रांची: कोरोना संक्रमण के चलते अर्थव्यवस्था बिगड़ने से अच्छे अच्छों की स्थिति खराब हो गई है. तमाम क्षेत्र प्रभावित है लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर हो गई है कि अब उन्हें उभरने में महीनों लग जाएंगे. कुछ लोग ऐसे हैं जो लॉकडाउन खुलने पर इसकी भरपाई कर लेंगे तो कुछ ऐसे हैं जो सीधे-सीधे नुकसान में रहेंगे. ऐसे लोगों में रेलवे स्टेशनों के बाहर और अंदर रेल परिचालन के भरोसे आजीविका चलाने वाले लोग भी शामिल हैं.
इसके साथ ही स्टेशन परिसर के इर्द-गिर्द आजीविका चलाने वाले हजारों लोग प्रभावित हो रहे हैं. ऑटो स्टैंड से लेकर बाइक स्टैंड, रिक्सा स्टैंड, कार स्टैंड वीरान पड़ा है. लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही ट्रेनें बंद पड़ी है. रेलवे का परिचालन प्रभावित है. ट्रेनों के परिचालन से कई सेक्टर में लोगों को रोजगार मिलता है. स्टेशन पर दुकान संचालित करने वाले, पार्किंग व्यवस्था संभालने वाले कैब चलाने वाले, रिक्शा और ऑटो चलाने वालों के जीवन रेलवे के पहिए चलने के साथ साथ ही चलती है. लेकिन जैसे ही रेलवे के पहिए थमे. इनकी आजीविका भी पूरी तरह थम गई है. न तो स्टेशनों पर लोगों की भीड़ है और न ही ऑटो रिक्शा या फिर कैब में बैठने वाले सवारी ही है.
ठेले खोमचे चलाने वाले लोगों की हालत दयनीय
स्टेशन के बाहर और अंदर दुकान संचालित करने वाले लोग भी भुखमरी के कगार पर हैं. ऐसे लोग टकटकी निगाहें लगाते हुए यात्रियों के इंतजार में रहते हैं और दो चार पैसा कमा सकें इस उम्मीद के साथ वैसे ग्राहकों की इंतजार में रहते हैं. हालांकि, ट्रेन नहीं चल रही है तो न तो ग्राहक है और न ही कोई यात्री ही स्टेशन परिसरों के इर्द-गिर्द नजर आ रहे हैं. रांची रेल मंडल के तमाम रेलवे स्टेशन वीरान पड़े हैं. एकाध ट्रेनें जो संचालित हो रही है. उसमें सप्ताह में दो ही दिन स्टेशनों पर यात्री दिखते है. वह भी ना तो कैब करते हैं ना ही ऑटो और ना ही रिक्शा और ना ही बाहर किसी भी सामान को खरीदकर वह खाते हैं. कुल मिलाकर कहें तो इन दिनों रेल परिचालन पर आजीविका के लिए निर्भर रहने वाले लोगों की हालत और हालात इन दिनों काफी दयनीय हो गई है.
ईटीवी भारत ने की पड़ताल
ईटीवी भारत की टीम ने रांची रेलवे स्टेशन और हटिया रेलवे स्टेशन के बाहर प्रभावित हो रहे लोगों से बातचीत कर उनकी स्थिति को लेकर पड़ताल की है. सबसे पहले हमारी टीम ने पार्किंग में बैठे एक रिक्शा चालक से जब बात की तब उनका दर्द दिखा. वह कहते हैं कि जैसे जैसे दिन बीत रहा है लोग कंगाल होते जा रहे हैं. भुखमरी के कगार पर ऐसे हजारों रिक्शा चालक है. वहीं ऑटो चलाने वाले लोग भी रेलवे परिचालन के भरोसे ही सीएनजी ऑटो बैंक से फाइनेंस कर खरीदा हैं. अब उनकी भी स्थिति खराब है ना तो किस्त चुका पाने में वे समर्थ है और ना ही अपना पेट ही चला पाने में समर्थ है.
ठेका मजदूरों की हालत भी दयनीय
इसके अलावा रांची रेलवे स्टेशन के अंदर ठेका पट्टे पर काम करने वाले मजदूरों की हालत भी काफी गंभीर है. 300 से अधिक ऐसे ठेका पट्टे मजदूर है जो फिलहाल बेरोजगार हो गए हैं और इनकी बेरोजगारी के कारण पूरे परिवार भुखमरी के कगार पर है. पार्किंग व्यवस्था संभालने वाले लोग भी दयनीय स्थिति में है. रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर ठेले खोमचे चलाने वाले लोगों की स्थिति तो बद से बदतर हो गई है. लोग अब जल्द से जल्द ट्रेन परिचालन के आस लिए बैठे हैं. ताकि ट्रेन के पहिये के साथ उनका आजीविका जल्द से जल्द चल पड़े. ये लोग संबंधित अधिकारियों और रेलवे से रांची रेल मंडल से जल्द से जल्द लोकल ट्रेनें चलाने की मांग भी कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें: रांचीः नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी में महिला समेत दो गिरफ्तार, सैकड़ों बेरोजगारों से एक-एक हजार ठगने का आरोप
कुली वर्ग है सबसे ज्यादा प्रभावित
ट्रेन परिचालन नहीं होने के कारण प्रभावित वर्गों में रेलवे के अभिन्न अंग कुली भी है और इन कुलियों की हालत खराब लॉकडाउन के बाद से ट्रेन परिचालन बंद होने के साथ ही शुरू हो गया था. रोज कमा कर खाने वाले इन कुलियों की माने तो वह बेसब्री से स्टेशनों पर इंजनों की सिटी का इंतजार कर रहे हैं. उनकी रोजी-रोटी खतरे में है. आजीविका बीना रेलवे स्टेशन और ट्रेन परिचालन की कल्पना भी नहीं किया जा सकता है. लेकिन अब देशभर के इन कुलियों की आजीविका खतरे में पड़ गई है. जब ट्रेनें ही बंद है तो इनको भला रोजगार कहां से मिलेगा. यह एक बड़ी चिंता है. उधारी लेकर यह कुली अब तक परिवार का पेट भर रहे थे. लेकिन इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं है और यह कुली अब ऐसे तमाम सुने रेलवे स्टेशनों पर दोबारा सिग्नल के हरे होने यानी ट्रेनों की आवाजाही शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन फिलहाल यह अनिश्चित है.