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Naxalites In Kolhan: स्पाइक होल्स के सहारे नक्सली कोल्हान में लड़ रहे अंतिम लड़ाई, जानिए क्या है स्पाइक होल्स और सुरक्षाबलों को इससे कितना खतरा है - रांची न्यूज

पश्चिमी सिंहभूम में पिछले 15 दिनों से नक्सलियों के विरुद्ध ऑपरेशन क्लीन चलाया जा रहा है. वहीं घने जंगलों में छिपे नक्सली स्पाइक होल्स के सहारे अपनी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं. स्पाइक होल्स के सहारे नक्सली सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं. जानिए क्या है स्पाइक होल्स और सुरक्षाबलों के सामने कितना बड़ा है यह खतरा.

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Naxalites Fighting Battle In Kolhan
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Published : Jun 10, 2023, 8:20 PM IST

Updated : Jun 10, 2023, 8:40 PM IST

देखें स्पेशल स्टोरी

रांचीः कोल्हान के घने जंगलों और बीहड़ों में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच शह-मात का खेल पिछले आठ महीने से जारी है. सुरक्षा बल नक्सलियों पर लगातार हावी हो रहे हैं. नतीजा अपने आप को बचाने के लिए नक्सली अब ताइवान की युद्ध प्रणाली अपनाकर जवानों को नुकसान पहुंचाने की साजिश रच रहे हैं. इसके लिए नक्सली स्पाइक होल का प्रयोग कर रहे हैं. स्पाइक होल की प्रणाली में भी नक्सलियों ने बदलाव लाया है. नक्सली ऐसे स्पाइक होल का प्रयोग कर रहे हैं जो मेटल डिटेक्टर की पकड़ में ना आ सके. इसके लिए वे बांस का प्रयोग कर हैं, जो जंगलों में भरपूर मात्रा में मौजूद हैं.

ये भी पढ़ें-IED Bombs Recovered: नक्सलियों के मंसूबे पर फिरा पानी, पुलिस ने बरामद किए 71 किलो के 4 आईईडी बम

क्या है स्पाइक होलः कोल्हान के जंगलों में पिछले 15 दिनों से ऑपरेशन क्लीन चलाया जा रहा है. ऑपरेशन क्लीन में नक्सलियों के द्वारा लगाए गए आईईडी बम को जमीन के भीतर से निकालकर निष्क्रिय किया जा रहा है. इस सर्च ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों को बड़े पैमाने पर जंगलों से स्पाइक होल मिले हैं. दरअसल, स्पाइक होल जवानों को नुकसान पहुंचाने का नया तरीका है. इस तरीके को ताइवान में गुरिल्ला योद्धा इस्तेमाल करते थे. कई छोटे देश भी अपनी सीमा के बचाव के लिए स्पाइक होल का इस्तेमाल करते हैं. अब इसी पुरानी प्रणाली का प्रयोग कोल्हान में नक्सली कर रहे हैं. स्पाइक होल बनाने के लिए जंगल के बीचोंबीच गुजरने वाले रास्ते में एक बड़ा गड्ढा खोद दिया जाता है. उस गड्ढे में टूटे हुए कांच के टुकड़े, लोहे की कील, सरिया के टुकड़े और दूसरे शरीर में तेजी से चुभने वाले समान को डाल कर उसे भर दिया जाता है और बीच में एक आईडी बम रख दिया जाता है. जब सुरक्षा बल उस जमीन से होकर गुजरते हैं तब नक्सली उसमें विस्फोट करवा देते हैं. विस्फोट के बाद बड़े तेजी के साथ जमीन के अंदर गड़ी सरिया, कांच और दूसरी नुकीले समान तेजी से बाहर निकलते हैं और जवानों के शरीर में धंस जाती है. इन विस्फोटों में बड़ा नुकसान होता है. तुरंत जान तो नहीं जाती है, लेकिन आंख, कान, गले को बेहद ज्यादा नुकसान पहुंचता है. विस्फोट के बाद भगदड़ मच जाती है और नक्सली उसी दौरान हमला कर देते हैं.

बस्तर के बाद झारखंड में हो रहा है बूबी ट्रैप का इस्तेमालः स्पाइक होल की बरामदगी के बाद सुरक्षा बल जंगल में मेटल डिटेक्टर लेकर ही निकलते थे. मेटल डिटेक्टर से जांच के दौरान स्पाइक होल के बारे में सूचनाएं मिल जाती थी. जिसके बाद उन्हें नष्ट करने का काम किया जाता था, लेकिन अब एक और खतरा नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के सामने खड़ा कर दिया है. मेटल डिटेक्टर से बचने के लिए नक्सलियों ने सारंडा के कुछ इलाकों में बूबी ट्रैप का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. मेटल डिटेक्टर से बचने के लिए नक्सली अब स्पाइक होल में नुकीले और मजबूत बांस गाड़ने लगे हैं. नुकीले बांस भी कम खतरनाक नहीं हैं, कई बार यह शरीर के आर-पार हो जाते हैं.

