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राजनीतिक दलों में अनुशासन की अलग परिभाषा, एक्शन होता नहीं केवल जारी होता है शोकॉज

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Published : Jun 24, 2019, 4:38 PM IST

झारखंड में राजनीतिक उठापटक जारी है. इस उठापटक में राजनीतिक दलों के आपसी कलह के भी कई मामले सामने आए हैं. इन सब के बीच प्रदेश नेतृत्व की ओर से कार्रवाई को लेकर उदासीनता देखी जा रही है.

आपसी कलह में कार्रवाई से बचती राजनीतिक पार्टियां

रांचीः प्रदेश में राजनीतिक दलों में अनुशासन के अलग-अलग मायने हैं. राज्य में सत्ताधारी बीजेपी हो या फिर विपक्ष में बैठने वाली कांग्रेस या झाविमो, सभी दलों में अनुशासन को लेकर लंबे दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत उससे इतर होती है.

देखिए पूरी खबर

सत्ताधारी बीजेपी में भी आंतरिक कलह पर नहीं हुई कोई कार्रवाई

शुरुआत सत्ताधारी बीजेपी से करें तो लोकसभा चुनावों के दौरान हुई उठापटक के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के दावे किए गए. लेकिन नतीजा सिफर निकला. धनबाद जिले के बाघमारा विधानसभा इलाके से बीजेपी विधायक ढुल्लू महतो और गिरिडीह संसदीय इलाके से तत्कालीन सांसद रविंद्र पांडे के बीच आरोप-प्रत्यारोप का लंबा दौर चला. मामला बढ़ता देख दोनों नेताओं को बीजेपी ने शोकॉज जारी किया. इतना ही नहीं एक महिला ने तत्कालीन सांसद के ऊपर आरोपों की झड़ी लगाई. इसके बावजूद न तो पार्टी के तत्कालीन सांसद के ऊपर कोई कार्रवाई हुई और न ही विधायक के ऊपर.

वहीं, दूसरा मामला रांची के निवर्तमान सांसद रामटहल चौधरी से जुड़ा है. लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज जब चौधरी ने विरोध के स्वर मुखर किए. तब पार्टी उनके दल छोड़ने तक का इंतजार करती रही. जनसंघ समय से और फिर बाद में बीजेपी से जुड़े रहे रामटहल चौधरी ने बीजेपी में रहते हुए निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने पार्टी के नेतृत्व पर सवाल भी खड़े किए. बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. बाद में रामटहल चौधरी और उनके बेटे दोनों ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया.

विपक्ष भी अनुशासन की देता रहा अलग परिभाषा
अब बात अगर विपक्षी दलों की करें तो उनमें झाविमो के लातेहार से विधायक प्रकाश राम का नाम आता है. जिन्हें राज्यसभा चुनाव में कथित रूप से क्रॉस वोटिंग करने के आरोप में शोकॉज जारी किया गया था. पार्टी सूत्रों की माने तो विधायक राम पार्टी से दूरी बनाए हुए हैं. यहां तक की हाल में हुए कार्यसमिति की बैठक में भी वह शामिल नहीं हुए. वहीं पार्टी के दूसरे विधायक प्रदीप यादव झाविमो की एक महिला नेत्री के आरोपों के बाद अपने पद से त्यागपत्र देकर पार्टी में बने हुए हैं. जबकि कोर्ट ने उस मामले में उनकी बेल तक रिजेक्ट कर दी है. एक तरफ जहां प्रशासन उनके खिलाफ आरोपों की जांच कर रहा है, वहीं, पार्टी में उन कथित आरोपों को लेकर खामोशी बनी हुई है.

कांग्रेस भी अछूती नहीं है इससे
विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो लोकसभा चुनाव के दौरान रांची से सांसद प्रत्याशी सुबोधकांत सहाय की हार के बाद झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में जमकर हंगामा हुआ. सहाय समर्थकों और दूसरे पक्ष के पार्टी नेताओं के बीच झड़प भी हुई, लेकिन अभी तक घटना की रिपोर्ट की लेनदेन का सिलसिला जारी है.
झामुमो और आजसू पार्टी ने किया अपने विधायकों को निलंबित

वहीं, आजसू पार्टी के तमाड़ इलाके से विधायक विकास कुमार मुंडा को पार्टी ने कथित तौर पर पार्टी लाइन के खिलाफ जाने की वजह से निलंबित कर दिया. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के मांडू से विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को पार्टी ने पहले मौका दिया और बाद में उन्हें निलंबित कर दिया. पटेल एनडीए फोल्डर में जाकर उसके प्रत्याशियों के समर्थन में चुनाव प्रचार करने लगे.

