जमशेदपुरः लौहनगरी जमशेदपुर में मकर संक्रांति का बाजार सज गया है. बिहार के गया से आए कारीगरों द्वारा यहां के दुकानों में तिल से तिलकुट और लड्डू बनाये जा रहे हैं. दुकानदारों का कहना है इस सीजन मे लाखों का कारोबार होता है जबकि कारीगर कहते है कि गया से ज्यादा मुनाफा उन्हें झारखंड में होता है.
पौष माह में मनाये जाने वाला मकर संक्रांति का पर्व का काफी महत्व है. इस पर्व में तिल से बनी तिलकुट, रेवड़ी और लड्डू का विशेष महत्व होता है. जमशेदपुर के बाजार में तिलकुट और अन्य सामान की खरीदारी के लिए ग्राहकों की भीड़ है. दुकानदारों ने स्वादिष्ट तिलकुट बनाने के लिए बिहार के गया से कारीगरों को बुलाया है. जो दिन रात मेहनत करके तिलकुट, लड्डू और रेवड़ी बना रहे हैं.
बता दें कि बिहार के गया का तिलकुट अपने स्वाद के लिए देशभर में काफी प्रसिद्ध है. यही वजह है कि जमशेदपुर में गया के कारीगरों को मकर संक्रांति के लिए खास तौर पर बुलाया जाता है. दुकानदार भी मानते हैं कि स्थानीय कारीगरों की अपेक्षा गया के कारीगरों द्वारा बनाए तिलकुट की मांग ज्यादा होती है. हालांकि महंगाई है लेकिन मकर में तिलकुट और अन्य सामग्रियों को मिलाकर लगभग दस लाख से अधिक का कारोबार होता है.
बिहार के गया से काफी संख्या में तिलकुट बनाने वाले कारीगर झारखंड के विभिन्न जिलों में काम करने के लिए आते हैं. उनके द्वारा शुद्धता से तिलकुट, चुड़ा, मुढ़ी के लड्डू, रेवड़ी बनाई जाती है. मकर संक्रांति के बाद सभी कारीगर वापस गया लौट जाते हैं. कारीगरों का कहना है कि गया में सालों भर तिलकुट बनाते हैं लेकिन मकर संक्रांति से पहले वे झारखंड आते हैं यहां उन्हें ज्यादा मुनाफा होता है.
मकर संक्रांति में तिल का काफी महत्व होता है. तिल से बने लड्डू और तिलकुट को खाने के अलावा दान पुण्य भी प्रयोग किया जाता है. तिलकुट खरीदने वाली महिला बताती हैं कि गया के तिलकुट जैसा स्वाद अब जमशेदपुर में भी मिल रहा है. मकर संक्रांति में स्नान-दान का महत्व है तिल से बने सामग्री दान करते हैं. इसके अलावा ठंड के मौसम में तिलकुट और तिल से बनी अन्य चीजों खाना सेहत के लिए फायदेमंद रहता है.
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