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पलामू में है महाभारत काल का अवशेष, 'भीम का चूल्हा' देखने हर साल मकर सक्रांति पर उमड़ती है लोगों की भीड़

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Published : Jan 11, 2020, 5:38 PM IST

Updated : Jan 28, 2020, 4:16 PM IST

पलामू के मोहम्मदगंज का महाभारत काल से जुड़ाव है और उसके अवशेष आज भी मौजूद हैं. माना जाता है कि मोहम्मदगंज में कोयल नदी के पास पांडवों में से एक भीम का बनाया चूल्हा है. भीम ने तीन चट्टानों से यह चूल्हा बनाया था. हर वर्ष इसे देखने के लिए मकर सक्रांति के अवसर पर हजारों लोग आते हैं.

पलामू में है महाभारत काल का अवशेष, 'भीम का चूल्हा' देखने हर साल मकर सक्रांति पर उमड़ती है लोगों की भीड़
भीम चुल्हा

पलामूः झारखंड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर पलामू के मोहम्मदगंज में महाभारत काल के आज भी अवशेष मौजूद है. मान्यता है कि मोहम्मदगंज में कोयल नदी के पास भीम का बनाया हुआ चूल्हा.

देखें पूरी खबर

पहाड़ों की श्रृंखला मौजूद

ऐसा कहा जाता है कि पांडव जब अज्ञात वास में निकले थे तो पलामू के मोहम्मदगंज पंहुचे थे. यहां कोयल नदी के तट पर खाना बनाने के चूल्हा बनाया था. चूल्हा तीन बड़े- बड़े चट्टानों से बना हुआ है. जिस जगह पर चूल्हा है वहां से करीब 500 मीटर की दूरी पर पहाड़ों की श्रृंखला है. मान्यता है उन्ही पहाड़ो से भीम ने तीन बड़े चट्टानों को उठाकर चूल्हा बनाया था, जिस वजह से यह इलाका भीम चूल्हा के नाम से जाना जाता है.

यह भी पढ़े- ट्राइबल मेडिकल एसोसिएशन ने रिम्स निदेशक से की मुलाकात, विभिन्न पदों पर हो रही नियुक्तियों पर रोक लगाने की मांग

सक्रांति पर लगता है मेला

भीम चूल्हा पर हर वर्ष सैकड़ों सैलानी घूमने के लिए आते हैं. भीम चूल्हा के पास ही उतर कोयल तहत परियोजना का बराज है, जहां हर वर्ष मकर संक्रांति के मौके पर मेला लगता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह आस्था का बड़ा केंद्र है. सरकार अगर ध्यान दे तो इस इलाके को बड़ा पर्यटन क्षेत्र में तब्दील किया जा सकता है. भीम बराज मेदिनीनगर से करीब 95 जबकि हुसैनाबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर है. सड़क और रेल मार्ग से भीम चूल्हा के पास पंहुचा जा सकता है.

पलामूः झारखंड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर पलामू के मोहम्मदगंज में महाभारत काल के आज भी अवशेष मौजूद है. मान्यता है कि मोहम्मदगंज में कोयल नदी के पास भीम का बनाया हुआ चूल्हा.

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पहाड़ों की श्रृंखला मौजूद

ऐसा कहा जाता है कि पांडव जब अज्ञात वास में निकले थे तो पलामू के मोहम्मदगंज पंहुचे थे. यहां कोयल नदी के तट पर खाना बनाने के चूल्हा बनाया था. चूल्हा तीन बड़े- बड़े चट्टानों से बना हुआ है. जिस जगह पर चूल्हा है वहां से करीब 500 मीटर की दूरी पर पहाड़ों की श्रृंखला है. मान्यता है उन्ही पहाड़ो से भीम ने तीन बड़े चट्टानों को उठाकर चूल्हा बनाया था, जिस वजह से यह इलाका भीम चूल्हा के नाम से जाना जाता है.

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सक्रांति पर लगता है मेला

भीम चूल्हा पर हर वर्ष सैकड़ों सैलानी घूमने के लिए आते हैं. भीम चूल्हा के पास ही उतर कोयल तहत परियोजना का बराज है, जहां हर वर्ष मकर संक्रांति के मौके पर मेला लगता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह आस्था का बड़ा केंद्र है. सरकार अगर ध्यान दे तो इस इलाके को बड़ा पर्यटन क्षेत्र में तब्दील किया जा सकता है. भीम बराज मेदिनीनगर से करीब 95 जबकि हुसैनाबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर है. सड़क और रेल मार्ग से भीम चूल्हा के पास पंहुचा जा सकता है.

Intro:महाभारत काल का अवशेष है पलामू, भीम का बनाया हुआ चूल्हा पर पर उमड़ती है लोगो की भीड़

नीरज कुमार । पलामू

झगरखण्ड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर पलामू के मोहम्मदगंज में महाभारत काल के आज भी अवशेष मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि मोहम्मदगंज में कोयल नदी के पास भीम का बनाया हुआ चूल्हा। ऐसा कहा जाता है कि पांडव जब अज्ञात वास में निकले थे तो पलामू के मोहम्मदगंज पंहुचे थे, यंहा कोयल नदी के तट पर खाना बनाने के चूल्हा बनाया था। चूल्हा तीन बड़े बड़े चट्टानों से बना हुआ है। जिस जगह पर चूल्हा है वंहा से करीब 500 मीटर की दूरी पर पहाड़ो की सृंखला है। मान्यता है उन्ही पहाड़ो से भीम से तीन बड़े चट्टानों को उठा कर चूल्हा बनाया है। यह यह इलाका भीम चूल्हा के नाम से जाना जाता है।






Body:भीम चूल्हा पर हर वर्ष सैकड़ो सैलानी घूमने के लिए आते है। भीम चूल्हा के पास ही उतर कोयल तहत परियोजना का बराज है। जंहा हर वर्ष मकर संक्रांति के मौके पर मेला लगता है। स्थानीय लोगो का कहना है कि यह बड़ा आस्था का केंद्र हैं । सरकार अगर ध्यान दे तो इस इलाके को बड़ा पर्यटन क्षेत्र में तब्दील किया जा सकता है। भीम बराज मेदिनीनगर से करीब 95 जबकि हुसैनाबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर। सड़क और रेल मार्ग से भीम चूल्हा के पास पंहुचा जा सकता है।


Conclusion:भीम चूल्हा
Last Updated : Jan 28, 2020, 4:16 PM IST
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