रांची: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा धान, मक्का, मड़ुआ सहित कई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में की गई बढ़ोतरी को झारखंड कांग्रेस, राजद, सीपीआई और झामुमो ने अन्नदाताओं के साथ धोखा करार दिया है. इन सभी दलों ने किसान आंदोलन के दौरान किये गए लिखित वादे के अनुसार MSP कानून बनाने की मांग की है.
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MSP बढ़ाने को कांग्रेस ने धोखा करार दिया: झारखंड कांग्रेस के प्रदेश महासचिव राकेश सिन्हा ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा कुछ फसलों का एमएसपी बढ़ाने का फैसला सिर्फ आई वाश है. उन्होंने धान, मड़ुआ, मक्का, सोयाबीन सहित कई फसलों के एमएसपी बढ़ाने के केंद्र के फैसले को देश के किसानों के साथ धोखा करार दिया. कांग्रेस नेता ने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान मोदी सरकार ने लिखित में जो आश्वासन किसानों को दिए थे, उसके अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार को एक कानून बनाना चाहिए ताकि देशभर के किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाई जा सके. उन्होंने कहा कि दरअसल कर्नाटक में मिली करारी हार से सहमी भारतीय जनता पार्टी को आने वाले दिनों में राजस्थान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में हार का डर सताने लगा है इसी वजह से उसने एमएसपी को बढ़ाया है.
सीपीआई ने लगाया किसानों को ठगने का आरोप: सीपीआई के पूर्व राज्य सचिव और पूर्व सांसद भुवनेश्वर मेहता ने कहा कि कुछ फसलों का एमएसपी बढ़ाकर मोदी सरकार ने फिर एक बार किसानों को ठगने का काम किया है. उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन को समाप्त कराने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने 6 महीना के अंदर न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कानून बनाने का वादा किया था, लेकिन आज तक एमएसपी पर कोई कानून नहीं बना है यह देश के किसानों को ठगने जैसा है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के बहकावे में देशभर के किसान अब आने वाले नहीं हैं और इन्हें 2024 के चुनाव में सबक सिखाने का फैसला अन्नदाताओं ने ले लिया है.
वहीं, झारखंड राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व उपाध्यक्ष और वरिष्ठ नेता राजेश यादव ने कहा कि एमएसपी बढ़ाने को लेकर केंद्र की सरकार का फैसला किसानों के हित में तब होता जब न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर सरकार एक कानून बना देती. उन्होंने कहा कि 2013-14 का आंकड़ा दिखाकर 2022-23 का जिक्र करना सिर्फ धोखा है. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि मोदी सरकार ने किसानों से किये वादे पूरा नहीं किया है. इसलिए किसान 2023 के अंत में कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में इन्हें सबक सिखाएगी.