पलामू: बूढ़ा पहाड़ से निकलकर भागे नक्सलियों ने लातेहार और गुमला सीमावर्ती इलाके में अपना नया ठिकाना बनाया है. यह इलाका बूढ़ा पहाड़ से करीब 40 से 50 किलोमीटर की दूरी पर है. बूढ़ा पहाड़ पर करीब 24 से 28 नक्सलियों के टॉप कमांडर सक्रिय थे. जिसमें आधा दर्जन से अधिक ने नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया. जबकि करीब छह पकड़े गए. इनमें से करीब 12 नक्सली लातेहार और गुमला के सीमावर्ती इलाके को अपना ठिकाना बनाए हुए हैं.
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बूढ़ा पहाड़ पर सक्रिय रहने वाले नक्सलियों ने लातेहार के इलाके में आगजनी की घटना को अंजाम दिया है. इसके अलावा एक पीटीआर कर्मी की पीट पीटकर हत्या कर दी है. बूढ़ा पहाड़ से निकल कर भागे माओवादियों का नेतृत्व 15 लाख का इनामी कमांडर छोटू खरवार कर रहा है. छोटू खारवार के साथ 10 लाख का इनामी मृत्युंजय भुइयां समेत कई नक्सली हैं. उसी इलाके में 15 लाख के इनामी रबिन्द्र गंझू भी सक्रिय है. सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो इनकी संख्या 12 से 15 है. इनके पास एक 56, एके 47 समेत कई आधुनिक हथियार मौजूद हैं.
हथियारों को बरामद करना बड़ी चुनौती: बूढ़ा पहाड़ पर नक्सलियों की हर गतिविधि को सुरक्षा बलों ने खत्म कर दिया है, यहां इनकी रीढ़ कमजोर हो गई है. उनका दस्ता वहां से निकल गया है. नक्सलियों के निकलने के बाद आज भी सुरक्षाबलों के कैंप के बाहर आईईडी के खतरे से संबंधित पोस्टर और बैनर लगे हुए हैं. सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो बूढ़ापहाड़ के थलिया में नक्सलियों के हथियारों का डंप है. यह इलाका बूढ़ा पहाड़ के तराई में है और यहां तक पहुंचना सुरक्षाबलों के लिए अभी भी बड़ी चुनौती है. थलिया तक जाने में विभिन्न तरह के लैंडमाइंस लगाए गए हैं. थलिया तक जाने के सुरक्षाबल पहले पूरे इलाके को सेनेटाइज करेंगे. उसके बाद हथियारों को बरामद करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.
40 कंपनियों की तैनाती: बूढ़ा पहाड़ का इलाके में सुरक्षाबलों की करीब 40 कंपनियां तैनात है. जिसमें कोबरा, सीआरपीएफ, जगुआर, जैप, आईआरबी और जिला बल के जवान तैनात हैं. इसके अलावा बूढ़ा पहाड़ कॉरिडोर में करीब 70 कंपनी तैनात है. यहां कब्जे के बाद सुरक्षाबल फिलहाल पूरे इलाके को सेनेटाइज कर रहे हैं. सुरक्षाबलों का लक्ष्य के पहले पूरे इलाके से लैंडमाइंस को निकाल लेना और लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना है.
कहां मौजूद है बूढ़ा पहाड़: बूढ़ा पहाड़ कितना दुर्गम है इसे तब तक नहीं समझा जा सकता है जब तक यहां की भौगोलिक स्थिति को ना समझा जाए. रांची से करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर लातेहार और गढ़वा जिले के अलावा पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्से में मौजूद इस इलाके को नक्सलियों से मुक्त कराने में सुरक्षाबलों को करीब 30 साल का वक्त लग गया. ये ऐसा इलाका है कि अगर सुरक्षाबल छत्तीसगढ़ से भी नक्सलियों को खदेड़ते हैं तो वे भागकर इसी तरफ आ जाते थे.
सुरक्षाबलों ने चलाया ऑपरेशन: इस इलाके में 1990 से ही माओवादियों और नक्सलियों का कब्जा था. घने जंगल माओवादियों का अड्डा हुआ करता था. नक्सलियों और माओवादियों का मांद बन चुके बूढ़ा पहाड़ से उन्हें खदेड़ने के लिए 2022 में स्थानीय पुलिस और अर्द्धसैनिकबलों ने ऑपरेशन चलाया. ऑपरेशन ऑक्टोपस, ऑपरेशन बुलबुल और ऑपरेशन थंडर चला कर यहां से माओवादियों और नक्सलियों को खदेड़ा गया. नक्सलियों को खदेड़ने के बाद वह फिर से इलाके में ना चले आए और ग्रामीणों ने उनका खौफ कम हो इसके लिए सुरक्षाबलों ने यहां एक स्थाई कैंप बनाया है.