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IIM से पढ़ाई के बाद लाखों का पैकेज छोड़ा, गांव के खेतों की पगडंडियों को चुनने वाले सिद्धार्थ की कहानी

पटना के रहने वाले सिद्धार्थ जायसवाल ने IIM से पढ़ाई की और लाखों का पैकेज छोड़ किसानों के साथ काम करने की योजना बनाई. इस खास रिपोर्ट में पढ़िये सिद्धार्थ जायसवाल का पटना से IIM और रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में BPD यानि व्यवसाय योजना और विकास इकाई में CEO तक का सफर.

IIM student Siddharth Jaiswal
आईआईएम छात्र सिद्धार्थ जायसवाल
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Published : Oct 4, 2021, 8:35 PM IST

Updated : Oct 4, 2021, 10:47 PM IST

रांची: आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्रों की आंखों में लाखों-करोड़ों रुपए के पैकेज के साथ किसी मल्टीनेशनल कंपनी या विदेश में जॉब पाने के सपने तैर रहे होते हैं. लेकिन, इन सब के बीच एक ऐसे छात्र हैं जिन्होंने आईआईएम से पढ़ाई की और प्लेसमेंट में शामिल होने की बजाय किसानों के साथ काम करने की योजना बनाई. रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में BPD यानि व्यवसाय योजना और विकास इकाई में CEO के रूप में सेवा दे रहे सिद्धार्थ जायसवाल जैसे शख्स बिरले ही होते हैं.

यह भी पढ़ें: Positive Bharat Podcast: जानिए भारतीय कप्तान का 'विराट' व्यक्तित्व, कैसे लिखी सफलता की इबारत

साबरमती जेल में पहली बार जैविक खेती शुरू कराने का श्रेय

पटना के डॉन बॉस्को स्कूल में सिद्धार्थ की प्रारंभिक शिक्षा हुई. इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमएससी और फिर आईआईएम अहमदाबाद से एग्री बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की. सिद्धार्थ बताते हैं कि IIM से पढ़ाई करने के बाद स्टूडेंट सेक्रेटरी होने के बावजूद प्लेटमेंट में नहीं बैठे बल्कि किसानों के बीच अपने ज्ञान को ले जाने की योजना बनाई. गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसानों के साथ काम किया. इस दौरान 2009 में साबरमती जेल में कैदियों को जैविक खेती सिखाई और वहां जेल की खाली जमीन में जैविक खेती शुरू कराया.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

जब विश्व बैंक की परियोजना आई तो झारखंड आ गए

पटना से दिल्ली, फिर अहमदाबाद IIM होते हुए रांची कैसे आ गए, इसके जवाब में सिद्धार्थ जायसवाल कहते हैं कि BPD को लेकर उस समय विश्व बैंक की 10 परियोजना देश भर के लिए आई थी. पूर्वी क्षेत्र में रांची और कोलकाता में ही यूनिट था. ऐसे में कोलकाता में सिर्फ जूट रिलेटेड काम था और झारखंड में किसानों के लिए बहुत सारी योजना थी, इसलिए झारखंड आ गया.

विश्व बैंक की BPD परियोजना समय के साथ समाप्त हो गई लेकिन किसानों को आधुनिक खेती, अपने उत्पाद को मूल्य दिलाने के लिए वैल्यू एडिशन के गुण सिखाने और मार्केटिंग में माहिर सिद्धार्थ के काम को देखते हुए तत्कालीन कुलपति ने एक सोसाइटी बनाकर विश्व बैंक के बढ़ाए काम को जारी रखा.

BAU से कृषि की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत हैं सिद्धार्थ

किसानों को सामुदायिक खेती के फायदे सिखाने वाले सिद्धार्थ ने चाकुलिया में बीज संवर्धन के लिए कृषक महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बना दिया है. सिद्धार्थ ने बीएससी(एग्रीकल्चर) की पढ़ाई पूरी करने वाली अकांक्षा और रोहन जैसे युवाओं को स्टार्ट अप शुरू करने में हर तरह की मदद कर इंटरप्रेन्योर बना दिया. आज इनके माइक्रो ग्रीन जैसे उत्पाद का न सिर्फ रांची बल्कि बेंगलुरु, गुड़गांव, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में भी डिमांड है.

मां गंगा मंडल जैविक पोषण वाटिका है खास

कुपोषण की समस्या से जूझ रहे झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग शरीर के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व अपने घर के दरवाजे पर उपजा सकें, इसके लिए सिद्धार्थ जायसवाल ने जैविक पोषण वाटिका कॉन्सेप्ट विकसित किया है. जिसमें सप्ताह के सात दिन के लिए अलग-अलग क्यारियां बनाई गई है और इन छोटी-बड़ी क्यारियों का अलग-अलग महत्व है. इतना ही नहीं गोमूत्र का कृषि में प्रयोग, खेत बगीचे की पत्तियों से रसायन मुक्त खाद और अपने देसी वैरायटी की फसलों को संजोने में भी सिद्धार्थ अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

सिद्धार्थ कहते हैं कि लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा खुश रहने के लिए ही कमाते हैं. ऐसे में किसानों के बीच, युवाओं के बीच काम करने से उन्हें इतनी खुशी मिलती है जो शायद किसी मल्टी नेशनल कंपनी या विदेशों में जॉब करके नहीं मिलती.

