रांची: पारसनाथ पर्वत विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. आदिवासी समाज भी पारसनाथ पर्वत को ईश्वर मानते हैं. पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगल अभियान के अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि पारसनाथ विवाद से सिर्फ जैन समुदाय ही नहीं, बल्कि आदिवासी समुदाय के लोग भी आहत हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार ने आदिवासियों की अनदेखी कर निर्णय लिया है, जिसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे.
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पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि गिरिडीह में पारसनाथ पहाड़ पर जैन समुदाय के प्रमुख तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी की पवित्रता बरकरार रखने को लेकर आदिवासी समाज भी समर्थन में है. लेकिन केंद्र और राज्य की सरकारें राजनीति कर लोगों को दिग्भ्रमित कर रही है. उन्होंने कहा कि पारसनाथ पहाड़ पहले से आदिवासियों के मरांग बुरु के नाम से प्रसिद्ध है. लेकिन कुछ वर्ष पहले जैन मुनि यहां पहुंचे थे और उनकी मौत हो गई थी. इसके बाद जैन धर्म मानने वाले लोगों ने उसे अपना तीर्थ स्थल बना लिया.
सालखन मुर्मू ने आरोप लगाते हुए कहा कि जैनियों ने आदिवासियों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर दावा किया है, जिसपर सरकार को विचार करने की जरूरत है. क्योंकि आदिवासी समाज में मरांग बुरू के नाम से ही सभी धार्मिक कार्यों की शुरुआत होती है. उन्होंने कहा कि पारसनाथ पर्वत के आसपास सिर्फ आदिवासी ही है. संथाल गांव भी है. लेकिन आदिवासी को अनदेखी कर केंद्र और राज्य सरकार ने जैनियों को पारसनाथ पर्वत सुपुर्द कर दी है, जो ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन इसको लेकर गंभीर नहीं हैं. उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार इस मुद्दे को हल नहीं निकालती है तो आदिवासी समुदाय देशभर में आंदोलन करेगा.