रांचीः जनजातीय समुदाय प्रकृति से सीधा जुड़ाव है. वो साग सब्जी से लेकर कंदमूल का इस्तेमाल ज्यादातर करते हैं जो औषधीय गुणों से भरा होता है. यही वजह है कि यह प्राकृतिक रूप से शरीर को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करता है.
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आदिवासी समाज अपनी समृद्ध सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ-साथ खानपान के लिहाज से भी काफी अलग माना जाता है. प्रकृति के उपासक रूप में जाना जाने वाला इस समुदाय की खाद्य प्रणालियां कई मायनों में दूसरों से अलग है. अपने आहार को समृद्ध करने के लिए इनके द्वारा फूड आइटम इस तरह के बनाए जाते हैं जो बाजार में आमतौर पर मिलने वाली मसालेदार फूड आइटम से अलग होती है, जिस वजह से ये खास मानी जाती है. इनके फूड आइटम कैल्शियम, लौह और प्रोटीन युक्त होती है.
इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है ट्रायबल फूड आइटमः आदिवासी समुदाय पेड़-पौधों से जुड़े 9 हजार प्रजातियों से वाकिफ हैं. जिसमें उपचार के उद्देश्य से इन पौधों की लगभग 7500 प्रजातियों के इस्तेमाल के बारे में जानते हैं. जनजातियों के बारे में अध्ययन करनेवाले मणिपुर के विशेषज्ञ डॉ डेनिम निली कहते हैं कि आदिवासी फूड आइटम साधारणतः जंगलों में ऑर्गेनिक खेती के जरिए तैयार होते हैं, जिसमें फर्टिलाइजर का प्रयोग नहीं होता है. सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी है जो इन्हें खास बना रखा है. टीआरआई की उपनिदेशक मोनिका रानी टुटी कहती हैं कि ट्राइबल फूड आइटम की विशेषता यह है कि फेस्टिवल में आपको अलग मिलेगा. वहीं सामान्य दिनों में अलग.कुछ आइटम जैसे रुगड़ा एक निश्चित समय में ही दिखेगा. इसी तरह शादी विवाह में भी कुछ खास आइटम आपको देखने को मिलेंगे.
आदिवासियों की प्रमुख खाद्य सामग्रीः धुस्का, आदिवासियों का पसंदीदा नाश्ता है. जिसे हर मौसम में खाया जाता है. इसे चावल के घोल से डीप फ्राई करके बनाया जाता है. इसे चटनी या घुगनी के साथ लोग खाते हैं. बेंग साग ट्राइबल फूड आइटम का खास आइटम है, जिसमें आयरन भरा रहता है. इसे कच्चा या सुखाकर दोनों रूप में खाने में इस्तेमाल लोगों द्वारा किया जाता है. इनकी पत्तियों का जूस पीने से कई तरह के रोगों से छुटकारा मिल सकता है.
पीठा, पीठा चावल के आटे से बने पकोड़े होते हैं और इन्हें दाल सब्जी या मीट की स्टफिंग के साथ परोसा जाता है. रागी यानी मड़ुआ से बनी सामग्री जनजातियों के बीच काफी लोकप्रिय है. मड़ुआ से रोटी के अलावा लड्डू, बर्फी, हड़िया सहित कई खाद्य एवं पेय सामग्री तैयार की जाती है. जनजातियों में सबसे ज्यादा चावल की अनिवार्यता है. भोजन में सबसे ज्यादा चावल का व्यवहार होता है. ताजा चावल से लेकर बासी चावल तक का ये सेवन करते हैं. आदिवासियों का मांसाहारी भोजन में सर्वाधिक लोकप्रिय छोटा मछली है, जिसमें झींगा शामिल है. इसके अलावा चिकेन, मटन और केकड़ा का भी इस्तेमाल होता है.
इस तरह से आप देखेंगे कि आदिवासियों का भोजन सरल है. जिसे अधिकांशत: जंगल की लड़कियों का इस्तेमाल कर पारंपरिक रूप से बने चूल्हे पर धीमी आंच के साथ पकाया जाता है. इसमें कम तेल और मसाला के जरिए खाना बनाने की परंपरा है, जो अन्य भोजन सामग्री से अलग करते हुए पौष्टिकता से भरा होता है.