रांचीः बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मशरूम उत्पादन इकाई ने बुधवार को बोकारो, गुमला एवं रांची जिले के 32 किसानों को बटन मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दी. उद्घाटन के मौके पर डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव ने कहा कि बटन मशरूम स्थानीय एवं विदेशों में काफी लोकप्रिय है.
प्रदेश के स्थानीय बाजारों में भी इसकी काफी मांग है. इसका व्यावसायिक उत्पादन स्वरोजगार के बेहतर साधन साबित हो सकता है. ट्रेनिंग में मशरूम उत्पादन इकाई प्रभारी डॉ नरेंद्र कुदादा ने किसानों को धान और गेहूं के भूसे में यूरिया, डीएपी, चोकर, चूना और गुड़ के साथ मिश्रित कर कम्पोस्ट बनाने की तकनीकी जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि 28-30 दिनों में कम्पोस्ट तैयार हो जाता है. काले और भूरे रंग के इस खाद को 2-3 दिनों के अंदर 6-7 किलो क्षमता वाले पॉलिथीन बैग में भरकर स्पान (बीज) की बिजाई की जाती है.
एक क्विंटल कम्पोस्ट के लिए एक–डेढ़ किलो स्पाँन (बीज) की जरूरत होती है. पांच क्विंटल कम्पोस्ट से करीब 70 पॉलिथीन बैग में बिजाई की जा सकती है. बिजाई के 20-25 दिनों के बाद बटन मशरूम तैयार हो जाता है. बैग में 7-10 दिनों के अंतराल में 3-4 बार मशरूम की कटाई की जा सकती है.
एक बैग से करीब दो किलो मशरूम
एक बैग से करीब दो किलो मशरूम प्राप्त होता है. इसमें उत्पादन लागत करीब 6 हजार पड़ता है. इस विधि से 140 किलो बटन मशरूम उत्पादित किया जा सकता है.
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इस मौके पर डॉ एचसी लाल ने बताया कि मशरूम उत्पादन में स्पाँन (बीज) की गुणवत्ता पर खास ध्यान देना होता है. इकाई से 30 रूपये प्रति 300 ग्राम की दर से स्पाँन (बीज) को खरीदा जा सकता है.
उन्होंने किसानों को मशरूम उत्पादन के बाद पॉलिथीन बैग में अनुपयोगी पड़े कम्पोस्ट से ओल एवं अदरख की खेती में विशेष लाभ लेने के बारे में बताया. किसानों ने इकाई के मुनी प्रसाद की देख-रेख में धान और गेहूं से कम्पोस्ट का ढेर को बनाने, स्पाँन की बिजाई एवं बटन मशरूम कटाई तकनीकों का व्यावहारिक जानकारी ली.