ETV Bharat / state

इन आदिवासियों के धुंधले सपने और इनकी हालत, कहीं कोरे कागज पर न सिमट जाए इनकी पहचान

पाकुड़ जिले में रह रहे सौरिया पहाड़िया आदिम जनजाति आजादी के बाद से कभी किसी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं उठा सके हैं. इनकी हालत ऐसी है कि इन्हें पीने के लिए साफ पानी और बिजली तक नसीब नहीं. वहीं अगर ये बीमार पड़ जाएं तो इन्हें अस्पताल तक पहुंचने में कोसो सफर तय करना पड़ता है, वो भी बिना रास्ते के, क्योंकि यहां सड़क तक नहीं है.

पहाड़िया जनजाति
author img

By

Published : Aug 6, 2019, 11:49 PM IST

Updated : Aug 7, 2019, 4:02 PM IST

पाकुड़: जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड स्थित जालोकुंडी गांव में रह रहे पहाड़िया आदिम जनजाति शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में काफी पिछड़े हैं. इनके पिछड़ेपन का अंदाजा इसी से लगता है कि आज भी इनके जीवन स्तर के साथ-साथ इनके रहन सहन और सामाजिक परिवेश में कोई बदलाव नहीं आया. झारखंड अलग राज्य बना, इन्हें लगा था कि अब तो दिन बहुरेंगे, लेकिन हुआ कुछ नहीं.

देखें पूरी खबर

इनके बारे में जानिए

सौरिया पहाड़िया झारखंड की एक आदिम जनजाति है, जो मुख्य रूप से संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका और जामताड़ा जिलों में निवास करती है. इसके सिवा इस जनजाति की कुछ आबादी रांची, प. सिंहभूम और धनबाद जिलों में भी पाई जाती है. 2011 के अनुसार इनकी जनसंख्या 46, 222 है. सौरिया पहाड़िया जनजाति के अधिकांश गांव लहरदार पहाडियों की चोटियों और जंगल से भरे पहाड़ी ढलानों पर बसे होते हैं.

इनके गौत्र नहीं होते

सौरिया पहाड़िया पुरूषों के लिए परंपरागत पोशाक धोती, गंजी और पगड़ी है. महिलाओं के लिए साड़ी और टोपवारे हैं, वहीं सौरिया पहाड़िया जनजाति एक अन्तर्विवाह जनजाति है, सौरिया पहाड़िया जनजाति के बीच गोत्र नहीं होते. सौरिया पहाड़िया जनजाति के बीच देवी- देवीताओं को वर्ष का नया अन्न चढ़ाना त्यौहार के रूप में मनाया जाता है.

बीमार पड़ने पर इलाज की समस्या

पहाड़िया आजादी के वर्षों बीतने के बाद भी सुविधाओं से महरूम हैं. ये बताते हैं कि यहां न तो पीने का पानी है, न ही सड़क, बिजली, स्कूल. अगर कोई बीमार पड़ जाते हैं तो डॉक्टर भी नहीं कि इलाज हो सके. जड़ी-बूटी और ओझा गुणी के भरोसे ही इलाज होता है.

नहीं मिलती कोई सुविधा

राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाएं धरातल पर उतारी गईं. करोड़ों रुपए खर्च हुए लेकिन हालात नहीं बदले. क्योंकि जो पैसे आए, उसे बीच में ही बिचौलिए डकार गए. सरकारी तंत्र को भी कोई फर्क नहीं पड़ा. जब कभी दर्द बढ़ जाता है, तो ये सौरिया पहाड़िया आदिवासी सड़कों पर उतर कर अपने होने का अहसास करा जाते हैं. मौजूदा सरकार कुछ योजना इनके लिए लायी है. जो इनमें एक धुंधली उम्मीद जगा गई है.

