रामगढ़: जिले के लोहार टोला, जहां सड़क किनारे दर्जनों दुकान है. इन दुकानों में पिछले दो महीनों से सड़क के दोनों तरफ तिलकुट की महक और उसके कारोबार (Tilkoot business in Ramgarh) से बाजार गुलजार है. साधारण दिखने वाले इस कारोबार पर अगर प्रकाश डालें तो एक दुकान में 2 महीने के अंदर 70 क्विंटल तिलकुट बनाए जाते हैं. इस तरह से देखें तो दर्जनों ऐसे दुकान है. जहां पर दर्जनों कारीगर लगातार तिलकुट, लाई, लकठो, तिल- लड्डू बनाने का काम कर रहे हैं.
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तिलकुट में 2 महीने में 1 करोड़ों का कारोबार: अगर पूरे व्यवसाय को देखें तो 2 महीने के अंदर तिलकुट का कारोबार इस स्थान से लगभग एक करोड़ का होता है. इससे जुड़े व्यवसाई बताते हैं कि दो दशक पूर्व तक गया से यहां तिलकुट आया करता था. लेकिन धीरे-धीरे यहां भी तिलकुट बनने लगा और अब हालात यह है कि स्थानीय स्तर पर बने तिलकुट का कारोबार इतना ज्यादा है कि बाहर से बिहार के गया से तिलकुट मंगाने की जरूरत नहीं पड़ती है. वहीं रामगढ़ में बने तिलकुट हजारीबाग, बोकारो और रांची के कुछ हिस्सों में भी भेजा जा रहा है.
तिलकुट बनाने में ज्यादातर हजारीबाग के मजदूर शामिल : तिलकुट कारोबार में मजदूर दिन-रात लगे है. ज्यादातर मजदूर हजारीबाग जिले के बड़कागांव के चेपा कला के है. बताया जाता है कि करीब दो दशक पूर्व बड़कागांव के चेपाला के दर्जनों मजदूर गया से तिलकुट बनाने की कारीगरी सीख कर आए थे और धीरे-धीरे उस क्षेत्र में यह उनका पुश्तैनी कारोबार बन गया. जिसके बाद से सीजन में इस क्षेत्र के कारीगर राज्य के विभिन्न हिस्सों में जाकर तिलकुट बनाने का काम करते हैं. यही वजह है कि रामगढ़ में दो दर्जन से ज्यादा दुकान जहां तिलकुट बनाया जा रहा है. लगभग सभी जगहों में यही के कारीगर व मजदूर है.