रांची: झारखंड में अफीम की खेती नक्सलियों के अर्थ तंत्र को मजबूत करने सबसे ज्यादा सहायक सिद्ध होता है. पंजाब और उत्तर प्रदेश के तस्करों के साथ साठगांठ कर झारखंड में नक्सली संगठन अफीम की खेती करवाते हैं ताकि उग्रवादी संगठनों के अर्थतंत्र को मजबूत हो सके. लेकिन इस सिस्टम पर अब पुलिस की नजर है, पुलिस इस पर ब्रेक लगाने के लिए पुलिस बड़ी तैयारी कर रही है. इसके तहत पुलिस एक तरफ जहां अफीम के खेतों पर लगातार नजर रख रही है. वहीं दूसरी रणनीति के तहत अफीम को तैयार करने के लिए जरूरी फर्टिलाइजर पर भी नजर रखे हुए है, ताकि अफीम तस्करों के पास फर्टिलाइजर ना पहुंच सके.
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जानकारी के अनुसार इस वर्ष भी राजधानी रांची के आसपास के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती की जा रही है. अफीम की खेती को लेकर पुलिस अलर्ट है और एक नया तरीका भी खोजा है ताकि अफीम की फसलों को खेतों में ही बर्बाद किया जा सके. रांची एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने बताया कि अफीम की खेती के लिए बड़ी मात्रा में खाद और पानी की आवश्यकता होती है. पानी तो आसानी से जंगलों में मिल जाता है लेकिन खाद के लिए अफीम की खेती करने वालों को शहर आना पड़ता है.
रांची पुलिस यह जानती है कि अगर बड़े पैमाने पर कहीं से खाद की खरीद बिक्री हो रही है तो कहीं ना कहीं उसका इस्तेमाल अफीम की फसल के लिए किया जा सकता है. यही वजह है कि खाद दुकानों पर भी अब पुलिस की पैनी नजर है. अफीम की तस्करी के लिए काफी मात्रा में खाद और पानी की जरूरत होती है. पुलिस को एनसीबी ने सलाह दी है कि नक्सल इलाकों में वैसी जगहों पर खास तौर पर नजर रखें, जहां पानी आसानी से उपलब्ध हो. साथ ही इलाके में खाद दुकानों पर भी नजर रखें. कहीं से अधिक सप्लाई हो तो इसकी भी नजर रखें, संभव है कि इन इलाकों में अफीम की खेती हो रही हो.
रांची एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस बार भी जाड़े का सीजन शुरू होते ही बड़े पैमाने पर जंगली और पहाड़ी इलाकों में अफीम की फसल लगाई जाने की जानकारी मिली है. पुलिस को यह जानकारी भी मिल गई है कि किन किन इलाकों में अफीम की खेती की जा रही है. पुलिस की टीम उन खेतों को चिन्हित कर रही है, ताकि उसे नष्ट किया जा सके. इधर रांची के एसपी नौशाद आलम के अनुसार अफीम की खेती पर पुलिस की नजर है. फिलहाल अगर शुरुआती दौर में ही फसल को नष्ट किया जाए तो सबूत भी नष्ट हो जाते हैं. इसीलिए फसल के तैयार होने का इंतजार किया जा रहा है.
यूपी से लेकर नेपाल तक के तस्कर हुए सक्रियः झारखंड के अफीम तस्करों के तार पड़ोसी देश नेपाल समेत कई राज्यों से जुड़े हैं. राज्य से अफीम के डोडा की सप्लाई यूपी, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और पंजाब में की जाती है. जमशेदपुर के बड़े अफीम तस्कर गौतम के तार नेपाल से जुड़े हैं. गिरफ्तारी के बाद गौतम ने पूछताछ में कबूला भी था कि वह नेपाल और पश्चिम बंगाल के मादक पदार्थ तस्करों से संपर्क में था.
सरकारी जमीन पर ही होती है सर्वाधिक खेतीः अफीम की खेती को लेकर चौंकाने वाला आंकड़ा भी सामने आया है. राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकारी जमीन पर ही सर्वाधिक खेती होती है. उग्रवादी संगठनों की मदद से यूपी, बिहार समेत अन्य राज्यों के तस्कर वन विभाग की जमीन पर खेती करते हैं. इसके एवज में स्थानीय किसानों को मामूली रकम दी जाती है. खेती तैयार होने के बाद मादक पदार्थ की बाहरी राज्यों के तस्कर सप्लाई करते हैं. ये सप्लाई यूपी, पंजाब, हरियाणा, बिहार से लेकर दिल्ली- मुंबई तक करते हैं. बताया जा रहा है कि उग्रवादी संगठनों को भी अफीम की खेती से काफी पैसे आते हैं.
जाड़े के सीजन में होती है खेतीः झारखंड में अक्तूबर-नवंबर महीने से अफीम की खेती शुरू हो जाती है. अप्रैल-मई के महीने में फसल तैयार हो जाती है, जिसके बाद अगर पुलिस की नजर अफीम के खेतों पर नहीं पड़ती है तो फिर तस्कर धीरे-धीरे उसे वहां से निकाल बाहर ले जाते हैं. झारखंड के चतरा, लातेहार, खूंटी , रांची समेत कई जिलों में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है. राज्य पुलिस ने पूर्व में अफीम की खेती को लेकर 17 जिलों के 37 थाना क्षेत्रों को चिन्हित किया था. इन जिलों में पूर्व में लगातार खेती नष्ट करने का अभियान भी चला है.
कहां कहां होती है अफीम की खेती
रांची- नामकुम ,दसम ,बुंडू तमाड़ और पिठोरिया थाना
खूंटी- खूंटी व मुरहू थाना
सरायकेला खरसांवा- चौका थाना
गुमला- कामडारा थाना
लातेहार- बालूमाथ, हेरहंज व चंदवा थाना
चतरा - लावालौंग, सदर, प्रतापपुर, राजपुर, कुंदा, विशिष्ठनगर
पलामू- पांकी, तरहसी, मनातू
गढ़वा- खरौंदी
हजारीबाग- तातुहरिया, चौपारण
गिरिडीह- पीरटांड, गनवा, डुमरी, लोकनयानपुर, तिसरी
देवघर- पालाजोरी
दुमका-रामगढ़, शिकारीपाड़ा, रनेश्वर, मसलिया
गोड्डा- माहेरवान
पाकुड़- हिरणपुर
जामताड़ा- नाला, कुंडीहाट
साहेबगंज- बरहेट, तालीहारी