ये भी पढ़ें- छात्रा ने स्कूल अकाउंट से उड़ाए 6.5 लाख रुपए, CSP संचालक के साथ हुई गिरफ्तार

सरकार और प्रशासन को ध्यान देने की जरुरत
सरकार और प्रशासन में बैठे लोग यदि समय रहते ध्यान नहीं देते हैं, तो खत्म होने की कगार पर पहुंच रही इन आदिम जनजाति सौरिया पहाड़िया के बारे में हम और आप किताब के पन्नों से ही जान पाएंगे.

पाकुड़: जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड स्थित जालोकुंडी गांव में रह रहे पहाड़िया आदिम जनजाति शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में काफी पिछड़े हैं. इनके पिछड़ेपन का अंदाजा इसी से लगता है कि आज भी इनके जीवन स्तर के साथ-साथ इनके रहन सहन और सामाजिक परिवेश में कोई बदलाव नहीं आया. झारखंड अलग राज्य बना, इन्हें लगा था कि अब तो दिन बहुरेंगे, लेकिन हुआ कुछ नहीं.

देखें पूरी खबर

इनके बारे में जानिए

सौरिया पहाड़िया झारखंड की एक आदिम जनजाति है, जो मुख्य रूप से संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका और जामताड़ा जिलों में निवास करती है. इसके सिवा इस जनजाति की कुछ आबादी रांची, प. सिंहभूम और धनबाद जिलों में भी पाई जाती है. 2011 के अनुसार इनकी जनसंख्या 46, 222 है. सौरिया पहाड़िया जनजाति के अधिकांश गांव लहरदार पहाडियों की चोटियों और जंगल से भरे पहाड़ी ढलानों पर बसे होते हैं.

इनके गौत्र नहीं होते

सौरिया पहाड़िया पुरूषों के लिए परंपरागत पोशाक धोती, गंजी और पगड़ी है. महिलाओं के लिए साड़ी और टोपवारे हैं, वहीं सौरिया पहाड़िया जनजाति एक अन्तर्विवाह जनजाति है, सौरिया पहाड़िया जनजाति के बीच गोत्र नहीं होते. सौरिया पहाड़िया जनजाति के बीच देवी- देवीताओं को वर्ष का नया अन्न चढ़ाना त्यौहार के रूप में मनाया जाता है.

बीमार पड़ने पर इलाज की समस्या

पहाड़िया आजादी के वर्षों बीतने के बाद भी सुविधाओं से महरूम हैं. ये बताते हैं कि यहां न तो पीने का पानी है, न ही सड़क, बिजली, स्कूल. अगर कोई बीमार पड़ जाते हैं तो डॉक्टर भी नहीं कि इलाज हो सके. जड़ी-बूटी और ओझा गुणी के भरोसे ही इलाज होता है.

नहीं मिलती कोई सुविधा

राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाएं धरातल पर उतारी गईं. करोड़ों रुपए खर्च हुए लेकिन हालात नहीं बदले. क्योंकि जो पैसे आए, उसे बीच में ही बिचौलिए डकार गए. सरकारी तंत्र को भी कोई फर्क नहीं पड़ा. जब कभी दर्द बढ़ जाता है, तो ये सौरिया पहाड़िया आदिवासी सड़कों पर उतर कर अपने होने का अहसास करा जाते हैं. मौजूदा सरकार कुछ योजना इनके लिए लायी है. जो इनमें एक धुंधली उम्मीद जगा गई है.

ये भी पढ़ें- छात्रा ने स्कूल अकाउंट से उड़ाए 6.5 लाख रुपए, CSP संचालक के साथ हुई गिरफ्तार

सरकार और प्रशासन को ध्यान देने की जरुरत
सरकार और प्रशासन में बैठे लोग यदि समय रहते ध्यान नहीं देते हैं, तो खत्म होने की कगार पर पहुंच रही इन आदिम जनजाति सौरिया पहाड़िया के बारे में हम और आप किताब के पन्नों से ही जान पाएंगे.

