रांची: नूतन वर्ष 2023 के आगमन और 2022 की विदाई का वक्त है. ऐसे में झारखंड की सबसे बड़ी और सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व कर रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) के लिए वर्ष 2022 कैसा रहा, अगर हम इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह कहा जा सकता है कि राज्य में सत्ता को बचाये रखने के साथ साथ संगठन में रुक रुक कर उभरते पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विरोध के स्वर को शांत करने में ऐसे उलझी कि एक साल से अधिक समय तक पार्टी अपने केंद्रीय कार्यकारिणी तक का गठन नहीं कर पाई. जब जरूरत पड़ी तो सिर्फ विनोद कुमार पांडेय को प्रभारी महासचिव बनाया गया और मीडिया से रुबरु होने के लिए कुछेक नेताओं को नामित किया गया.
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एक साल में भी कार्यकारिणी का गठन नहीं: 12वां महाधिवेशन रांची में वर्ष 2021 में ही 18 दिसम्बर को हुआ था. इस महाधिवेशन में एक बार फिर सर्वसम्मति से शिबू सोरेन को पार्टी का केंद्रीय अध्यक्ष और हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष चुन लिया गया था. और पार्टी की नई केंद्रीय कार्यकारिणी बनाने के लिए हेमंत सोरेन को अधिकृत कर दिया गया था लेकिन ऐसा संभवतः पहली बार हुआ कि महाधिवेशन के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा का केंद्रीय नेतृत्व एक साल से भी अधिक समय तक अपनी केंद्रीय कार्यसमिति के पदाधिकारियों के नाम तक घोषित नहीं कर पाया हो.
किसे खुश करें किसे दुखी टेंशन में बीत गए साल: 12वें महाधिवेशन में पार्टी के संविधान में संशोधन कर केंद्रीय कार्यसमिति सदस्य की संख्या 451 से घटाकर 351, उपाध्यक्ष 11 से घटाकर 09, महासचिव 15 से घटाकर 11, सचिव की संख्या 25 से घटाकर 15 कर दिया गया था. संभवत झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय कार्यसमिति में पदाधिकारियों के नाम घोषित नहीं कर पाने की वजह पार्टी संविधान में यही संशोधन है जिसमें पदाधिकारियों की संख्या कम की गई है. ऐसे में किस किस नेता को संगठन के पदाधिकारी जैसे उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव से बाहर किया जाए और फिर जिन नेताओं को पद नहीं मिलेगा उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी इस उधेड़बुन में पार्टी नेतृत्व उलझ कर रह गया है.
साफ-साफ कुछ बोल नहीं पर रहे नेता: झारखंड मुक्ति मोर्चा में उधेड़बुन की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब ईटीवी भारत ने सोरेन परिवार के बेहद करीबी और केंद्रीय समिति सदस्य सुप्रियो भट्टाचार्या से इसकी वजह जानने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि इस मामले पर वह कुछ भी नहीं बता पायेंगे. क्या झामुमो के इतिहास में ऐसा पहले कभी हुआ कि पार्टी महाधिवेशन के एक साल बाद भी झारखंड मुक्ति मोर्चा की कार्यकारिणी नहीं बनीं तो इस सवाल का जवाब भी सुप्रियो टाल गए. मीडिया को बयान देने के लिए नामित झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य मनोज पांडे ने भी फोन पर इतना ही कहा कि यह नेतृत्व को तय करना है. हम कुछ नहीं कर सकते.
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अपनों की बयानबाजी से रहे परेशान: लोबिन हेम्ब्रम, सीता सोरेन जैसे पार्टी के कई ऐसे विधायक और नेता हैं जो कभी खुलकर तो कभी इशारे इशारे में पार्टी नेतृत्व पर राजनीतिक बयानबाजी करते रहते हैं और पार्टी नेतृत्व के फैसलों की खिलाफत मीडिया के सामने करते रहते है. सूत्र बताते हैं कि इन्हीं वजहों से झामुमो अभी तक केंद्रीय कार्यकारिणी की घोषणा नहीं कर रहा है. पार्टी के नेताओं का कहना है कि भले ही संगठन में केंद्रीय स्तर पर पदाधिकारियों के नाम की घोषणा नहीं हुई है परंतु पार्टी का जिलाध्यक्ष और जिला सचिव के साथ साथ जिला झामुमो समिति क्रियाशील है और जनसरोकार के हर मुद्दे पर एक्टिव है.
ईडी ने किया परेशान: झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन, राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं (CM Hemant Soren). ऐसे में संगठन पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाने की एक वजह यह भी रहा कि खनन लीज के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले से लेकर, ED जांच तक कभी खुद तो कभी अपने मीडिया सलाहकार अभिषेक प्रसाद पिंटू, तो कभी विधानसभा प्रतिनिधि पंकज मिश्रा के को लेकर हेमंत सोरेन खुद इतने उलझे रहे कि संभवत झामुमो की टीम कैसी बने इस पर उनका ध्यान ही नहीं रहा हो.
बड़े बड़े फैसलों से रहे चर्चा में: राज्य में भाजपा द्वारा सरकार को अस्थिर करने की कोशिशों के बीच विधायकों को लेकर कभी लतरातू तो कभी रायपुर तक की दौर के बीच राजनीतिक बढ़त बनाने के लिए हेमंत सोरेन ने विधानसभा का विशेष सत्र से लेकर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति, सरना धर्म कोड, ओबीसी के 27% आरक्षण जैसे मुद्दे पर फ्रंटफुट पर बैटिंग की लेकिन संगठन को स्वरूप देने में 2022 में कहीं वह चूकते नजर आए.