रांचीः प्रकृति पर्व सरहुल आज है. आदिवासियों का यह प्रमुख त्योहार है. हर साल चैत्र महीने की तृतीया को यह पर्व मनाया जाता है. पर्व में साल और सखुआ के पेड़ की विशेष पूजा की जाती है. साथ ही धूमधाम से सरहुल जुलूस निकाला जाता है. रांची में सरहुल को लेकर सुरक्षा की विशेष तैयारी की गई है.
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रांची सिरम टोली स्थित सरना स्थल में सरहुल लेकर पूरी तैयारी कर ली गई है. पतझड़ के बाद पेड़ों में आने वाले नए फूल के स्वागत में यह उत्सव मनाया जाता है. सरहुल पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं हैं. सरहुल दो शब्दों से बना है, सर और हुल. सर का अर्थ है सखुआ का फूल और हुल का क्रांति. मतलब साल के पेड़ों पर फूलों की क्रांति के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है.
आदिवासी इसी दिन से नए साल की शुरुआत करते हैं. साथ ही खेती की शुरुआत भी इसी पर्व को मनाने के बाद की जाती है. तीन दिन पहले से ही लोग सरहुल के अनुष्ठान में जुट जाते हैं. पाहन की तरफ से विशेष अनुष्ठान किया जाता है. इस दौरान ग्राम देवता को पूजा जाता है और कामना की जाती है कि आने वाला साल खुशियों भरा हो. पूजा के दौरान सरना स्थल पर मिट्टी के बर्तन में पानी रखा जाता है. जिसके स्तर को देखने के बाद पाहन आने वाले साल के मौसम के बारे में भविष्यवाणी करते हैं. पूजा खत्म होने के अगले दिन फूलखोंसी की प्रथा होती है. जिसमें समाज में सौहार्द्र बने रहने की कामना की जाती है.
आदिवासी समुदाय के लिए यह पर्व बेहद की खास होता है. आदिवासी समाज के लोग सारे शुभ काम इसी उत्सव से शुरू करते हैं. कोरोना के दौरान इस पर्व को लोग धूमधाम से नहीं मना पाए थे. लेकिन इस बार लोगों में काफी उत्साह है. इस बार काफी धूमधाम से सरहुल जुलूस निकाले जाएंगे. जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल होंगे. वहीं सरहुल जुलूस को लेकर रांची पुलिस ने विशेष तैयारी की है. सीसीटीवी से हर जगह नजर रखी जा रही है.