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सरकारी विधेयक का हाल: विधानसभा से पास के बाद राजभवन में फेल, जानिए वजह

झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में सरकार फिर से उन विधेयकों को सदन के पटल पर लाने वाली है, जिन्हें राजभवन ने अपनी आपत्तियों के साथ वापस लौटा दिया था. इन विधेयकों में राजभवन की ओर से संशोधन करने का निर्देश दिया गया था. इन्हीं विधेयकों को फिर से सरकार वापस विधानसभा से पास करा कर राजभवन के पास भेजेगी.

jharkhand government bills in assembly
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Published : Jul 27, 2023, 7:20 PM IST

रांची: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से शुरू हो रहा है. यह मानसून सत्र कई मायनों में अहम होगा. 4 अगस्त तक चलने वाले इस मानसून सत्र के दौरान सदन के पटल पर सरकार के द्वारा कई ऐसे विधेयक लाए जाने की तैयारी है, जो हमेशा से सुर्खियों में रही है. चाहे वह 1932 आधारित स्थानीय नीति से जुड़ा हुआ विधेयक हो या 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का विधेयक हो, राज्य सरकार ने राजभवन के द्वारा इन विधेयकों पर आपत्ति जताने के बाद इसे संशोधित कर सदन के पटल पर लाने की दोबारा तैयारी की है.

यह भी पढ़ें: मणिपुर के मुद्दे पर झारखंड विधानसभा में हंगामे के आसार, मानसून सत्र के दौरान सदन के बाहर धरना देंगे कांग्रेस विधायक

विधानसभा से बिल हुआ पास, राजभवन ने किया फेल: झारखंड विधानसभा से राज्य सरकार के द्वारा पास आधा दर्जन से अधिक विधेयक को राजभवन लौटा चुकी है. इसके पीछे की वजह विधानसभा से पारित बिल के हिंदी और अंग्रेजी में एकरुपता नहीं होना माना जा रहा है. इस संदर्भ में राज्यपाल के द्वारा आपत्तियों के साथ सरकार को इसमें संशोधन करने को कहा गया है.

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राजभवन ने इन विधेयकों को क्यों लौटाया:

स्थानीय व्यक्तियों की झारखंड परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्तियों के परिणामी, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं अन्य लाभ के लिए परिभाषा विधेयक-2022: राज्य सरकार के द्वारा यह बिल झारखंड विधानसभा से 11 नवंबर 2022 को पास कराया गया था. विधानसभा से पारित इस बिल को राजभवन की मंजूरी के लिए भेजा गया था. जिस पर तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने आपत्ति जताते हुए इसे संवैधानिक रूप से सही नहीं माना और इस बिल को वापस कर दिया. राज्यपाल ने इस बिल पर विधि विभाग की आपत्ति को भी दर्शाते हुए विधेयक के प्रावधान सुप्रीम कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट द्वारा पारित कई फैसलों के अनुरूप नहीं होने की बात कही थी. राजभवन के द्वारा की गई टिप्पणी में यह भी दर्शाया गया है कि यह बिल भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14, 15, 16 (2) में प्रदत्त मूल अधिकार से असंगत और प्रतिकूल प्रभाव रखने वाला प्रतीत होता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 से भी प्रभावित होगा और अनावश्यक वाद विवादों को जन्म देगा.

झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022: राज्य में ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाते हुए हेमंत सरकार के द्वारा 11 नवंबर 2022 को झारखंड विधानसभा में यह बिल लाया गया था, जिसमें सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 77% तक रखने का प्रावधान था. झारखंड विधानसभा से पास होने के बाद इस विधेयक को राज्यपाल की सहमति के लिए भेजी गई थी. राजभवन के द्वारा इसकी समीक्षा करने के बाद कई तरह की आपत्ति जताते हुए सरकार को इस वर्ष मार्च महीने में वापस कर दिया. राजभवन ने इस बिल को वापस लौटाने के पीछे अटार्नी जनरल के परामर्श का हवाला देते हुए कहा कि इस विधेयक के पास होने से पूर्व में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए आदेशों का उल्लंघन होगा. गौरतलब है कि वर्तमान समय में राज्य में पिछड़े वर्गों को 14% आरक्षण का लाभ मिल रहा है जिसे इस बिल के माध्यम से हेमंत सरकार 27% करना चाह रही है. इसी तरह अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 26% से बढ़ाकर 28% और अनुसूचित जाति का आरक्षण 10% से बढ़ाकर 12% करने का प्रस्ताव है.

भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग विधेयक- 2021: मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए राज्य सरकार के द्वारा 21 दिसंबर 2021 को विधानसभा से इस बिल को पारित कराया गया था. इस विधेयक में यह प्रावधान किया गया कि दो या इससे अधिक व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली हिंसा को मॉब लिंचिंग माना जाएगा. राज्य सरकार एक बार फिर मानसून सत्र में भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा/हत्या की रोकथाम विधेयक-2023 के नाम से इस बिल को लाने की तैयारी में है. 2021 के विधेयक में इसके लिए उम्रकैद के साथ साथ 25 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया था. झारखंड विधानसभा से 21 दिसंबर 2021को पारित होने के बाद इसे राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा गया लेकिन तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने 18 मार्च 2022 को कुछ आपत्तियों के साथ इस विधेयक को लौटा दिया था.

राज्यपाल ने इस बिल के हिंदी और अंग्रेजी संस्करण में अलग-अलग बातों का उल्लेख होने पर आपत्ति जताते हुए सरकार को इसमें संशोधन करने को कहा था. विधायक के अंग्रेजी संस्करण में धारा 2 के उपखंड (1) के उपखंड 12 में गवाह संरक्षण योजना का जिक्र किया गया है, लेकिन हिंदी संस्करण में इसका जिक्र नहीं है. राज्यपाल ने इसी धारा के उपखंड (1) के उपखंड 6 में दी गई भीड़ की परिभाषा पर भी आपत्ति जताई थी. राजभवन ने दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह को अशांत भीड़ की संज्ञा इस बिल में दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए सरकार को लौटा दिया था.

जैन यूनिवर्सिटी बिल 2023: हेमंत सरकार ने बजट सत्र के दौरान जैन यूनिवर्सिटी बिल 2023 को झारखंड विधानसभा में लाया था. 21 मार्च 2023 को इस बिल को झारखंड विधानसभा से पारित किया गया था. विधानसभा से पास होने के बाद इस बिल को राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा गया था. जिस पर आपत्ति जताते हुए राजभवन ने इसे वापस लौटा दिया है. राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने सरकार से पूछा है कि राज्य में पहले से चल रही प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में गड़बड़ियों की जांच के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं. सरकार और विधानसभा में इसके लिए जो कमेटियां गठित की थी, उनकी रिपोर्ट कहां है और उन पर क्या कार्रवाई हुई है. इस बिल के हिंदी और अंग्रेजी ड्राफ्ट में अंतर और कुछ तकनीकी पहलुओं पर भी राजभवन ने आपत्ति जताई है.

रांची: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से शुरू हो रहा है. यह मानसून सत्र कई मायनों में अहम होगा. 4 अगस्त तक चलने वाले इस मानसून सत्र के दौरान सदन के पटल पर सरकार के द्वारा कई ऐसे विधेयक लाए जाने की तैयारी है, जो हमेशा से सुर्खियों में रही है. चाहे वह 1932 आधारित स्थानीय नीति से जुड़ा हुआ विधेयक हो या 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का विधेयक हो, राज्य सरकार ने राजभवन के द्वारा इन विधेयकों पर आपत्ति जताने के बाद इसे संशोधित कर सदन के पटल पर लाने की दोबारा तैयारी की है.

यह भी पढ़ें: मणिपुर के मुद्दे पर झारखंड विधानसभा में हंगामे के आसार, मानसून सत्र के दौरान सदन के बाहर धरना देंगे कांग्रेस विधायक

विधानसभा से बिल हुआ पास, राजभवन ने किया फेल: झारखंड विधानसभा से राज्य सरकार के द्वारा पास आधा दर्जन से अधिक विधेयक को राजभवन लौटा चुकी है. इसके पीछे की वजह विधानसभा से पारित बिल के हिंदी और अंग्रेजी में एकरुपता नहीं होना माना जा रहा है. इस संदर्भ में राज्यपाल के द्वारा आपत्तियों के साथ सरकार को इसमें संशोधन करने को कहा गया है.

