EXCLUSIVE: धन कुबेर कांग्रेसी धीरज साहू का बिहार से है कनेक्शन, ओबरा से आकर लोहरदगा में बसे थे इनके दादा, कैसे बने पूंजीपति - रांची न्यूज
Story of Dheeraj Sahu becoming rich. धन कुबेर कांग्रेस सांसद धीरज साहू का बिहार से कनेक्शन है. इनके दादा ओबरा से आकर लोहरदगा में बस गए थे. दाल-चावल के व्यवसाय से की थी शुरुआत, बन गए बड़े पूंजीपति. जानिए पूरी कहानी. Rs 350 crore found from Dheeraj Sahu house.
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Published : Dec 13, 2023, 5:15 PM IST
|Updated : Dec 13, 2023, 6:13 PM IST
रांची: एक पुरानी कहावत है कि 'जहां ना जाए गाड़ी, वहां जाए मारवाड़ी'. इस कहावत का इस्तेमाल वैश्य समाज के लिए किया जाता है. क्योंकि इनका मुख्य पेशा व्यवसाय होता है. इस समाज के लोग कहीं भी जाकर व्यवसाय को खड़ा करने की ताकत रखते हैं. आर्थिक जोखिम उठाने से नहीं हिचकते. इन दिनों झारखंड में इस कहावत की चर्चा जोर शोर से हो रही है. इसकी वजह बने हैं कांग्रेस के धन कुबेर राज्य सभा सांसद धीरज प्रसाद साहू और उनके परिवार के लोग.
इनकम टैक्स की छापेमारी में इनके अलग-अलग ठिकानों से 350 करोड़ रुपए से ज्यादा नकद बरामद किए जा चुके हैं. झारखंड के लोहरदगा और रांची के अलावा ओड़िशा के बलांगिर, बौध, सुंदरगढ़ और संबलपुर में शराब किंग के रुप में मशहूर साहू परिवार को अमीर और रसूखदार बनाने का सपना उनके दादा हीरा प्रसाद साहू ने देखी थी.
बिहार से लोहरदगा आए थे धीरज साहू के दादा: इस परिवार को करीब से जानने वाले बताते हैं कि लोहरदगा में इस परिवार की नींव हीरा साहू ने रखी थी. हीरा साहू यानी धीरज साहू के दादा. एक आम व्यवसायी की तरह औरंगाबाद के ओबरा से लोहरदगा आए थे. तब देश में अंग्रेजों का राज था. उस जमाने में बिहार के मगध क्षेत्र से बड़ी संख्या में वैश्य समाज के लोग शेरघाटी होते हुए लोहरदगा, चंदवा, गुमला, लातेहार, डाल्टेनगंज में आकर बस गये. तब लोहरदगा कई मायनों में बेहद खास था. यहां से एक रास्ता सीधे महाराष्ट्र को जोड़ता था.
1833 में अंग्रेजों ने साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी के प्रशासकीय इकाई का मुख्यालय लोहरदगा को ही बनाया था. यहां महारानी विक्टोरिया के सम्मान में उनके नाम से तालाब खुदवाया गया था, जिसे आज भी विक्टोरिया तालाब कहा जाता है. लिहाजा, हीरा साहू इसी जगह पर बस गये. उन्होंने रोजमर्रा की जरुरत की चीजें खासकर नमक, मसाला, तेल बेचना शुरु किया. इसके बाद इस परिवार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
कैसे शराब के कारोबार से जुड़ा साहू परिवार: हीरा साहू ने अपने छोटे व्यवसाय के जरिए यहां के आदिवासी समाज में अपनी पहचान कायम कर ली. उनकी विरासत को आगे बढ़ाया उनके पुत्र स्व. बलदेव साहू ने. होश संभालते ही स्व. बलदेव साहू को यह समझने में देर नहीं लगी कि यहां कौन सा धंधा उन्हें धनवान बना सकता है. वह जान गये थे कि जमीन के असली मालिक आदिवासी समाज के लोग नशा के शौकीन हैं. यह उनकी परंपरा का हिस्सा है. तब आदिवासी समाज के लोग नशा के लिए 'हड़िया' (चावल से बना पेयपदार्थ) का सेवन करते थे. कहीं-कहीं महुआ से चुलईया बनाकर भी लोग नशा करते थे.
लिहाजा स्व. बलदेव साहू ने लोहरदगा में कच्ची शराब की भट्ठी खोल दी. यह कारोबार ऐसा चला कि देखते-देखते बलदेव साहू की इलाके में तूती बोलने लगी. आगे चलकर उनके छह बेटों में कारोबार को अपने-अपने तरीके से आगे बढ़ाया, जो अब ओड़िशा के बलांगिर, सुंदरगढ़, बौध और संबलपुर जिला तक फैल चुका है. स्व. बलदेव साहू ने जो भट्ठी खोली थी वह कुछ दशक पहले बंद हो गई. लेकिन आज भी वहां से पाउच वाले देसी शराब की बिक्री होती है. उस जगह को भट्ठी ढलान के नाम से जाना जाता है. 1888 में अंग्रेजों ने लोहरदगा में नगर पालिका स्थापित की थी. उस जमाने में धीरज साहू के पिता स्व. बलदेव साहू लोहरदगा नगरपालिका के चेयरमैन भी बने थे.
आरा में है धीरज साहू का ननिहाल: धन कुबेर धीरज साहू का ननिहाल आरा में कोइलवर थाना क्षेत्र के बहियारा गांव में है. इस परिवार को जानने वाले बताते हैं कि इस परिवार का आरा में भी अकूत संपत्ति है. बेशुमार धन बढ़ने के साथ स्व. बलदेव साहू के सबसे बड़े पुत्र शिव प्रसाद साहू ने राजनीति में कदम रखा और रांची से दो बार कांग्रेस के सांसद चुने गये. इसके बाद की कहानी से पूरा देश वाकिफ है.
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