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Jharkhand OBC Politics: ओबीसी आरक्षण बिल वापस होने पर सियासत शुरू, बीजेपी ने कहा- ऐसे बिल का लाना सरकार का राजनीतिक स्टंट - Jharkhand OBC Bill Returned from Governor

ओबीसी बिल लौटाए जाने के बाद झारखंड में सियासत तेज हो गई है. पक्ष विपक्ष एक दूसरे के ऊपर हमलावार हो गए हैं. आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गया है.

Jharkhand  Governor  Returned OBC Bill
राज्यपाल द्वारा ओबीसी आरक्षण बिल वापस किये जाने पर सियासत शुरू
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Published : Apr 20, 2023, 5:15 PM IST

ओबीसी बिल वापस होने के बाद बयान देते बीजेपी और कांग्रेस के नेता

रांची: राज्यपाल द्वारा ओबीसी आरक्षण बिल वापस किए जाने के बाद इसपर सियासत शुरू हो गई है. खास बात यह है कि झारखंड विधानसभा में जिस वक्त इसे पास किया गया उस समय पक्ष और विपक्ष के द्वारा ओबीसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर इसका समर्थन किया गया था. 1932 खतियान आधारित स्थानीयता बिल के बाद 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण संबंधित बिल राजभवन से वापस किए जाने से हेमंत सरकार को बड़ा झटका लगा है. बीजेपी ने कहा राजनीतिक स्टंट के कारण इस तरह का बिल सरकार लाती है.

ये भी पढे़ं: Ranchi News: कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की मांग को लेकर रांची में महाधरना, पार्टी को तोड़ने का लगा आरोप

ओबीसी आरक्षण बिल असंवैधानिक: 11 नवंबर 2022 को झारखंड विधानसभा से पदों और सेवाओं की रिक्तियों में झारखंड आरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2022 को मंजूरी मिली थी. इस बिल के प्रावधान को लेकर हालांकि उसी समय से सवाल उठने लगे थे. इस बिल में झारखंड में ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 से बढ़ाकर 27% करने का प्रावधान किया गया था. एसटी आरक्षण 26 से बढ़ाकर 28%, एससी के लिए 10% के मुकाबले 12% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. वहीं ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए भी 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. इस प्रकार इस बिल के जरिए राज्य की सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा 77% कर दिया गया था. राजभवन ने अटार्नी जनरल से मांगी गई कानूनी राय के आधार पर ओबीसी आरक्षण बिल को असंवैधानिक बताते हुए इसे वापस किया है.

आरक्षण बिल वापस होते ही राजनीति शुरू: राज्यपाल द्वारा आरक्षण बिल वापस किए जाने के बाद इसपर सियासत शुरू हो गई है. खास बात यह है कि विधानसभा में जिस वक्त इसे पास किया गया उस समय सभी पक्ष और विपक्ष दोनों ने इसका समर्थन किया था. उनका यह समर्थन ओबीसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर किया गया था. मगर जैसे ही राज्यपाल ने उसे वापस कर दिया तो विपक्ष (भारतीय जनता पार्टी) सरकार पर हमलावर हो गया है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव की तुरंत प्रतिक्रिया आ गई. कहा कि यह सरकार सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक स्टंट के कारण इस तरह के बिल लाकर जनता को दिग्भ्रमित कर रही है.

बिल वापस किए जाने के पीछे बीजेपी: जिस समय सदन में यह बिल लाया गया था उस वक्त भारतीय जनता पार्टी ने कहा था कि झारखंड हाई कोर्ट के द्वारा जो आरक्षण संबंधी सुझाव दिए गए हैं उसको ध्यान में रखकर सरकार इस बिल में प्रावधान करें मगर सरकार ने इसे अनदेखी कर दी और आनन-फानन में इस बिल को लाकर सदन से पास कराने का काम किया. इधर सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने राजभवन द्वारा इस बिल को वापस किए जाने के पीछे बीजेपी का हाथ होने का आरोप लगाया है.

