रांचीः साल 2020 या फिर कोरोना का ये साल झारखंड में भी अपना असर डाला. मार्च के महीने में प्रदेश में वायरस की दस्तक के बाद पूरा राज्य जैसे थम गया. जो जहां थे वहीं रूक गए. आम हो या खास, जनजीवन हो या उद्योग सब स्थिर हो गए. झारखंड में सरकारी महकमा संकट की घड़ी में आम लोगों के हमेशा साथ खड़ी रही, बात जांच की हो, व्यवस्था की हो या फिर इलाज की. हर मोर्चे पर सरकार के साथ-साथ आम लोग भी कदम-कदम से मिलाते दिखे.
स्वास्थ्य कर्मियों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा साल 2020
वर्ष 2020 स्वास्थ्य कर्मियों के लिए चुनौतीपूर्ण और संघर्ष से भरा वर्ष रहा. मार्च महीने से ही कोरोना ने झारखंड को अपनी चपेट में ले लिया और फिर उसके बाद लगातार मरीजों की संख्या दिन दोगना रात चौगुना बढ़ती चली गई. जिसके बाद स्वास्थ्य कर्मी भी लगातार मरीजों की सेवा कर उन्हें ठीक करते रहे. 31 मार्च से अगस्त महीने तक कोरोना के कारण लोगों में डर बना रहा और संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई. इसके बावजूद भी स्वास्थ्य कर्मी और कोरोना वारियर्स लगातार मरीजों की सेवा करते रहे जिस कारण कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या में काफी बढ़ोतरी देखी गई.
वर्ष 2020 में कोरोना वारियर्स के रूप में सबसे अधिक किसी ने जान जोखिम में डाली तो वो स्वास्थ्यकर्मी ही थे. कोरोना के मरीजों का इलाज करते-करते कई डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मी खुद भी बीमार पड़ गए. अगर किसी ने कोरोना की जंग में सबसे अहम भूमिका निभाई तो वह स्वास्थ्यकर्मी ही थे. कोरोना से जंग लड़ते-लड़ते राजधानी सहित राज्य के कई चिकित्सक और पारा मेडिकलकर्मी कोरोना संक्रमित भी हुए. जिसमें रांची के सिविल सर्जन डॉ बीवी प्रसाद, रिम्स के अधीक्षक डॉ विवेक कश्यप, डॉ आरटी गुड़िया, डॉ सीबी सहाय, डॉ जेके मित्रा, डॉ मनोज कुमार, नर्स रामरेखा, नर्स प्रीती कुमारी सहित कई स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हो गये.
एंबुलेंस चालक और सुरक्षाकर्मी की भूमिका अहम
सिर्फ स्वास्थ्य कर्मी ही नहीं बल्कि अस्पतालों में काम करने वाले एंबुलेंस चालक और सुरक्षाकर्मी भी कोरोना की जंग में अहम भूमिका निभाई. सूचना मिलते ही 108 के एंबुलेंस कर्मी संक्रमित मरीजो का उनके घर से अस्पताल लाने का काम किया. राज्यभर में स्वास्थ्य विभाग की ओर से कुल 70 एंबुलेंस कोरोना संक्रमित मरीजों को उनके घर से अस्पताल लाने के लिए चिन्हित किया गया था. जिसमें कार्यरत एंबुलेंस चालक और पारामेडिकल कर्मियों ने अहम भूमिका निभाई.
कोराना काल में ब्लड की कमी को लेकर भी अन्य बिमारियों से ग्रसित मरीजों के लिये कई सामाजिक संस्थानों ने अहम भूमिका निभाई. रिम्स अस्पताल में कार्यरत जूनियर चिकित्सक डॉ चंद्रभुषण ने राजधानी सहित विभिन्न जिलों में ब्लड कैंप लगाकर कोराना काल में ब्लड की कमी को पूरा करने का बेहतर काम किया. कोरोना काल में जहां अस्पताल कोरोना के मरीजों को ठीक करने में लगे थे. दूसरी ओर कोरोना वायरस के डर से ब्लड कैंप में रक्तदान करने वाले लोगों की संख्या भी काफी कम हो गई थी, नौबत यहां तक आ गई थी कि रिम्स और सदर अस्पताल जैसे ब्लड बैंकों में भी क्षमता से काफी कम ब्लड मौजूद था. ऐसे में रिम्स अस्पताल में कार्यरत युवा चिकित्सक डॉक्टर चंद्रभूषण ने लगातार ब्लड कैंप लगाकर ब्लड की कमी को पूरा करने का काम किया, ताकि हेमोफिल्लिक और थैलेसीमिया के मरीजों को समय पर ब्लड मिल सके.
