रांची: गर्मी झुलसा रही है. दूसरी तरफ शहर से लेकर गांव तक पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है. लेकिन मुसीबत के दौर में पानी के लिए सिल्ली इलाके में जो कुछ हुआ है, वह इसानियत और शिक्षित समाज का सिर शर्म से झुकाने के लिए काफी है. पूरी बात समझने के लिए आपको राजधानी से करीब 70 किमी दूर पश्चिम बंगाल की सीमा पर मौजूद सिल्ली विधानसभा क्षेत्र का आड़ाल नावाडीह गांव चलना होगा.
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यह गांव अचानक चर्चा में आ गया है. इसकी वजह है पानी के लिए लोहरा समाज के साथ छुआछूत का भाव. आरोप लगा है महतो समाज पर. गांव के चट्टान टोला में रहने वाले दो लोहरा परिवार की महिलाओं का कहना है कि उनके घर के आसपास के सभी सरकारी कुएं और चापानल सूख चुके हैं. उन्हें पानी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. उनके घर के नजदीक कलेश्वर महतो का निजी कुआं है. लेकिन उन्हें कुआं में पानी भरने नहीं दिया जाता है. लोहरा समाज की महिलाओं का कहना है कि छुआछूत की वजह से पानी भरने नहीं दिया जाता है.
वहीं, कलेश्वर महतो की पत्नी का कहना है कि यह कोई सरकारी कुआं नहीं है. इसमें पहले से ही कम पानी है. दूसरे लोग इस्तेमाल करने लगेंगे तो कुआं सूख जाएगा. तब उन्हें भी दिक्कत झेलनी पड़ेगी. इसी वजह से पानी भरने से मना किया जाता है. लेकिन जब भी लोहरा समाज की महिलाएं आती हैं तो उनके बर्तनों में पानी भर दिया जाता है. मतलब साफ है कि कुआं पर जब कलेश्वर महतो के परिवार की महिलाएं होंगी, तभी लोहरा समाज को पानी मिल पाएगा. अब यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि क्या वाकई यह छुआछूत और जात-पात का मसला है. पूरे मामले को समझने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने स्थानीय बीडीओ, थाना प्रभारी और जनप्रतिनिधि से बात की.
सिल्ली के थाना प्रभारी आकाश दीप ने कहा कि कलेश्वर महतो के कुआं में पानी कम है. वह उनका निजी कुआं है. इसलिए पानी भरने से मना किया जा रहा है. उनसे यह पूछा गया कि लोहरा समाज की महिला ऐसा क्यों कह रही है कि उनके साथ छुआछूत हो रहा है. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यह बेबुनियाद बात है. मामले की जांच के दौरान वहां के प्रमुख जीतन बड़ाइक भी थे. सभी पक्षों की बात सुनी गई है. फिलहाल चट्टान टोला के बगल में खराब पड़े चापाकल की मरम्मती की जा रही है. डीप बोरिंग भी कराने का प्रस्ताव भेजा गया है. चट्टान टोला से महज 100 मीटर की दूरी पर कलेश्वर महतो का कुआं है. जबकि 150 मीटर की दूरी पर जलमिनार है. अब चट्टान टोला की महिलाएं जलमिनार से पानी लाने जा रही हैं. इसको छुआछूत का रूप कैसे दे दिया गया, यह समझ से परे है. उन्होंने कहा कि आड़ाल नावाडीह गांव में घनी आबादी है. यह बड़ाचांगड़ु पंचायत में है. वहां तीन बूथ हैं. उस गांव में एक भी ऊंची जाति के लोग नहीं रहते हैं. थाना प्रभारी के मुताबिक आड़ाल नावाडीह गांव में महतो जाति के 600, मांझी जाति के 50, हजाम जाति के 50, लोहरा जाति के 9 और महली जाति के 10 घर हैं.
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सिल्ली के बीडीओ पवन आशीष लकड़ा ने बताया कि पानी की समस्या की वजह से यह बात उठी है. वहां जात-पात और छुआछूत का कोई मसला नहीं है. उन्होंने कहा कि दोनों ओबीसी समाज के लोग हैं. उनसे पूछा गया कि लोहरा समाज क्या ओबीसी कैटेगरी में आता है तो उन्होंने कहा कि लोहरा और महतो जाति ओबीसी कैटेगरी में आती है. लेकिन सच यह है कि झारखंड में लोहरा समाज को एसटी का दर्जा मिला हुआ है. थाना प्रभारी की रिपोर्ट में भी कमला लोहरा का जिक्र है जिन्होंने पानी की समस्या की बात उठाई है. हालांकि बीडीओ ने कहा कि पानी की समस्या की जानकारी मिलने के बाद वहां के एक सरकारी चापाकल की मरम्मति करवा दी गई है. उस क्षेत्र में पानी की समस्या को दूर करने के लिए डीप बोरिंग का भी प्लान तैयार किया गया है.
इधर, स्थानीय बुद्धिजीवियों का कहना है कि यह बहुत पुराना मामला है. लोहरा जाति के साथ लंबे समय से भेदभाव हो रहा है. बारिश होने पर वे लोग चुआं से पानी भरकर काम चलाते हैं. लेकिन गर्मी आते ही चुआं सूख जाता है. जब वे लोग जलमिनार से पानी लेने जाते हैं तो खरी खोटी सुनायी जाती है. अगर कलेश्वर महतो के कुआं में पानी कम है तो फिर बरसात के समय भी उन्हें क्यों पानी भरने नहीं दिया जाता है.
खास बात है कि इस मसले पर बड़ाचांगड़ु पंचायत की मुखिया सरिता सिंह से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने ट्रेनिंग में व्यस्तता का हवाला देकर बात करने से ही इनकार कर दिया. जबकि एक जनप्रतिनिधि के नाते इस मसले को गंभीरता से लेना उनका फर्ज है.
रांची के डीसी राहुल सिन्हा से इस मसले पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि पूरे मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बना दी गई है. कमेटी की अध्यक्षता डीडीसी करेंगे. कमेटी में पीएचईडी विभाग के कार्यपालक अभियंता और सिल्ली को बीडीओ को भी रखा गया है. कमेटी से तीन दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी गई है. उन्होंने कहा कि सामाजिक और कल्याण, दोनों दृष्टिकोण से जांच रिपोर्ट बनाने को कहा गया है. अगर पेयजल की किल्लत की बात होगी तो जरूरतमंदों को चापाकल या कुआं की सुविधा मुहैया कराई जाएगी. उनसे यह पूछा गया कि लोहरा समाज किस कैटेगरी में आता है. जवाब में उन्होंने कहा कि यह समाज अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आता है.
अब सवाल है कि अगर लोहरा जाति के लोगों को पानी के लिए ज़लालत झेलनी पड़ रही है तो क्या उसकी वजह यह है कि उन्हें दलित समाज के रूप में देखा जा रहा है. अगर लोहरा समाज आदिवासी की श्रेणी में आता है तो यह माना जाए कि आदिवासी समाज के साथ भेदभाव हो रहा है. यह बेहद चिंता का विषय है. अब देखना है कि जांच रिपोर्ट में किस तरह की बातें सामने आती हैं.