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रांचीः 12 साल में एक बार होती है देशावली पूजा, मोरहाबादी मौजा में दी गई भेड़ की बलि

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Published : Oct 19, 2020, 8:41 AM IST

रांची के मोरहाबादी मौजा में आदिवासी समाज ने देशावली पूजा का आयोजन किया. इस दौरान आदिवासियों ने भेड़ की बलि देकर मौजा में रहने वाले लोगों के दुख को दूर करने की प्रार्थना की.

deshawali puja organized
भेड़ की बलि

रांचीः आदिवासी समाज ने गांव की खुशहाली के लिए राजधानी के मोरहाबादी मौजा में देशावली पूजा संपन्न कराई, जहां पाहन की ओर से पूरे विधि विधान से देवी-देवताओं की पूजा अर्चना कर गांव की खुशहाली के लिए कामना की गई.

देखें पूरी खबर

मान्यता है कि देशावली पूजा प्रत्येक 12 साल में की जाती है. इस पूजा के माध्यम से गांव के देवी-देवताओं को प्रसन्न किया जाता है और भेड़ की बलि दी जाती है. ताकि मौजा में रहने वाले लोग रोग से दूर रहें और उनके दुख दूर हो सकें.

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आदिवासियों की सदियों पुरानी परंपरा
पाहन सहयोगी बल्लकू उरांव ने बताया कि देशावली पूजा आदिवासियों की सदियों पुरानी परंपरा है. महामारी, रोग और आदिवासियों के दुख को दूर करने को लेकर यह प्रथा सदियों से निभाई जा रही है. इस पूजा के लिए पहले पाहन की ओर से भैंस की बलि देने की प्रथा थी, लेकिन अब भेड़ की बलि दी जाती है. यह पूरी पूजा पाहन की ओर से संपन्न कराई जाती है. बलि दिए हुए भेड़ को प्रसाद के रूप में लोग खाते हैं. यह आदिवासियों की सदियों पुरानी परंपरा है.

रांचीः आदिवासी समाज ने गांव की खुशहाली के लिए राजधानी के मोरहाबादी मौजा में देशावली पूजा संपन्न कराई, जहां पाहन की ओर से पूरे विधि विधान से देवी-देवताओं की पूजा अर्चना कर गांव की खुशहाली के लिए कामना की गई.

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मान्यता है कि देशावली पूजा प्रत्येक 12 साल में की जाती है. इस पूजा के माध्यम से गांव के देवी-देवताओं को प्रसन्न किया जाता है और भेड़ की बलि दी जाती है. ताकि मौजा में रहने वाले लोग रोग से दूर रहें और उनके दुख दूर हो सकें.

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आदिवासियों की सदियों पुरानी परंपरा
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