कोरोना काल में लोगों ने पेश की मानवता की मिसाल
कोरोना काल की अवधि में चिकित्सकों के साथ-साथ कई सामाजिक संगठनों ने लॉकडाउन के दौरान अस्पताल में आने वाले गरीब मरीजों और उनके परिजनों को दो वक्त के भोजन का इंतजाम कराकर सामाजिक दायित्व निभाने का काम किया. कोरोना के संक्रमित मरीजों की संख्या को बढ़ते देख जहां केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने पूरे राज्य में लॉकडाउन था. वैसे में ना तो कहीं खाने के लिए भोजन मिल पा रहा था और ना ही कोई दुकानें खुली थी. इसीलिए वैसे असहाय लोगों के लिए अस्पताल ही भोजन का एक साधन था. लेकिन अस्पतालों के लिए भी कठनाई बढ़ रही थी कि मरीजों के अलावा अन्य लोगों को भोजन कैसे उपलब्ध कराया जाए. उस विषम परिस्थिति में कई सामाजिक संगठन आगे आकर अस्पतालों में आने वाले गरीब मरीजों और असहाय लोगों को भोजन कराने का काम कर रहे थे.
मुश्किल रहा मृत कोरोना मरीज का अंतिम संस्कार कराना
अस्पताल में कोरोना की वजह से मरने वाले मरीजों का अंतिम संस्कार करना भी स्वास्थ विभाग के लिए एक चुनौती था. कोरोना से मरने वाले मरीज के अपने परिजन भी मुंह फेरते नजर आए तो वैसे मरीजों को मोक्ष प्राप्त कराने में कई कोरोना वॉरियर्स ने अहम भूमिका निभाई. कोरोना काल में कई ऐसे गंभीर मरीज आए जिन्होंने कोरना से जंग लड़ते-लड़ते अपनी जान गंवा दी. परेशानी तब खड़ी होने लगी जब उनका अंतिम संस्कार करने के लिए अपनों ने ही हाथ खड़े कर दिए ऐसे में सदर थाना के चालक मुकेश कुमार, रिम्स के गार्ड दीपक राम और मुक्तिधाम में शव जलाने वाले कई कोरोना वारियर्स ने अहम भूमिका निभाई. कोरोना से मौत होने वाले मरीजों को धार्मिक परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार कराने का काम किया.
कोरोना की वजह से आई तमाम परेशानियों के बावजूद भी पर्दे के पीछे रहकर कई आला अधिकारियों ने भी स्वास्थ्य कर्मियों एवं कोरोना वारियर्स को मार्गदर्शन कर अहम भूमिका निभाई. कोरोना काल में जहां लोग एक दूसरे को छूने से परहेज कर रहे थे. वैसी परिस्थिति में स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सक मरीजों को पकड़ कर उनका इलाज करने में लगे थे. दूसरी ओर ऐसे भी स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ कर्मचारी थे, जो पर्दे के पीछे रहकर सभी कोरोना वॉरियर्स की हौसला अफजाई करने का काम कर रहे थे. झारखंड रूरल हेल्थ मिशन सोसाइटी (जेआरएचएम) में कार्यरत डॉ राकेश दयाल, स्वास्थ्य सचिव डॉ नितिन मदन कुलकर्णी, स्वास्थ्य विभाग के निदेशक शैलेष चौरसिया, रविशंकर शुक्ला सहित कई अधिकारियों ने कोरोना वारियर्स की हौसला अफजाई कर उन्हें प्रोत्साहित करते रहे.
अस्पताल में काम करने वाले सफाई कर्मचारियों ने भी कोरोना काल में उपयोग होने वाले पीपीई किट, मास्क सहित अन्य मेडिकल इक्विपमेंट को सावधानी के साथ डिस्ट्रॉय कर अहम भूमिका निभाने का काम किया. ताकि कोरोना के मरीजों के उपयोग में लाने वाले संसाधन से संक्रमन फैल ना सके. कोरोना काल में जहां चिकित्सकों एवं पारा मेडिकल कर्मियों ने मरीजों का इलाज कर उनकी जान बचाने का काम किया वहीं दूसरी ओर अस्पताल में काम करने वाले सफाई कर्मचारियों ने भी कोरोना के मरीजों के इलाज में आने वाले इक्विपमेंट्स को मेडिकल गाइडलाइन के अनुसार और सावधानी के साथ नष्ट करके कोरोना के जंग में अहम भूमिका निभाई. क्योंकि कई बार कोरोना के मरीज की ओर से उपयोग किए गए सामान से भी संक्रमण फैलने का डर रहता है. जैसे कोरोना के मरीज की ओर से उपयोग किए गए मास्क, पीपीई किट या अन्य सामान जो कि अगर दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आए तो निश्चित रूप से संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है.