दरअसल सारे मामले आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर हैं. ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल अपने जनप्रतिनिधि के खिलाफ एक्शन लेकर अपनी फजीहत नहीं कराना चाहता है. यही वजह है कि अनुशासन से जुड़े मामले पार्टी के अनुशासन समितियों के हवाले कर दिए जाते हैं. रिपोर्ट जांच और कार्रवाई के दावे केवल दावे भर रह जाते हैं.

ये भी पढ़ें- हजारीबाग में सांसद जयंत सिन्हा ने बुलाई बैठक, इन मुद्दों पर हुई चर्चा

बड़े नेताओं के अधिकार क्षेत्र की बात कह पल्ला झाड़ते हैं नेता

हैरत की बात तो यह है इन मामलों में पार्टी नेता अपने नेतृत्व की ओर सवाल मोड़ कर पल्ला झाड़ लेते हैं. बीजेपी से जब ये सवाल किया गया तो प्रदेश प्रवक्ता प्रवीण प्रभाकर ने साफ कहा कि इस बारे में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ही अधिकृत हैं. इस सवाल का जवाब वही दे पाएंगे. हालांकि उन्होंने दावा किया कि बीजेपी में बड़े से बड़े नेताओं के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से जांच होती है. वहीं, दूसरी तरफ झारखंड विकास मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप ने कहा कि हो सकता है कि पार्टी विधायक प्रकाश राम की केंद्रीय अध्यक्ष से कुछ बातचीत हो. उन्होंने दावा किया कि प्रकाश राम अभी तक पार्टी में बने हुए हैं और उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है.

बता दें कि इस साल के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस वजह से राजनीतिक दल अपने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ किसी तरह का कोई एक्शन लेने से बच रहे हैं. पार्टी नेताओं का मानना है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई का असर आगामी विधानसभा चुनाव में संबंधित दलों को झेलना पड़ सकता है. यही वजह है कि फिलहाल शोकॉज और कार्रवाई की बात कहकर मामले को रफा-दफा किया जा रहा है.

रांचीः प्रदेश में राजनीतिक दलों में अनुशासन के अलग-अलग मायने हैं. राज्य में सत्ताधारी बीजेपी हो या फिर विपक्ष में बैठने वाली कांग्रेस या झाविमो, सभी दलों में अनुशासन को लेकर लंबे दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत उससे इतर होती है.

देखिए पूरी खबर

सत्ताधारी बीजेपी में भी आंतरिक कलह पर नहीं हुई कोई कार्रवाई

शुरुआत सत्ताधारी बीजेपी से करें तो लोकसभा चुनावों के दौरान हुई उठापटक के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के दावे किए गए. लेकिन नतीजा सिफर निकला. धनबाद जिले के बाघमारा विधानसभा इलाके से बीजेपी विधायक ढुल्लू महतो और गिरिडीह संसदीय इलाके से तत्कालीन सांसद रविंद्र पांडे के बीच आरोप-प्रत्यारोप का लंबा दौर चला. मामला बढ़ता देख दोनों नेताओं को बीजेपी ने शोकॉज जारी किया. इतना ही नहीं एक महिला ने तत्कालीन सांसद के ऊपर आरोपों की झड़ी लगाई. इसके बावजूद न तो पार्टी के तत्कालीन सांसद के ऊपर कोई कार्रवाई हुई और न ही विधायक के ऊपर.

वहीं, दूसरा मामला रांची के निवर्तमान सांसद रामटहल चौधरी से जुड़ा है. लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज जब चौधरी ने विरोध के स्वर मुखर किए. तब पार्टी उनके दल छोड़ने तक का इंतजार करती रही. जनसंघ समय से और फिर बाद में बीजेपी से जुड़े रहे रामटहल चौधरी ने बीजेपी में रहते हुए निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने पार्टी के नेतृत्व पर सवाल भी खड़े किए. बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. बाद में रामटहल चौधरी और उनके बेटे दोनों ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया.

विपक्ष भी अनुशासन की देता रहा अलग परिभाषा
अब बात अगर विपक्षी दलों की करें तो उनमें झाविमो के लातेहार से विधायक प्रकाश राम का नाम आता है. जिन्हें राज्यसभा चुनाव में कथित रूप से क्रॉस वोटिंग करने के आरोप में शोकॉज जारी किया गया था. पार्टी सूत्रों की माने तो विधायक राम पार्टी से दूरी बनाए हुए हैं. यहां तक की हाल में हुए कार्यसमिति की बैठक में भी वह शामिल नहीं हुए. वहीं पार्टी के दूसरे विधायक प्रदीप यादव झाविमो की एक महिला नेत्री के आरोपों के बाद अपने पद से त्यागपत्र देकर पार्टी में बने हुए हैं. जबकि कोर्ट ने उस मामले में उनकी बेल तक रिजेक्ट कर दी है. एक तरफ जहां प्रशासन उनके खिलाफ आरोपों की जांच कर रहा है, वहीं, पार्टी में उन कथित आरोपों को लेकर खामोशी बनी हुई है.

