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Mothers Day Special: दया करुणा और ममता की मूरत है मां, साहस संघर्ष की बानगी है मां

एक मां दया, करुणा और ममता की मूरत होती है. मां अपने बच्चे को किस तरह पालती है वह एक मां ही जानती है. संकट की घड़ी में भी एक बच्चे को अपनी मां का ही सहारा मिलता है. मदर्स डे स्पेशल में जानिए, सोनामनी की पूरी कहानी, ईटीवी भारत खास रिपोर्ट.

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रांची
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Published : May 8, 2022, 5:03 AM IST

रांचीः किसी फिल्म का एक डॉयलॉग है कि 'मां सबसे बड़ी योद्धा होती है'. कुछ ऐसा ही साहस और संघर्ष का परिचय दिया है रांची की सब्जी विक्रेता गौरी और उसकी पुत्री सोनामनी ने. बचपन में अपनी मां के आंचल में पली-बढ़ी सोनामनी आज खुद दो बच्चों की मां है.

इसे भी पढ़ें- मदर्स डे 2021 : जानें कैसे हुई थी शुरुआत

इटकी के एक साधारण परिवार में जन्मी सोनामनी को बचपन में पिता का सहारा छूट गया इसके बावजूद उसकी मां गौरी ने हिम्मत नहीं हारी. सोनामनी को मैट्रिक तक की शिक्षा दिलाकर इस उम्मीद के साथ शादी करवाई कि ससुराल वाले इसकी पढ़ाई आगे जारी रखेंगे मगर ऐसा हुआ नहीं. सोनामनी को पढ़ाई की जगह ससुराल में प्रताड़ना मिली, जिस वजह से वह एक बार फिर अपने मां गौरी के घर रहने लगी है. शादी के बाद सोनामनी को दो बच्चे हुए, जिसकी परवरिश करना बेहद ही कठिन हो गया.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

संघर्ष के बीच उम्मीद कायमः एक तरफ पति की नाराजगी तो दूसरी तरफ जीवन जीने की संघर्ष एक मां से अच्छा कौन समझ सकता है. मुसीबत की इस घड़ी में दुधमुंहे बच्चे और बड़ी बच्ची को स्कूल भेजना किसी चुनौती से कम नहीं है. मगर सोनामनी और उसकी मां गौरी ने हिम्मत नहीं हारी है. हर दिन सुबह लोहरदगा वाली ट्रेन से रांची का सफर तय कर सड़क किनारे सब्जी बेचकर परिवार चला रही है. बच्चे को पढ़ाने के साथ साथ सोनामनी खुद पढ़ाई करती है. पति ऑटो चलाता है मगर इससे होने वाली आमदनी से सोनामनी को कोई उम्मीद नहीं है.

सामाजिक कार्यकर्ता एलिस बताती हैं कि मां का दर्द क्या होता है, वो एक मां ही समझ सकती है. जीवन भर संघर्ष कर बच्चों को बड़ा करती है, जब यह बच्चा कुछ बन जाता है तो उसके लिए इससे बड़ा खुशी कुछ भी नहीं होती है. सोनामनी की जिंदगी भी संघर्ष भरी है मगर उसकी मां गौरी का संघर्ष भी हौसले की नई कहानी कहती है. मदर्स डे पर आज दुनियाभर में मां को याद किया जा रहा है. बच्चे अपनी माता को सम्मान देत रहे हैं, वैसी मां जो एक बच्चे के सपनों के साथ जीती है और उसके दुख के साथ दुखी होती है बदले में बच्चों के सुखद जीवन के सिवा कुछ भी चाहत नहीं रखती.

मदर्स डे क्यों मनाते हैंः एना जार्विस नाम की अमेरिकी महिला, जो ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में रहती थीं. उन्हें अपनी मां से काफी लगाव था और वो अपनी मां के साथ ही रहती थीं, इसके लिए उन्होंने शादी नहीं की थी. माता के निधन के बाद एना ने अपनी जीवन मां के नाम समर्पित कर उनके प्रति प्यार जताने के लिए मदर्स डे मनाने का फैसला लिया. एना जार्विस ने ही सबसे पहले मदर्स डे मनाने की शुरुआत की. उन दिनों यूरोप में इस दिन को मदरिंग संडे कहा जाता था. सबसे पहला मदर्स डे अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया और फिलाडेल्फिया में साल 1908 में मनाया गया था. इस दिन को समस्त माताओं और उनके गौरवमयी मातृत्व के लिए, विशेष रूप से पारिवारिक और उनके परस्पर संबंधों को सम्मान देने के लिए इसकी शुरूआत की गयी थी.