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राजभवन ने इन विधेयकों को क्यों लौटाया:

स्थानीय व्यक्तियों की झारखंड परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्तियों के परिणामी, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं अन्य लाभ के लिए परिभाषा विधेयक-2022: राज्य सरकार के द्वारा यह बिल झारखंड विधानसभा से 11 नवंबर 2022 को पास कराया गया था. विधानसभा से पारित इस बिल को राजभवन की मंजूरी के लिए भेजा गया था. जिस पर तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने आपत्ति जताते हुए इसे संवैधानिक रूप से सही नहीं माना और इस बिल को वापस कर दिया. राज्यपाल ने इस बिल पर विधि विभाग की आपत्ति को भी दर्शाते हुए विधेयक के प्रावधान सुप्रीम कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट द्वारा पारित कई फैसलों के अनुरूप नहीं होने की बात कही थी. राजभवन के द्वारा की गई टिप्पणी में यह भी दर्शाया गया है कि यह बिल भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14, 15, 16 (2) में प्रदत्त मूल अधिकार से असंगत और प्रतिकूल प्रभाव रखने वाला प्रतीत होता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 से भी प्रभावित होगा और अनावश्यक वाद विवादों को जन्म देगा.

झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022: राज्य में ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाते हुए हेमंत सरकार के द्वारा 11 नवंबर 2022 को झारखंड विधानसभा में यह बिल लाया गया था, जिसमें सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 77% तक रखने का प्रावधान था. झारखंड विधानसभा से पास होने के बाद इस विधेयक को राज्यपाल की सहमति के लिए भेजी गई थी. राजभवन के द्वारा इसकी समीक्षा करने के बाद कई तरह की आपत्ति जताते हुए सरकार को इस वर्ष मार्च महीने में वापस कर दिया. राजभवन ने इस बिल को वापस लौटाने के पीछे अटार्नी जनरल के परामर्श का हवाला देते हुए कहा कि इस विधेयक के पास होने से पूर्व में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए आदेशों का उल्लंघन होगा. गौरतलब है कि वर्तमान समय में राज्य में पिछड़े वर्गों को 14% आरक्षण का लाभ मिल रहा है जिसे इस बिल के माध्यम से हेमंत सरकार 27% करना चाह रही है. इसी तरह अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 26% से बढ़ाकर 28% और अनुसूचित जाति का आरक्षण 10% से बढ़ाकर 12% करने का प्रस्ताव है.

भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग विधेयक- 2021: मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए राज्य सरकार के द्वारा 21 दिसंबर 2021 को विधानसभा से इस बिल को पारित कराया गया था. इस विधेयक में यह प्रावधान किया गया कि दो या इससे अधिक व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली हिंसा को मॉब लिंचिंग माना जाएगा. राज्य सरकार एक बार फिर मानसून सत्र में भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा/हत्या की रोकथाम विधेयक-2023 के नाम से इस बिल को लाने की तैयारी में है. 2021 के विधेयक में इसके लिए उम्रकैद के साथ साथ 25 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया था. झारखंड विधानसभा से 21 दिसंबर 2021को पारित होने के बाद इसे राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा गया लेकिन तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने 18 मार्च 2022 को कुछ आपत्तियों के साथ इस विधेयक को लौटा दिया था.

राज्यपाल ने इस बिल के हिंदी और अंग्रेजी संस्करण में अलग-अलग बातों का उल्लेख होने पर आपत्ति जताते हुए सरकार को इसमें संशोधन करने को कहा था. विधायक के अंग्रेजी संस्करण में धारा 2 के उपखंड (1) के उपखंड 12 में गवाह संरक्षण योजना का जिक्र किया गया है, लेकिन हिंदी संस्करण में इसका जिक्र नहीं है. राज्यपाल ने इसी धारा के उपखंड (1) के उपखंड 6 में दी गई भीड़ की परिभाषा पर भी आपत्ति जताई थी. राजभवन ने दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह को अशांत भीड़ की संज्ञा इस बिल में दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए सरकार को लौटा दिया था.

जैन यूनिवर्सिटी बिल 2023: हेमंत सरकार ने बजट सत्र के दौरान जैन यूनिवर्सिटी बिल 2023 को झारखंड विधानसभा में लाया था. 21 मार्च 2023 को इस बिल को झारखंड विधानसभा से पारित किया गया था. विधानसभा से पास होने के बाद इस बिल को राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा गया था. जिस पर आपत्ति जताते हुए राजभवन ने इसे वापस लौटा दिया है. राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने सरकार से पूछा है कि राज्य में पहले से चल रही प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में गड़बड़ियों की जांच के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं. सरकार और विधानसभा में इसके लिए जो कमेटियां गठित की थी, उनकी रिपोर्ट कहां है और उन पर क्या कार्रवाई हुई है. इस बिल के हिंदी और अंग्रेजी ड्राफ्ट में अंतर और कुछ तकनीकी पहलुओं पर भी राजभवन ने आपत्ति जताई है.

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