रांचीः एक कहावत है क्या वर्षा जब कृषि सुखाने. झारखंड के किसानों के लिए यह कहावत इस साल पूरी तरह चरितार्थ हो रही है. राज्य में ज्यादातर जमीन पर फसल के रूप में किसान धान की खेती करते हैं, जो पूर्ण रूप से बारिश पर आश्रित होते हैं. इस स्थिति में इस साल देर से आयी मॉनसूनी के कारण ज्यादातर जिलों में लक्ष्य के अनुरूप धान की रोपनी नहीं हुई. किसानों ने अगस्त महीने के दूसरे पखवाड़े में हुई बारिश के बाद धान की फसल लगाया. लेकिन आज किसानों के चेहरे से खुशी गायब है. किसानों को फसल राहत योजना से उम्मीद थी, जो अब टूटती नजर आ रही है.
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हेमंत सोरेन सरकार ने सुखाड़ की स्थिति में किसानों को मदद पहुंचाने को लेकर फसल राहत योजना की शुरुआत की. इस योजना का लाभ लेने के लिए 15 लाख से अधिक किसानों ने निबंधन कराया है. वहीं, राज्य के अलग अलग जिलों से निबंधन की तिथि बढ़ाने की भी मांग होती रही है. कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि 15 लाख किसानों ने निबंधन कराया है. लेकिन निबंधित किसानों को लाभ तब मिलेगा, जब उनके आवेदनों का क्रॉस वेरिफिकेशन हो जाएगा. उन्होंने कहा कि अब इस योजना में निबंधन का मौका नहीं दिया जाएगा. इसकी वजह है कि अब रबी फसल का मौसम आने वाला है.
कृषि मंत्री ने कहा कि कई जिलों में सुखाड़ की भयावह रिपोर्ट आई है. उन्होंने कहा कि किसानों को फसल राहत के लिए ना सिर्फ क्रॉस वेरिफिकेशन का इंतजार करना होगा. बता दें कि झारखंड राज्य फसल राहत योजना के तहत फसल उपज का 30 से 50% तक क्षति होने पर तीन हजार प्रति एकड़ के हिसाब से अधिकतम 15 हजार और 50% से अधिक का नुकसान पर चार हजार प्रति एकड़ के हिसाब से अधिकतम 20 हजार तक का मुआवजा DBT के माध्यम से किसानों के खाते में डालने की योजना थी. लेकिन राज्य के कई प्रखंडों में सुखाड़ के सिवियरिटी की रिपोर्ट आपदा विभाग को भेज देने और केंद्र से मिलने वाली आपदा सहायता राशि के चलते फसल राहत योजना का लाभ भी किसानों को मिलने में देर होना स्वाभाविक है.