पलामूः किसी जिला में अगर बड़ा सरकारी अस्पताल हो तो लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं. क्योंकि उन्हें भरोसा है कि गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए उन्हें दूसरे जिला या राज्य का रूख नहीं करना पड़ेगा. लेकिन ऐसे गंभीर मामलों को लेकर पलामू का एमएमसीएच ना सिर्फ जिला बल्कि गढ़वा, लातेहार के गंभीर मरीजों के लिए वरदान नहीं बल्कि अभिशाप साबित हो रहा है. इसके पीछे के कारणों को ईटीवी भारत टटोलने की कोशिश की है. आप भी जानिए, इसके पीछे का असली कारण क्या है.
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पलामू का एमएमसीएच, यहां कोई रिस्क नहीं लेना चाहता, आधुनिक उपकरणों से लैस ऑपरेशन थिएटर के बावजूद डॉक्टर्स यहां इलाज नहीं (Doctors afraid to treat serious patients at MMCH) करते हैं. गंभीर मरीज या गोली लगे व्यक्ति को रांची भेज देते हैं. ऐसा करने से करीब 90 प्रतिशत मरीज की रास्ते में मौत हो जाती है. हर दिन करीब 20 से ज्यादा मरीज रिम्स रेफर किए जाते हैं. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि गोली लगने या दुर्घटना के बाद पलामू, गढ़वा और लातेहार के इलाके में लोगों की जान भगवान भरोसे ही (gun shot patients not treated in MMCH) है. क्योंकि धरती के भगवान कहे जाने वाले ये विशेषज्ञ और चिकित्सक गोली लगने या दुर्घटना में गंभीर रूप से जख्मी लोगों का इलाज करने में हाथ खड़े कर देते हैं. तीनों जिलों के ऐसे मरीजों को इलाज के लिए रिम्स रांची रेफर कर दिया जाता है लेकिन ऐसा करने से करीब 90 प्रतिशत लोगों की जान रास्ते में ही चली जाती है.
2019 में पलामू में मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (Medinirai Medical College and Hospital) की स्थापना की गई थी, उस दौरान उम्मीद जगी थी कि मरीजों को इलाज के लिए बाहर नहीं जाना होगा. मेडिकल कॉलेज की स्थापना के बाद से गोली लगने वाले एक भी व्यक्ति का एमएमसीएच में इलाज या ऑपरेशन नहीं किया गया है. 2019 से अब तक 14 लोगों को गोली लगी और सभी को रिम्स रेफर किया गया, जिसमें से 12 लोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. वहीं सड़क दुर्घटनाओं में मौत का आंकड़ा इससे कहीं अधिक है. तीनों जिलों में हर महीने 250 से अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती है जबकि प्रत्येक सप्ताह 8 से 9 लोगों की जान जाती है. इसमें अधिकतर लोगों की मौत समय पर इलाज के कारण नहीं हो बल्कि रेफर के बाद रिम्स जाने के दौरान रास्ते में होती है.
MMCH में डाक्टर्स नहीं लेने चाहते रिस्कः एमएमसीएच पलामू, गढ़वा और लातेहार का सबसे बड़ा रेफरल अस्पताल है. यह इलाका बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाकों से सटा हुआ है. एमएमसीएच में आधुनिक ऑपरेशन थिएटर हैं और कई मशीनें मौजूद हैं. एमएमसीएच में हर महीने आठ से 10 लोगों का ही ऑपरेशन किया जाता है. इनमें अधिकतर मामूली जख्म या हल्की हड्डी टूटने के मरीज हैं. गंभीर रूप से जख्मी या गोली लगने के एक भी मरीज का ऑपरेशन एमएमसीएच में नहीं किया जाता है जबकि एमएमसीएच में आधा दर्जन के करीब सर्जनों को तैनात किया गया है. युवा नेता सन्नी शुक्ला बताते हैं कि यह बेहद गंभीर मामला है. गंभीर मरीजों को रिम्स रेफर करना पलामू के लिए अभिशाप बन गया है, कई लोग रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. पलामू से रांची की दूरी 165 किलोमीटर है जबकि गढ़वा की 220 के करीब है. ऐसे में किसी भी गंभीर मरीज को इतने लंबे सफर पर ले जाना उसकी जान जोखिम में डालने जैसा है.
आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले दो वर्ष में एमएमसीएच में इलाज के अभाव में कई मरीजों की मौत हुई है. जिसमें कई बार मरीज के परिजन और स्वास्थ्यकर्मियों के बीच मारपीट की भी घटनाएं हुई हैं. एमएमसीएच के डॉक्टर्स भीड़ देखकर मरीजों को रेफर कर देते हैं. एमएमसीएच के अधीक्षक डॉ. डीके सिंह ने बताया कि भीड़ के कारण कई बार उनको और मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मरीजों के साथ बड़ी संख्या में अटेंडेंट पहुंचते हैं, जिस कारण डॉक्टर्स को इलाज करने में परेशानी होती है. एमएमसीएच में इस तरह के डर की वजह से बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था (bad condition of Health system in MMCH) को दुरुस्त करने के लिए आखिर क्या किया जाए.