हर साजिश को करेंगे विफलः नक्सली झारखंड में अपने अधिकांश सुरक्षित ठिकानों से खदेड़े जा चुके हैं. ऐसे में कुछ इनामी नक्सली अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए कोल्हान के बीहड़ो को अपना ठिकाना बनाए हुए हैं. छापेमार और गोरिल्ला युद्ध की रणनीति को अपनाकर किसी तरह अपने आप को पुलिस से बचाकर रखने में अब तक कामयाब हो पाए हैं. झारखंड के डीजीपी अजय कुमार सिंह ने बताया कि कोल्हान में भी नक्सलियों का सफाया तय है. आईईडी और स्पाइक होल्स पुरानी युद्ध नीति है. ऐसे युद्ध नीतियों का प्रयोग बिहार-झारखंड के नक्सली पूर्व से करते आए हैं. पुलिस का अभियान कोल्हान में लगातार जारी है, जो नक्सली वहां बचे हुए हैं उन्हें भी जल्द या तो मार गिराया जाएगा या फिर गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

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रांचीः कोल्हान के घने जंगलों और बीहड़ों में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच शह-मात का खेल पिछले आठ महीने से जारी है. सुरक्षा बल नक्सलियों पर लगातार हावी हो रहे हैं. नतीजा अपने आप को बचाने के लिए नक्सली अब ताइवान की युद्ध प्रणाली अपनाकर जवानों को नुकसान पहुंचाने की साजिश रच रहे हैं. इसके लिए नक्सली स्पाइक होल का प्रयोग कर रहे हैं. स्पाइक होल की प्रणाली में भी नक्सलियों ने बदलाव लाया है. नक्सली ऐसे स्पाइक होल का प्रयोग कर रहे हैं जो मेटल डिटेक्टर की पकड़ में ना आ सके. इसके लिए वे बांस का प्रयोग कर हैं, जो जंगलों में भरपूर मात्रा में मौजूद हैं.

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क्या है स्पाइक होलः कोल्हान के जंगलों में पिछले 15 दिनों से ऑपरेशन क्लीन चलाया जा रहा है. ऑपरेशन क्लीन में नक्सलियों के द्वारा लगाए गए आईईडी बम को जमीन के भीतर से निकालकर निष्क्रिय किया जा रहा है. इस सर्च ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों को बड़े पैमाने पर जंगलों से स्पाइक होल मिले हैं. दरअसल, स्पाइक होल जवानों को नुकसान पहुंचाने का नया तरीका है. इस तरीके को ताइवान में गुरिल्ला योद्धा इस्तेमाल करते थे. कई छोटे देश भी अपनी सीमा के बचाव के लिए स्पाइक होल का इस्तेमाल करते हैं. अब इसी पुरानी प्रणाली का प्रयोग कोल्हान में नक्सली कर रहे हैं. स्पाइक होल बनाने के लिए जंगल के बीचोंबीच गुजरने वाले रास्ते में एक बड़ा गड्ढा खोद दिया जाता है. उस गड्ढे में टूटे हुए कांच के टुकड़े, लोहे की कील, सरिया के टुकड़े और दूसरे शरीर में तेजी से चुभने वाले समान को डाल कर उसे भर दिया जाता है और बीच में एक आईडी बम रख दिया जाता है. जब सुरक्षा बल उस जमीन से होकर गुजरते हैं तब नक्सली उसमें विस्फोट करवा देते हैं. विस्फोट के बाद बड़े तेजी के साथ जमीन के अंदर गड़ी सरिया, कांच और दूसरी नुकीले समान तेजी से बाहर निकलते हैं और जवानों के शरीर में धंस जाती है. इन विस्फोटों में बड़ा नुकसान होता है. तुरंत जान तो नहीं जाती है, लेकिन आंख, कान, गले को बेहद ज्यादा नुकसान पहुंचता है. विस्फोट के बाद भगदड़ मच जाती है और नक्सली उसी दौरान हमला कर देते हैं.

बस्तर के बाद झारखंड में हो रहा है बूबी ट्रैप का इस्तेमालः स्पाइक होल की बरामदगी के बाद सुरक्षा बल जंगल में मेटल डिटेक्टर लेकर ही निकलते थे. मेटल डिटेक्टर से जांच के दौरान स्पाइक होल के बारे में सूचनाएं मिल जाती थी. जिसके बाद उन्हें नष्ट करने का काम किया जाता था, लेकिन अब एक और खतरा नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के सामने खड़ा कर दिया है. मेटल डिटेक्टर से बचने के लिए नक्सलियों ने सारंडा के कुछ इलाकों में बूबी ट्रैप का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. मेटल डिटेक्टर से बचने के लिए नक्सली अब स्पाइक होल में नुकीले और मजबूत बांस गाड़ने लगे हैं. नुकीले बांस भी कम खतरनाक नहीं हैं, कई बार यह शरीर के आर-पार हो जाते हैं.

हर साजिश को करेंगे विफलः नक्सली झारखंड में अपने अधिकांश सुरक्षित ठिकानों से खदेड़े जा चुके हैं. ऐसे में कुछ इनामी नक्सली अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए कोल्हान के बीहड़ो को अपना ठिकाना बनाए हुए हैं. छापेमार और गोरिल्ला युद्ध की रणनीति को अपनाकर किसी तरह अपने आप को पुलिस से बचाकर रखने में अब तक कामयाब हो पाए हैं. झारखंड के डीजीपी अजय कुमार सिंह ने बताया कि कोल्हान में भी नक्सलियों का सफाया तय है. आईईडी और स्पाइक होल्स पुरानी युद्ध नीति है. ऐसे युद्ध नीतियों का प्रयोग बिहार-झारखंड के नक्सली पूर्व से करते आए हैं. पुलिस का अभियान कोल्हान में लगातार जारी है, जो नक्सली वहां बचे हुए हैं उन्हें भी जल्द या तो मार गिराया जाएगा या फिर गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

Last Updated : Jun 10, 2023, 8:40 PM IST
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