रांची: आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्रों की आंखों में लाखों-करोड़ों रुपए के पैकेज के साथ किसी मल्टीनेशनल कंपनी या विदेश में जॉब पाने के सपने तैर रहे होते हैं. लेकिन, इन सब के बीच एक ऐसे छात्र हैं जिन्होंने आईआईएम से पढ़ाई की और प्लेसमेंट में शामिल होने की बजाय किसानों के साथ काम करने की योजना बनाई. रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में BPD यानि व्यवसाय योजना और विकास इकाई में CEO के रूप में सेवा दे रहे सिद्धार्थ जायसवाल जैसे शख्स बिरले ही होते हैं.

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साबरमती जेल में पहली बार जैविक खेती शुरू कराने का श्रेय

पटना के डॉन बॉस्को स्कूल में सिद्धार्थ की प्रारंभिक शिक्षा हुई. इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमएससी और फिर आईआईएम अहमदाबाद से एग्री बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की. सिद्धार्थ बताते हैं कि IIM से पढ़ाई करने के बाद स्टूडेंट सेक्रेटरी होने के बावजूद प्लेटमेंट में नहीं बैठे बल्कि किसानों के बीच अपने ज्ञान को ले जाने की योजना बनाई. गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसानों के साथ काम किया. इस दौरान 2009 में साबरमती जेल में कैदियों को जैविक खेती सिखाई और वहां जेल की खाली जमीन में जैविक खेती शुरू कराया.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

जब विश्व बैंक की परियोजना आई तो झारखंड आ गए

पटना से दिल्ली, फिर अहमदाबाद IIM होते हुए रांची कैसे आ गए, इसके जवाब में सिद्धार्थ जायसवाल कहते हैं कि BPD को लेकर उस समय विश्व बैंक की 10 परियोजना देश भर के लिए आई थी. पूर्वी क्षेत्र में रांची और कोलकाता में ही यूनिट था. ऐसे में कोलकाता में सिर्फ जूट रिलेटेड काम था और झारखंड में किसानों के लिए बहुत सारी योजना थी, इसलिए झारखंड आ गया.

विश्व बैंक की BPD परियोजना समय के साथ समाप्त हो गई लेकिन किसानों को आधुनिक खेती, अपने उत्पाद को मूल्य दिलाने के लिए वैल्यू एडिशन के गुण सिखाने और मार्केटिंग में माहिर सिद्धार्थ के काम को देखते हुए तत्कालीन कुलपति ने एक सोसाइटी बनाकर विश्व बैंक के बढ़ाए काम को जारी रखा.

BAU से कृषि की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत हैं सिद्धार्थ

किसानों को सामुदायिक खेती के फायदे सिखाने वाले सिद्धार्थ ने चाकुलिया में बीज संवर्धन के लिए कृषक महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बना दिया है. सिद्धार्थ ने बीएससी(एग्रीकल्चर) की पढ़ाई पूरी करने वाली अकांक्षा और रोहन जैसे युवाओं को स्टार्ट अप शुरू करने में हर तरह की मदद कर इंटरप्रेन्योर बना दिया. आज इनके माइक्रो ग्रीन जैसे उत्पाद का न सिर्फ रांची बल्कि बेंगलुरु, गुड़गांव, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में भी डिमांड है.

मां गंगा मंडल जैविक पोषण वाटिका है खास

कुपोषण की समस्या से जूझ रहे झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग शरीर के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व अपने घर के दरवाजे पर उपजा सकें, इसके लिए सिद्धार्थ जायसवाल ने जैविक पोषण वाटिका कॉन्सेप्ट विकसित किया है. जिसमें सप्ताह के सात दिन के लिए अलग-अलग क्यारियां बनाई गई है और इन छोटी-बड़ी क्यारियों का अलग-अलग महत्व है. इतना ही नहीं गोमूत्र का कृषि में प्रयोग, खेत बगीचे की पत्तियों से रसायन मुक्त खाद और अपने देसी वैरायटी की फसलों को संजोने में भी सिद्धार्थ अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

सिद्धार्थ कहते हैं कि लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा खुश रहने के लिए ही कमाते हैं. ऐसे में किसानों के बीच, युवाओं के बीच काम करने से उन्हें इतनी खुशी मिलती है जो शायद किसी मल्टी नेशनल कंपनी या विदेशों में जॉब करके नहीं मिलती.

Last Updated : Oct 4, 2021, 10:47 PM IST
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