कांग्रेस भी अछूती नहीं है इससे
विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो लोकसभा चुनाव के दौरान रांची से सांसद प्रत्याशी सुबोधकांत सहाय की हार के बाद झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में जमकर हंगामा हुआ. सहाय समर्थकों और दूसरे पक्ष के पार्टी नेताओं के बीच झड़प भी हुई, लेकिन अभी तक घटना की रिपोर्ट की लेनदेन का सिलसिला जारी है.
झामुमो और आजसू पार्टी ने किया अपने विधायकों को निलंबित

वहीं, आजसू पार्टी के तमाड़ इलाके से विधायक विकास कुमार मुंडा को पार्टी ने कथित तौर पर पार्टी लाइन के खिलाफ जाने की वजह से निलंबित कर दिया. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के मांडू से विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को पार्टी ने पहले मौका दिया और बाद में उन्हें निलंबित कर दिया. पटेल एनडीए फोल्डर में जाकर उसके प्रत्याशियों के समर्थन में चुनाव प्रचार करने लगे.

दरअसल सारे मामले आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर हैं. ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल अपने जनप्रतिनिधि के खिलाफ एक्शन लेकर अपनी फजीहत नहीं कराना चाहता है. यही वजह है कि अनुशासन से जुड़े मामले पार्टी के अनुशासन समितियों के हवाले कर दिए जाते हैं. रिपोर्ट जांच और कार्रवाई के दावे केवल दावे भर रह जाते हैं.

ये भी पढ़ें- हजारीबाग में सांसद जयंत सिन्हा ने बुलाई बैठक, इन मुद्दों पर हुई चर्चा

बड़े नेताओं के अधिकार क्षेत्र की बात कह पल्ला झाड़ते हैं नेता

हैरत की बात तो यह है इन मामलों में पार्टी नेता अपने नेतृत्व की ओर सवाल मोड़ कर पल्ला झाड़ लेते हैं. बीजेपी से जब ये सवाल किया गया तो प्रदेश प्रवक्ता प्रवीण प्रभाकर ने साफ कहा कि इस बारे में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ही अधिकृत हैं. इस सवाल का जवाब वही दे पाएंगे. हालांकि उन्होंने दावा किया कि बीजेपी में बड़े से बड़े नेताओं के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से जांच होती है. वहीं, दूसरी तरफ झारखंड विकास मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप ने कहा कि हो सकता है कि पार्टी विधायक प्रकाश राम की केंद्रीय अध्यक्ष से कुछ बातचीत हो. उन्होंने दावा किया कि प्रकाश राम अभी तक पार्टी में बने हुए हैं और उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है.

बता दें कि इस साल के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस वजह से राजनीतिक दल अपने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ किसी तरह का कोई एक्शन लेने से बच रहे हैं. पार्टी नेताओं का मानना है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई का असर आगामी विधानसभा चुनाव में संबंधित दलों को झेलना पड़ सकता है. यही वजह है कि फिलहाल शोकॉज और कार्रवाई की बात कहकर मामले को रफा-दफा किया जा रहा है.

Intro:रांची। प्रदेश में राजनीतिक दलों में अनुशासन के अलग-अलग मायने हैं। राज्य में सत्ताधारी बीजेपी हो या फिर विपक्ष में बैठने वाले कांग्रेस या झारखंड विकास मोर्चा, सभी दलों में अनुशासन को लेकर लंबे दावे तो किए जाते हैं लेकिन कई बार हकीकत उससे इतर होती है।

शुरुआत सत्ताधारी बीजेपी से करें तो लोकसभा चुनावों के दौरान हुई उठापटक के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ कार्यवाही के दावे किए गए लेकिन नतीजा सिफर निकला। धनबाद जिले के बाघमारा विधानसभा इलाके से बीजेपी विधायक ढुल्लू महतो और गिरिडीह संसदीय इलाके से तत्कालीन सांसद रविंद्र पांडे के बीच आरोप-प्रत्यारोप का लंबा दौर चला। मामला बढ़ता देख दोनों नेताओं को बीजेपी ने शो कॉज जारी किया। इतना ही नहीं एक महिला के द्वारा तत्कालीन सांसद के ऊपर आरोपों की झड़ी लगाई गई बावजूद उसके न तो पार्टी के तत्कालीन सांसद के ऊपर कोई एक्शन लिया गया और ना विधायक के ऊपर। वहीं दूसरा मामला रांची के निवर्तमान सांसद रामटहल चौधरी से जुड़ा है। लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज जब चौधरी ने विरोध के स्वर मुखर किये तब पार्टी उनके दल छोड़ने तक का इंतजार करती रही। जनसंघ काल से और फिर बाद में बीजेपी से जुड़े रामटहल चौधरी ने बीजेपी में रहते हुए निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने पार्टी के नेतृत्व पर सवाल भी खड़े किए। बावजूद उसके उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। बाद में रामटहल चौधरी और उनके बेटे दोनों ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया ।




