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ऐलान के एक साल बाद भी नहीं खरीदी जा सकी जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन, रिपोर्ट में देरी से खतरे में कोरोना संक्रमितों का जीवन

म्यूटेशन से तैयार हो रहे नए-नए कोरोना वैरिएंट से निपटने के लिए सरकार गंभीर नहीं लग रही. तभी तो कोरोना के स्ट्रेन का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन खरीदने के ऐलान के एक साल बाद भी सरकार इसे धरातल पर नहीं उतार सकी. इससे कोरोना संक्रमितों का जीवन खतरे में है.

Genome sequencing machine in Jharkhand
जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन
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Published : Mar 11, 2022, 6:11 PM IST

Updated : Mar 18, 2022, 4:07 PM IST

रांची: कोरोना की नए-नए वैरिएंट को देखते हुए महामारी पर नकेल के लिए झारखंड सरकार ने जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन खरीदने की योजना तो बनाई, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर खत्म होने के बाद भी इसे हकीकत का जामा नहीं पहनाया जा सका. इससे झारखंड में कोरोना वायरस म्यूटेशन की जांच का काम नहीं शुरू हो सका. इससे वायरस की जीनोम सिक्वेंसिग के लिए झारखंड को पड़ोसी राज्यों ओडिशा, प. बंगाल और बिहार पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जिससे परिणाम आने में देरी हो रही है. इसके कारण वायरस की पहचान और संक्रमित मरीज के सही इलाज में भी दिक्कत हो रही है. जिससे लोगों का जीवन खतरे में है.

ये भी पढ़ें-कोरोना के डेल्टा वैरिएंट ने बरपाया था झारखंड में कहर, ILS भुवनेश्वर की रिपोर्ट में खुलासा

बता दें कि झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के माइक्रोबॉयोलॉजी विभाम ने जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन खरीदने के लिए वर्ष 2021 में सरकार से आग्रह किया था. लेकिन लोगों के जीवन के लिए उपयोगी यह डिमांड में फाइलों में दबकर रह गई. इस संबंध में रिम्स माइक्रोबायोलॉजी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मनोज कुमार का कहना है कि स्वास्थ्य संरचना को मजबूत करने में जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन बहुत ही उपयोगी है. यह सिर्फ कोरोना वायरस को नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के वायरल डिजीज के वायरस को पहचानने में काम आ सकती है. इससे बीमारियों से निपटने में मदद मिल सकती है.

देखें पूरी खबर

डॉ. मनोज कुमार का कहना है कि देश के अधिकतर राज्यों में जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन आ गई है. इस मामले में झारखंड पिछड़ा हुआ है. यहां अभी तक जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी नहीं की जा सकी है. यह मशीन सिर्फ वायरस के प्रकारों को ही डिटेक्ट नहीं करता है बल्कि रिसर्च में भी छात्रों को समझाने या पढ़ाने में उपयोगी है. उन्होंने बताया कि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन से मेडिकल कॉलेज में कई प्रकार के खोज संभव हो सकते हैं.

जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की वजह से समय से वायरस की क्षमता का पता लगाया जा सकता है जिसके बाद उस वायरस से निपटने के लिए योजना बनाई जा सकता है. करीब एक साल से झारखंड सरकार कोरोना एवं अन्य वायरस के नए वैरिएंट की पहचान के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी की बात कर रही है लेकिन अभी तक इस योजना को जमीन पर नहीं उतारा जा सका.


तय नहीं कर पा रहे कौन खरीदे मशीनः हालांकि रिम्स के वरिष्ठ चिकित्सक और जनसंपर्क अधिकारी डॉ. डी के सिन्हा 1 महीने के भीतर सरकारी प्रक्रिया के तहत इसकी खरीदारी करने का भरोसा दिलाते हैं. उनका कहना है कि गवर्नमेंट ई मार्केटिंग (GEM) प्लेटफॉर्म के माध्यम से जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी पर बातचीत कर रही है. जल्द ही यह मशीन रिम्स में देखने को मिल जाएगी.

इस संबंध में जब कुछ और वरिष्ठ अधिकारियों से जानकारी लेने की कोशिश की गई तो अधिकारियों ने कहा कि इस मशीन को खरीदने में अत्यधिक टैक्स लग रहा था. अगर रिम्स के माध्यम से ही खरीद की जाए तो सरकारी स्तर पर टेक्स कम लगते हैं. इसीलिए यह निर्णय लिया गया है कि इस मशीन को विभाग की तरफ से नहीं बल्कि रिम्स अस्पताल की तरफ से खरीदा जाएगा. ताकि टैक्स बचाया जा सके.


अफसरों के मुताबिक जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी में 90 से 95 लाख रुपये जीएसटी के रूप में बतौर टैक्स ही लग जाते हैं. लेकिन रिम्स में शोध कार्य के लिए मशीन की खरीद होने पर जीएसटी माफ है. इसलिए राज्य का पैसा बचाने के लिए रिम्स के जरिए जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन खरीदने का निर्देश दिया गया है.

