पलामूः प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का गठन सितंबर 2004 में हुआ था. इसी के चलते माओवादियों ने 21 सितंबर से 28 सितंबर तक के हफ्ते में पूरे देश में स्थापना सप्ताह मनाने की घोषणा की है. हालांकि पिछले एक दशक में नक्सली संगठन भाकपा माओवादी बिहार झारखंड में काफी कमजोर हो गया है. दोनों राज्यों में आज भाकपा माओवादी अंतिम सांसें गिन रहा है. यह झारखंड में सारंडा, बूढ़ापहाड़, पारसनाथ, छकरबंधा और बिहार के जमुई के इलाके तक सिमट गया (Naxalite organization in Bihar Jharkhand) है. माओवादियों के हथियारबंद दस्ते PLGA को छोड़ बाकी के संगठन खत्म हो गए हैं. हजारों सदस्यों का कैडर दर्जनों में सिमट गया है.
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ऐसे हुआ था गठनः सितंबर 2004 में पीडब्ल्यूजी और एमसीसी को मिला पर भाकपा माओवादी का गठन किया गया था. जानकार बताते हैं कि इस दौरान देश भर के आधा दर्जन अन्य नक्सली संगठनों का भी इसमें विलय हुआ था. इससे पहले 1998 में पीडब्ल्यूजी और पार्टी यूनिटी का विलय हुआ था. पीडब्ल्यूजी और पार्टी यूनिटी का प्रभाव अविभाजित बिहार के इलाके में अधिक था, जबकि एमसीसी का प्रभाव छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के इलाके में अधिक था. विलय से पहले दोनों संगठनों के बीच कई खूनी संघर्ष भी हुए थे. पूर्व माओवादी सतीश कुमार बताते हैं कि संगठन की नेतृत्व क्षमता कमजोर हो गई है और समय के साथ सब कुछ बदल रहा है.
माओवादियों से अलग होकर बने नक्सल संगठनों ने किया कमजोरः 2004 में एमसीसी और पीडब्ल्यूजी के विलय का उस दौरान भी एक धड़े ने विरोध किया था. इसी को लेकर TSPC का गठन हुआ था, कहा जाता है इसके गठन में सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका थी. 2008-09 में माओवादियों से अलग हो कर झारखंड जनमुक्ति परिषद (JJMP) का गठन हुआ. इस दौरान पीएलएफआई जेएलटी जैसे अन्य नक्सली संगठन भी भाकपा माओवादी से अलग होकर बने. टीएसपीसी, JJMP ने माओवादियों के खिलाफ अघोषित लड़ाई शुरू की थी, जिन-जिन इलाकों में तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी (TSPC) और जेजेएमपी का प्रभाव हुआ, उस उस इलाके में भाकपा माओवादी का प्रभाव खत्म हो गया.
लेवी वसूलना बन गया उद्देश्यः जानकार बताते हैं कि 2004 के बाद भाकपा माओवादी के टॉप कमांडर का उद्देश्य लेवी वसूलना बन गया, लेवी वसूलने के कारण माओवादी आम लोगों के बीच अपने जनाधार को खोते जा रहे हैं, जबकि सुरक्षाबलों ने नक्सल प्रभावित इलाकों में दर्जनों कैंपों की स्थापना की है. इससे माओवादियों को मिलने वाली लेवी पर भी अंकुश लगा है और वे कमजोर होते जा रहे हैं. पलामू रेंज के डीआईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि माओवाद भटके हुए लोगों की विचारधारा है जिनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ लेवी वसूलना है. डीआईजी ने बताया कि पुलिस की पहुंच आम लोगों तक बढ़ने का नतीजा है कि आम लोग अब पुलिस और सरकारी तंत्र पर भरोसा करने लगे हैं. माओवादियों के खिलाफ टेंपो के माध्यम से अभियान भी चलाए जा रहे हैं.
कौन कौन योजना से कितनी लेवी वसूल रहे माओवादीः प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी अलग-अलग सरकारी योजनाओं से अलग-अलग दर से लेवी वसूलते हैं. कच्ची सड़क 10, छोटा पुल 5, पुलिया छलका 5, बड़ा डैम चेक डैम 5, सरकारी भवन 7, रोड 7 प्रतिशत, स्टोन क्रशर 30 हजार रुपये सालाना, चिमनी भट्ठा 50 हजार रुपये सालाना, रेलवे की ठेकेदारी पांच प्रतिशत, बड़े सड़क निर्माण प्रोजेक्ट 10 प्रतिशत, पेट्रोल पंप 25 हजार रुपये सालाना, बॉक्साइट माइन्स 10 रुपये प्रति टन, कोयला 07 रुपये प्रति टन के हिसाब से लेवी वसूला जाता है.
पीएलजीए कैडर की संख्या हजारों से दर्जनों में सिमटीः माओवादियों की गुरिल्ला आर्मी बिहार, झारखंड, उत्तरी छत्तीसगढ़, स्पेशल एरिया कमिटी (जिसमें पूरा बिहार और झारखण्ड है) में 2008-09 तक कैडर की संख्या 2500 से 3000 के बीच थी. इससे अधिक संख्या माओवादियों के सिर्फ दंडकारण्य स्पेशल जोन कमिटी के पास थी. दंडकारण्य स्पेशल जोन कमिटी में कैडर की संख्या 4500 से 5000 के करीब थी. सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो झारखण्ड, बिहार, उत्तरी छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमिटी में 300 से भी कम कैडर बच गए हैं. 2004 से 2015 तक PLGA की कार्रवाई में झारखण्ड बिहार में 2300 से अधिक लोगों की जान गई.