रांची: ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर में गुरुवार को ज्येष्ठ पूर्णिमा के अंतिम दिन महाआरती और भगवान जगन्नाथ का स्नान ध्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस मौके पर भगवान को एक हजार मिट्टी के बर्तनों से नहलाया गया. महास्नान के बाद भगवान 15 दिनों के लिए अज्ञातवास पर चले गए हैं.
विधि विधान से होता है महास्नान
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को रत्नसिंहासन से स्नान मंडप पर लाया जाता है. इस प्रक्रिया को पोहंडी कहा जाता है, जिसमें मंत्रों का उच्चारण, घंटा, ढोल, बिगुल और झांझ की थाप के साथ जीवंत रूप देखने को मिलता है. देवताओं के स्नान के लिए मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है. इन बर्तनों के जल को मंदिर के पुजारी हल्दी, जौ, अक्षत, चंदन, पुष्प और सुगंध से पवित्र करते हैं. इसके बाद इन बर्तनों को स्नान मंडप में लाकर विधि विधान से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का स्नान संपन्न कराया जाता है जिसे जलाभिषेक कहते हैं. इसके बाद भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को फिर से हाथी-गणपति वेश पहनाकर तैयार किया जाता है. बाद में तीन मुख्य देवता मंदिर परिसर में स्थित अनसर गृह में निवृत्त हो जाते हैं. अनसर अवधि के दौरान, भक्त अपने देवताओं को नहीं देख सकते हैं. हिंदू किवदंतियों के अनुसार, यह माना जाता है कि स्नान यात्रा अनुष्ठान के दौरान देवताओं को बुखार हो जाता है और 15 दिनों का एकांतवास होता है.
15 दिनों बाद शुरू होती है रथयात्रा
भगवान जगन्नाथ के 15 दिनों के एकांतवास के बाद रथमेला का आयोजन किया जाता है. हालांकि इस बार कोरोना वायरस की महामारी को देखते हुए जिला प्रशासन और मंदिर न्याय समिति ने मेला का आयोजन नहीं करने का फैसला लिया है. रथयात्रा का कार्यक्रम भी लगभग रद्द माना जा रहा है. मंदिर न्यास समिति ने सरकार से आग्रह किया है सरकार कम से कम भक्तों के लिए मंदिर खोलने का आदेश दे. मंदिर समिति ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए सभी भक्तों को भगवान के दर्शन कराने का आश्वासन दिया है. बता दें कि कोरोना महामारी के कारण पिछले साल भी जगन्नाथ मेला का आयोजन नहीं किया गया था.