ये भी पढ़ें-कोरोना की तीसरी लहर खत्म होने के बाद आई आयुष किट, देरी से बांटने की तैयारी पर उठे सवाल

एक साल बाद भी नहीं हो पाई खरीदः इससे पहले कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर राज्य सरकार ने दो जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी की बात कही थी. एक मशीन को रिम्स में लगाना था. वहीं दूसरी मशीन को एमजीएम अस्पताल जमशेदपुर में स्थापित करना था. रिम्स प्रबंधन ने जीनोम मशीन खरीदने के लिए जीबी की बैठक में स्वीकृति प्रदान करा ली थी. उसके बावजूद भी करीब एक साल बीत जाने को है लेकिन अभी तक मशीन की खरीदारी नहीं हो पाई है.


रिम्स निदेशक डॉ. कामेश्वर प्रसाद का कहना है कि आईआईटी मुंबई ने अनुमान लगाया है कि जल्द ही कोरोना की चौथी लहर आ सकती है. ऐसे में जरूरी है कि राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की उपलब्धता हो, जिसको लेकर सभी तरह की तैयारियां कर ली गईं हैं. उन्होने कहा कि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन को खरीदने से पूर्व उसे उपयोग करने के लिए मैन पावर का भी इंतजाम किया जा रहा है. नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला जा चुका है. जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन को चलाने के लिए स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी ट्रेनिंग देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी ताकि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन आने से पहले सारी तैयारियां पूरी रहे और हम अपने ही राज्य में वायरस के नए स्ट्रेन को पहचान सकें और उससे लोगों को बचा सकें.


ये है जीनोम सिक्वेंसिंगः बता दें कि हमारी कोशिकाओं में आनुवांशिक पदार्थ DNA, RNA होते हैं. इन पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है. एक जीन की तय जगह, दो जीन के बीच की दूरी, उसके आंतरिक हिस्सों के व्यवहार और उसके बीच की दूरी को समझने के लिए कई तरीकों से सिक्वेंसिंग की जाती है. इससे पता चलता है कि किस तरह के बदलाव आए हैं. कोरोना वायरस की जीनोम मैपिंग या जीनोम सिक्वेंसिंग से पता चलता है कि वायरस पुराने वायरस से कितना अलग है. इससे ओमीक्रोन वैरिएंट की भी पहचान संभव है. या यह कहें कि जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का डाटाबेस होता है. किसी भी वायरस में डीएनए और आरएनए जैसे तत्व होते हैं. जीनोम सिक्वेंसिंग के माध्यम से इनकी जांच की जाती है, यह वायरस कैसे बना है और इसमें क्या खास बात है.

रांची: कोरोना की नए-नए वैरिएंट को देखते हुए महामारी पर नकेल के लिए झारखंड सरकार ने जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन खरीदने की योजना तो बनाई, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर खत्म होने के बाद भी इसे हकीकत का जामा नहीं पहनाया जा सका. इससे झारखंड में कोरोना वायरस म्यूटेशन की जांच का काम नहीं शुरू हो सका. इससे वायरस की जीनोम सिक्वेंसिग के लिए झारखंड को पड़ोसी राज्यों ओडिशा, प. बंगाल और बिहार पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जिससे परिणाम आने में देरी हो रही है. इसके कारण वायरस की पहचान और संक्रमित मरीज के सही इलाज में भी दिक्कत हो रही है. जिससे लोगों का जीवन खतरे में है.

ये भी पढ़ें-कोरोना के डेल्टा वैरिएंट ने बरपाया था झारखंड में कहर, ILS भुवनेश्वर की रिपोर्ट में खुलासा

बता दें कि झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के माइक्रोबॉयोलॉजी विभाम ने जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन खरीदने के लिए वर्ष 2021 में सरकार से आग्रह किया था. लेकिन लोगों के जीवन के लिए उपयोगी यह डिमांड में फाइलों में दबकर रह गई. इस संबंध में रिम्स माइक्रोबायोलॉजी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मनोज कुमार का कहना है कि स्वास्थ्य संरचना को मजबूत करने में जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन बहुत ही उपयोगी है. यह सिर्फ कोरोना वायरस को नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के वायरल डिजीज के वायरस को पहचानने में काम आ सकती है. इससे बीमारियों से निपटने में मदद मिल सकती है.

देखें पूरी खबर

डॉ. मनोज कुमार का कहना है कि देश के अधिकतर राज्यों में जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन आ गई है. इस मामले में झारखंड पिछड़ा हुआ है. यहां अभी तक जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी नहीं की जा सकी है. यह मशीन सिर्फ वायरस के प्रकारों को ही डिटेक्ट नहीं करता है बल्कि रिसर्च में भी छात्रों को समझाने या पढ़ाने में उपयोगी है. उन्होंने बताया कि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन से मेडिकल कॉलेज में कई प्रकार के खोज संभव हो सकते हैं.

जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की वजह से समय से वायरस की क्षमता का पता लगाया जा सकता है जिसके बाद उस वायरस से निपटने के लिए योजना बनाई जा सकता है. करीब एक साल से झारखंड सरकार कोरोना एवं अन्य वायरस के नए वैरिएंट की पहचान के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी की बात कर रही है लेकिन अभी तक इस योजना को जमीन पर नहीं उतारा जा सका.


तय नहीं कर पा रहे कौन खरीदे मशीनः हालांकि रिम्स के वरिष्ठ चिकित्सक और जनसंपर्क अधिकारी डॉ. डी के सिन्हा 1 महीने के भीतर सरकारी प्रक्रिया के तहत इसकी खरीदारी करने का भरोसा दिलाते हैं. उनका कहना है कि गवर्नमेंट ई मार्केटिंग (GEM) प्लेटफॉर्म के माध्यम से जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी पर बातचीत कर रही है. जल्द ही यह मशीन रिम्स में देखने को मिल जाएगी.

इस संबंध में जब कुछ और वरिष्ठ अधिकारियों से जानकारी लेने की कोशिश की गई तो अधिकारियों ने कहा कि इस मशीन को खरीदने में अत्यधिक टैक्स लग रहा था. अगर रिम्स के माध्यम से ही खरीद की जाए तो सरकारी स्तर पर टेक्स कम लगते हैं. इसीलिए यह निर्णय लिया गया है कि इस मशीन को विभाग की तरफ से नहीं बल्कि रिम्स अस्पताल की तरफ से खरीदा जाएगा. ताकि टैक्स बचाया जा सके.


अफसरों के मुताबिक जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी में 90 से 95 लाख रुपये जीएसटी के रूप में बतौर टैक्स ही लग जाते हैं. लेकिन रिम्स में शोध कार्य के लिए मशीन की खरीद होने पर जीएसटी माफ है. इसलिए राज्य का पैसा बचाने के लिए रिम्स के जरिए जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन खरीदने का निर्देश दिया गया है.

ये भी पढ़ें-कोरोना की तीसरी लहर खत्म होने के बाद आई आयुष किट, देरी से बांटने की तैयारी पर उठे सवाल

एक साल बाद भी नहीं हो पाई खरीदः इससे पहले कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर राज्य सरकार ने दो जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी की बात कही थी. एक मशीन को रिम्स में लगाना था. वहीं दूसरी मशीन को एमजीएम अस्पताल जमशेदपुर में स्थापित करना था. रिम्स प्रबंधन ने जीनोम मशीन खरीदने के लिए जीबी की बैठक में स्वीकृति प्रदान करा ली थी. उसके बावजूद भी करीब एक साल बीत जाने को है लेकिन अभी तक मशीन की खरीदारी नहीं हो पाई है.


रिम्स निदेशक डॉ. कामेश्वर प्रसाद का कहना है कि आईआईटी मुंबई ने अनुमान लगाया है कि जल्द ही कोरोना की चौथी लहर आ सकती है. ऐसे में जरूरी है कि राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की उपलब्धता हो, जिसको लेकर सभी तरह की तैयारियां कर ली गईं हैं. उन्होने कहा कि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन को खरीदने से पूर्व उसे उपयोग करने के लिए मैन पावर का भी इंतजाम किया जा रहा है. नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला जा चुका है. जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन को चलाने के लिए स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी ट्रेनिंग देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी ताकि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन आने से पहले सारी तैयारियां पूरी रहे और हम अपने ही राज्य में वायरस के नए स्ट्रेन को पहचान सकें और उससे लोगों को बचा सकें.


ये है जीनोम सिक्वेंसिंगः बता दें कि हमारी कोशिकाओं में आनुवांशिक पदार्थ DNA, RNA होते हैं. इन पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है. एक जीन की तय जगह, दो जीन के बीच की दूरी, उसके आंतरिक हिस्सों के व्यवहार और उसके बीच की दूरी को समझने के लिए कई तरीकों से सिक्वेंसिंग की जाती है. इससे पता चलता है कि किस तरह के बदलाव आए हैं. कोरोना वायरस की जीनोम मैपिंग या जीनोम सिक्वेंसिंग से पता चलता है कि वायरस पुराने वायरस से कितना अलग है. इससे ओमीक्रोन वैरिएंट की भी पहचान संभव है. या यह कहें कि जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का डाटाबेस होता है. किसी भी वायरस में डीएनए और आरएनए जैसे तत्व होते हैं. जीनोम सिक्वेंसिंग के माध्यम से इनकी जांच की जाती है, यह वायरस कैसे बना है और इसमें क्या खास बात है.

Last Updated : Mar 18, 2022, 4:07 PM IST
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