रांचीः पिछले 70 साल के इतिहास को देखें तो कांग्रेस पार्टी को गरीब, पिछड़ों और दलितों की पार्टी मानी जाती थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोर वोटों में आदिवासी, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों की गणना होती थी. लेकिन बदलते समय के साथ साथ देश में मंडल कमंडल की राजनीति और अलग अलग राज्यों में मजबूत होते क्षेत्रीय दलों की वजह से देश स्तर में कांग्रेस का जनाधार इन वर्गों में कम होता चला गया. इसका असर यह हुआ कि कांग्रेस केंद्र के साथ साथ कई राज्यों में सत्ता से दूर हो गयी. हालत ऐसी रही कि कई राज्यों में मजबूत क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता करने को मजबूर होना पड़ा, झारखंड उन्ही में से एक है.
लेकिन अपनी इसी जनाधार को दोबारा हासिल करने के लिए कांग्रेस पार्टी लगातार ऐड़ी-चोटी लगा रही है और कई रणनीतियों पर मिशन मोड पर काम कर रही है. झारखंड में कांग्रेस पार्टी की कमान आदिवासी और पिछड़ों के हाथों में रहने के बादजूद झारखंड मुक्ति मोर्चा ज्यादा मजबूत हुआ. झारखंड में कांग्रेस आज विधायकों की संख्या के हिसाब से जेएमएम और भाजपा के बाद तीसरे नंबर की पार्टी है. लेकिन झामुमो के साथ उसे समझौता कर चुनावी मैदान जाना पड़ता है.
SC ST OBC और माइनॉरिटी को साधने की कवायदः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अब कुल आबादी की इन लगभग 85 फीसदी वाले समूह को अपने साथ करने के लिए खास योजना बनाई है. जिसके तहत अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले पुराने नेताओं को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके साथ ही उनके लीडरशिप क्वालिटी को निखारा जाएगा. वहीं इन समुदाय से जुड़े युवा को कांग्रेस से जोड़कर उनमें नेता बनने के लिए विशेष लीडरशिप प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके लिए केंद्रीय नेतृत्व ने SC ST OBC और माइनॉरिटी वर्गों से आने वाले नेताओं (हर पंचायत और प्रखंड में कम से कम चार) के नामों की सूची मांगी है.
कांग्रेस के हाथ से फिसलते रहे SC ST OBC वोटरः अब तक झारखंड कांग्रेस की कमान ज्यादातर अनुसूचित जनजातियों के हाथ में ही रही. इसके बावजूद अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी के वोटर पार्टी के हाथ से लगातार फिसलते रहे. झारखंड गठन के बाद पहले अध्यक्ष इंद्रनाथ भगत, इसके बाद पहले कार्यकारी अध्यक्ष और फिर पूर्णकालीन अध्यक्ष के रूप में प्रदीप बलमुचू, वो लंबे दिनों तक प्रदेश अध्यक्ष रहें. फिर सुखदेव भगत, डॉ अजय कुमार, रामेश्वर उरांव और अब राजेश ठाकुर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनें हैं. डॉ अजय कुमार और राजेश ठाकुर को छोड़ बाकी सभी अनुसूचित जनजाति समुदाय से आते हैं.
झारखंड में अनुसूचित जाति,ज नजाति ओबीसी के बीच जनाधार खिसकने की वजह से 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA 14 लोकसभा में से 12 जीत ले गयी. वहीं लोकसभा चुनाव में ड्राइविंग सीट पर होने और झामुमो के साथ के बावजूद कांग्रेस सिर्फ पश्चिमी सिंहभूम सीट ही जीत पाई जबकि सहयोगी झामुमो के पाले में सिर्फ राजमहल सीट आया. कांग्रेस की अगुवाई वाला गठबंधन खूंटी, लोहरदगा, दुमका, रांची, पलामू, चतरा जैसी सीटें भी हार गई, जहां किसी समय में कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था.
2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे ने यह बताया कि भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी लहर में अल्पसंख्यकों (विशेषकर मुस्लिमों) को छोड़ वोटर के हर वर्ग में भाजपा ने सेंधमारी की. इसमें बड़ा योगदान ओबीसी, अनुसूचित जाति और जनजाति का था. इस वजह से कांग्रेस पार्टी का इन वर्गों में पकड़ लगातार कमजोर होता चला गया. जिसका नतीजा ये हुआ कि लोकसभा सीट गंवा दी और विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल होकर जेएमएम की सरकार को समर्थन दिया.