Body:विपक्ष भी अनुशासन की देता रहा अलग परिभाषा
अब बात अगर विपक्षी दलों की करें तो उनमें झारखंड विकास मोर्चा के लातेहार से विधायक प्रकाश राम का नाम आता है। जिन्हें पूर्व में राज्यसभा चुनाव में कथित रूप से क्रॉस वोटिंग करने के आरोप में शो कॉज जारी किया गया था। पार्टी सूत्रों की मानें तो विधायक राम पार्टी से दूरी बनाए हुए हैं। यहां तक कि हाल में हुए कार्यसमिति की बैठक में भी वह शामिल नहीं हुए। वहीं पार्टी के दूसरे विधायक प्रदीप यादव झाविमो की एक महिला नेत्री के आरोपों के बाद अपने पद से त्यागपत्र देकर पार्टी में बने हुए हैं। जबकि कोर्ट ने उस मामले में उनकी बेल तक रिजेक्ट कर दी है। एक तरफ जहां प्रशासन उनके खिलाफ आरोपों की जांच कर रहा है वही पार्टी में उन कथित आरोपों को लेकर खामोशी बनी हुई है।

कांग्रेस भी अछूता नहीं है इससे
विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो लोकसभा चुनाव के दौरान रांची से सांसद प्रत्याशी सुबोध कांत सहाय की हार के बाद झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में जमकर हंगामा हुआ। सहाय समर्थकों और दूसरे पक्ष के पार्टी नेताओं के बीच झड़प भी हुई लेकिन अभी तक घटना की रिपोर्ट की लेनदेन का सिलसिला जारी है।

झामुमो और आजसू पार्टी ने किया अपने विधायकों को निलंबित
वही आजसू पार्टी के तमाड़ इलाके से विधायक विकास कुमार मुंडा को पार्टी ने कथित तौर पर पार्टी लाइन के खिलाफ जाने की वजह से निलंबित कर दिया था। जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के मांडू से विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को पार्टी ने पहले मौका दिया और बाद में उन्हें निलंबित कर दिया। पटेल एनडीए फोल्डर में जाकर उसके प्रत्याशियों के समर्थन में चुनाव प्रचार करने लगे थे।


म दरअसल सारा माजरा आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर के दिसंबर 2019 के पहले राज्य में विधानसभा चुनाव हो जाने में हैं ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल अपने जनप्रतिनिधि के खिलाफ एक्शन लेकर अपनी फजीहत नहीं कराना चाहता है यही वजह है कि अनुशासन से जुड़े मामले पार्टी के अनुशासन समितियों के हवाले कर दिए जाते हैं और रिपोर्ट जांच और कार्यवाही के दावे केवल दावे भर रह जाते हैं


Conclusion:बड़े नेताओं के अधिकार क्षेत्र की बात कह पल्ला झाड़ते हैं नेता
हैरत की बात तो यह है इन मामलों में पार्टी नेता अपने नेतृत्व की ओर सवाल मोड़ कर पल्ला झाड़ लेते हैं। बीजेपी से जब यह सवाल किया गया तो प्रदेश प्रवक्ता प्रवीण प्रभाकर ने साफ कहा कि इस बारे में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ही अधिकृत हैं। इस सवाल का जवाब वही दे पाएंगे। हालांकि उन्होंने दावा किया कि बीजेपी में बड़े से बड़े नेताओं के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से जांच होती है। वहीं दूसरी तरफ झारखंड विकास मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप ने कहा कि हो सकता है कि पार्टी विधायक प्रकाश राम की केंद्रीय अध्यक्ष से कुछ बातचीत हो। उन्होंने दावा किया कि प्रकाश राम अभी तक पार्टी में बने हुए हैं और उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है।
बता दें कि इस साल के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं इस वजह से कोई भी राजनीतिक दल अपने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ किसी तरह का कोई एक्शन लेने से बच रहा है। पार्टी नेताओं का मानना है कि अनुशासनात्मक कार्यवाही का असर आगामी विधानसभा चुनाव में संबंधित दलों को झेलना पड़ सकता है। यही वजह है कि फिलहाल शो कॉज और कार्रवाई की बात कहकर मामले रफा-दफा किए जा रहे हैं।
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