार को धुर्वा थाना में प्रशासन के द्वारा भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं पर की गई एफआईआर से यह मुद्दा शांत होने के बजाय आग में घी डालने का काम किया है.