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झारखंड के संदर्भ में इसके मायनेः झारखंड को लेकर अगर बात करें तो अभी पार्टी में कार्यकारी अध्यक्षों में माइनॉरिटी से शहजादा अनवर, जलेश्वर महतो ओबीसी, आदिवासी समुदाय से गीता कोड़ा और बंधु तिर्की आते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जब बहुजन कहे जाने वाले वर्गों की पर्याप्त और धुरंधर राजनीतिक खिलाड़ी हैं तो फिर इन वर्गों के बीच नए नेताओं की खोज और उनमें लीडरशिप क्वालिटी डेवलप करने के क्या मायने हैं.
कांग्रेस के नेता भले ही यह खुलकर ना बोलें लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि गीता कोड़ा से लेकर बंधु तिर्की, जलेश्वर महतो, शहजादा अनवर, मधु कोड़ा, सुखदेव भगत, प्रदीप बलमुचू जैसे जितने नाम हैं, वो आज भले ही कांग्रेस में हों लेकिन ये भी सच है कि पार्टी की नीति, सिद्धांत या आलकमान के निर्देशों का कभी ना कभी ये नेता अवहेलना कर दूसरे दल में गए या फिर दूसरे दलों में रहकर कांग्रेस में आये हैं. ऐसे में पार्टी आलकमान की इच्छा युवा नेताओं की नई पौध तैयार करने की है जो न सिर्फ पार्टी के प्रति समर्पित हो बल्कि उसकी नीति और सिद्धांतों को लेकर जनता के सोच सार्थक हो.
वोट की राजनीति में पिछड़ती कांग्रेसः झारखंड में एससी एसटी ओबीसी माइनॉरिटी के नए और सशक्त लीडरशिप तैयार करने के लिए मिशन मोड में चलने वाले कार्यक्रम को लेकर इंडियन नेशनल कांग्रेस के एससी, एसटी, ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर के राजू रांची में हैं. के राजू ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि पार्टी यह स्वीकार करती है कि कांग्रेस के कभी आधार वोट बैंक रहे एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी के बीच पार्टी की पकड़ कम हुई, जिसकी वजह से वोट की राजनीति में कांग्रेस पिछड़ती चली गई.
तेजतर्रार युवाओं को पार्टी से जोड़ा जाएगाः के राजू ने कहा कि अब यह प्रयास किया जा रहा है कि पंचायत से लेकर प्रदेश स्तर पर और फिर अलग-अलग राज्यों में एससी एसटी ओबीसी और माइनॉरिटी के लोगों के बीच से तेजतर्रार युवाओं को प्रेरित उन्हें कांग्रेस पार्टी से जोड़ा जाए. उन्हें विशेष प्रशिक्षण देकर उनमें लीडरशिप क्वालिटी विकसित की जाए. के राजू ने कहा कि कांग्रेस के अपने इंटरनल सर्वे में यह बात सामने आई है कि कांग्रेस लोकसभा और विधानसभा की सीटों पर बेहतर प्रदर्शन इस लिए नहीं कर पा रही है क्योंकि उस विशेष सीट पर SC-ST-OBC और माइनॉरिटीज के लीडरशिप कमजोर है. इसमें खासकर आरक्षित सीटों पर इसका प्रभाव अधिक होता है, इसलिए कांग्रेस की रणनीति अब इसी कमजोरी को दूर करने की हैं.
वोट हमारा राज तुम्हारा का कॉन्सेप्ट नहीं चलेगा- बंधुः झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा कि आदिवासी, दलित, पिछड़े और माइनॉरिटी की आबादी बहुमत की आबादी है. ऐसे में बिना इनको साथ जोड़े हम मजबूत नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि वोट हमारा राज तुम्हारा का कॉन्सेप्ट नहीं चलेगा. इसलिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने इन वर्ग के लोगों को ना सिर्फ पार्टी से जोड़ने बल्कि उनमें लीडरशिप क्वालिटी विकसित करने की योजना बनाई है.