वापस हुए बिल हेमंत की प्राथमिकता में: पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और महासचिव राकेश सिन्हा ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी चाहती नहीं कि ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिले. जिस दिन राजभवन से बिल को वापस किया गया था. उससे ठीक चार दिन पहले बीजेपी नेताओं का एक शिष्टमंडल राज्यपाल से मिला था. बहरहाल ओबीसी आरक्षण का मुद्दा फिलहाल अन्य बिल की तरह लटक गया है. इससे पहले राजभवन से 1932 खतियान आधारित स्थानीयता संबंधी बिल, मॉब लिंचिंग से संबंधी बिल भी वापस हो चूके हैं, जो हेमंत सरकार की प्राथमिकता में थी.

ओबीसी बिल वापस होने के बाद बयान देते बीजेपी और कांग्रेस के नेता

रांची: राज्यपाल द्वारा ओबीसी आरक्षण बिल वापस किए जाने के बाद इसपर सियासत शुरू हो गई है. खास बात यह है कि झारखंड विधानसभा में जिस वक्त इसे पास किया गया उस समय पक्ष और विपक्ष के द्वारा ओबीसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर इसका समर्थन किया गया था. 1932 खतियान आधारित स्थानीयता बिल के बाद 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण संबंधित बिल राजभवन से वापस किए जाने से हेमंत सरकार को बड़ा झटका लगा है. बीजेपी ने कहा राजनीतिक स्टंट के कारण इस तरह का बिल सरकार लाती है.

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ओबीसी आरक्षण बिल असंवैधानिक: 11 नवंबर 2022 को झारखंड विधानसभा से पदों और सेवाओं की रिक्तियों में झारखंड आरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2022 को मंजूरी मिली थी. इस बिल के प्रावधान को लेकर हालांकि उसी समय से सवाल उठने लगे थे. इस बिल में झारखंड में ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 से बढ़ाकर 27% करने का प्रावधान किया गया था. एसटी आरक्षण 26 से बढ़ाकर 28%, एससी के लिए 10% के मुकाबले 12% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. वहीं ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए भी 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. इस प्रकार इस बिल के जरिए राज्य की सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा 77% कर दिया गया था. राजभवन ने अटार्नी जनरल से मांगी गई कानूनी राय के आधार पर ओबीसी आरक्षण बिल को असंवैधानिक बताते हुए इसे वापस किया है.

आरक्षण बिल वापस होते ही राजनीति शुरू: राज्यपाल द्वारा आरक्षण बिल वापस किए जाने के बाद इसपर सियासत शुरू हो गई है. खास बात यह है कि विधानसभा में जिस वक्त इसे पास किया गया उस समय सभी पक्ष और विपक्ष दोनों ने इसका समर्थन किया था. उनका यह समर्थन ओबीसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर किया गया था. मगर जैसे ही राज्यपाल ने उसे वापस कर दिया तो विपक्ष (भारतीय जनता पार्टी) सरकार पर हमलावर हो गया है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव की तुरंत प्रतिक्रिया आ गई. कहा कि यह सरकार सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक स्टंट के कारण इस तरह के बिल लाकर जनता को दिग्भ्रमित कर रही है.

बिल वापस किए जाने के पीछे बीजेपी: जिस समय सदन में यह बिल लाया गया था उस वक्त भारतीय जनता पार्टी ने कहा था कि झारखंड हाई कोर्ट के द्वारा जो आरक्षण संबंधी सुझाव दिए गए हैं उसको ध्यान में रखकर सरकार इस बिल में प्रावधान करें मगर सरकार ने इसे अनदेखी कर दी और आनन-फानन में इस बिल को लाकर सदन से पास कराने का काम किया. इधर सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने राजभवन द्वारा इस बिल को वापस किए जाने के पीछे बीजेपी का हाथ होने का आरोप लगाया है.

वापस हुए बिल हेमंत की प्राथमिकता में: पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और महासचिव राकेश सिन्हा ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी चाहती नहीं कि ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिले. जिस दिन राजभवन से बिल को वापस किया गया था. उससे ठीक चार दिन पहले बीजेपी नेताओं का एक शिष्टमंडल राज्यपाल से मिला था. बहरहाल ओबीसी आरक्षण का मुद्दा फिलहाल अन्य बिल की तरह लटक गया है. इससे पहले राजभवन से 1932 खतियान आधारित स्थानीयता संबंधी बिल, मॉब लिंचिंग से संबंधी बिल भी वापस हो चूके हैं, जो हेमंत सरकार की प्राथमिकता में थी.

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