लेकिन आधिकारिक तौर पर मदर्स डे मनाने के लिए कानून पास हुआ. 9 मई 1914 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने एक घोषणा पर हस्ताक्षर करने के बाद आधिकारिक तौर पर मदर्स डे अस्तित्व में आया. जिसमें मई महीने के दूसरे रविवार को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया था. इसके बाद अधिकांश देशों में मदर्स डे मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है. इनमें अमेरिका, कनाडा, अधिकांश यूरोपीय देश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत, चीन, जापान, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं.

रांचीः किसी फिल्म का एक डॉयलॉग है कि 'मां सबसे बड़ी योद्धा होती है'. कुछ ऐसा ही साहस और संघर्ष का परिचय दिया है रांची की सब्जी विक्रेता गौरी और उसकी पुत्री सोनामनी ने. बचपन में अपनी मां के आंचल में पली-बढ़ी सोनामनी आज खुद दो बच्चों की मां है.

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इटकी के एक साधारण परिवार में जन्मी सोनामनी को बचपन में पिता का सहारा छूट गया इसके बावजूद उसकी मां गौरी ने हिम्मत नहीं हारी. सोनामनी को मैट्रिक तक की शिक्षा दिलाकर इस उम्मीद के साथ शादी करवाई कि ससुराल वाले इसकी पढ़ाई आगे जारी रखेंगे मगर ऐसा हुआ नहीं. सोनामनी को पढ़ाई की जगह ससुराल में प्रताड़ना मिली, जिस वजह से वह एक बार फिर अपने मां गौरी के घर रहने लगी है. शादी के बाद सोनामनी को दो बच्चे हुए, जिसकी परवरिश करना बेहद ही कठिन हो गया.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

संघर्ष के बीच उम्मीद कायमः एक तरफ पति की नाराजगी तो दूसरी तरफ जीवन जीने की संघर्ष एक मां से अच्छा कौन समझ सकता है. मुसीबत की इस घड़ी में दुधमुंहे बच्चे और बड़ी बच्ची को स्कूल भेजना किसी चुनौती से कम नहीं है. मगर सोनामनी और उसकी मां गौरी ने हिम्मत नहीं हारी है. हर दिन सुबह लोहरदगा वाली ट्रेन से रांची का सफर तय कर सड़क किनारे सब्जी बेचकर परिवार चला रही है. बच्चे को पढ़ाने के साथ साथ सोनामनी खुद पढ़ाई करती है. पति ऑटो चलाता है मगर इससे होने वाली आमदनी से सोनामनी को कोई उम्मीद नहीं है.

सामाजिक कार्यकर्ता एलिस बताती हैं कि मां का दर्द क्या होता है, वो एक मां ही समझ सकती है. जीवन भर संघर्ष कर बच्चों को बड़ा करती है, जब यह बच्चा कुछ बन जाता है तो उसके लिए इससे बड़ा खुशी कुछ भी नहीं होती है. सोनामनी की जिंदगी भी संघर्ष भरी है मगर उसकी मां गौरी का संघर्ष भी हौसले की नई कहानी कहती है. मदर्स डे पर आज दुनियाभर में मां को याद किया जा रहा है. बच्चे अपनी माता को सम्मान देत रहे हैं, वैसी मां जो एक बच्चे के सपनों के साथ जीती है और उसके दुख के साथ दुखी होती है बदले में बच्चों के सुखद जीवन के सिवा कुछ भी चाहत नहीं रखती.

मदर्स डे क्यों मनाते हैंः एना जार्विस नाम की अमेरिकी महिला, जो ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में रहती थीं. उन्हें अपनी मां से काफी लगाव था और वो अपनी मां के साथ ही रहती थीं, इसके लिए उन्होंने शादी नहीं की थी. माता के निधन के बाद एना ने अपनी जीवन मां के नाम समर्पित कर उनके प्रति प्यार जताने के लिए मदर्स डे मनाने का फैसला लिया. एना जार्विस ने ही सबसे पहले मदर्स डे मनाने की शुरुआत की. उन दिनों यूरोप में इस दिन को मदरिंग संडे कहा जाता था. सबसे पहला मदर्स डे अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया और फिलाडेल्फिया में साल 1908 में मनाया गया था. इस दिन को समस्त माताओं और उनके गौरवमयी मातृत्व के लिए, विशेष रूप से पारिवारिक और उनके परस्पर संबंधों को सम्मान देने के लिए इसकी शुरूआत की गयी थी.

लेकिन आधिकारिक तौर पर मदर्स डे मनाने के लिए कानून पास हुआ. 9 मई 1914 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने एक घोषणा पर हस्ताक्षर करने के बाद आधिकारिक तौर पर मदर्स डे अस्तित्व में आया. जिसमें मई महीने के दूसरे रविवार को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया था. इसके बाद अधिकांश देशों में मदर्स डे मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है. इनमें अमेरिका, कनाडा, अधिकांश यूरोपीय देश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत, चीन, जापान, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं.

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