Intro:बाइट : सुरजी पहाड़िन, ग्रामीण
बाइट : बमना पहाड़िया, ग्रामीण
बाइट : शिवचरण मालतो, पहाड़िया नेता
बाइट : डॉ अरविंद कुशल एक्का, चिकित्सक

पाकुड़ : 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हो या देश की आजादी के लिए चलाया गया आंदोलन ने अपनी भुमिका निभाने वाले आदिम जनजाति पहाड़िया आज विलुप्ती के कगार पर पहुंचने पर है।


Body:स्वाभिमान और सम्मान से जीने वाले आदिम जनजाति पहाड़िया का सांवरिया हो या माल पहाड़िया आजादी के वर्षो बितने के बाद भी बुनियादी और मुलभुत सुविधाओ से मरहुम है। ऐसा इसलिए हुआ है कि झारखंड राज्य के संथाल परगना प्रमंडल के 6 जिलो में बासोबास करने वाले सवांरिया एवं माल पहाड़िया समुदाय के लोगो को खासकर राजनीतिक क्षेत्र में प्रतिनिधित्व करने का मौका नही मिला।

संथाल परगना प्रमंडल के पाकुड़ जिले में हजारो की संख्या में रह रहे इन आदिम जनजाति सवांरिया एवं मालपहाड़िया आज भी शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में काफी पिछड़े है। इनके पिछड़ेपन का अंदाजा इसी से लगता है कि आज भी इनके जीवन स्तर के साथ साथ इनके रहन सहन और सामाजिक परिवेश में कोई बदलाव नही आया। झारखंड राज्य अलग बना और इन पहाड़िया समुदाय के लोगो को यह लगने लगा था कि अब शासन और प्रशासन वर्षो से व्यवस्था की झेल रहे मार से मुक्ति दिलायेगा पर ऐसा नही हो पाया। राज्य अलग बनने के बाद चाहे बाबुलाल मरांडी हो या मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इन पहाड़िया ग्रामीणो के जीवनस्तर को उपर उठाने के लिए कुछ प्रयास जरूर किये पर आज भी पाकुड़ जिले के लगभग 40 हजार सवांरिया एवं 15 हजार माल पहाड़िया जो पहाड़ो पर रहे है एक उद्धारक की तलाश में है।

पहाड़ो पर रह रहे आदिम जनजाति सवांरिया एवं माल पहाड़िया जनजाति के लोगो को न तो शुद्ध पेयजल मुहैया कराया जा सका है और न ही इन्हे शिक्षा की मुख्य धारा में जोड़ने में शासन प्रशासन अपने को सफल साबित कर पाया है। स्वास्थ की स्थिति का तो कहना ही क्या। आज भी छोटी मोटी बिमारियो का इलाज झोलाछाप डाॅक्टरो से कराना इनकी नियती बनी हुई है। आज भी आदिम जनजाति पहाड़िया ग्रामीण ओझागुनी जैसे अंध विश्वास से बाहर नही निकल पाये है। रोजगार के मामले में भी आजादी के बाद से लेकर अलग राज्य बनने के वर्षो बितने के बाद भी इन आदिम जनजाति पहाड़िया को लाभांवित नही किया जा सका। राज्य एवं केंद्र सरकार की कई रोजगारोन्मुखी योजनाए धरातल पर उतारी गयी, करोड़ो रूप्ये खर्च किये गये पर स्थिति में बदलाव जिस तरह का आना चाहिए था नही आ पाया है क्योंकि सरकारी बाबुओ ने इन पहाड़िया ग्रामीणो से सीधा न जुड़कर विचैलियो के जरीये विकास व कल्याणकारी योजनाओ को धरातल पर उतारने का पहले भी काम किया और आज भी कर रहे है। अपने एवं अपने बाल बच्चो एवं परिवार के जिंदगी में बदलाव एवं अधिकार के लिए आज भी ये आदिम जनजाति पहाड़िया यदा कदा सड़को पर उतर कर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे है पर सरकार इनकी सारी बातो को सुन नही रही और मजबुरन अपने को जनप्रतिनिधित्व नही मिलने के कारण इनकी आवाजो सड़क तक ही सिमित रह गयी है।

झारखंड की रघुवर सरकार ने इन्हे डाकिया योजना के तहत घरो तक अनाज पहुंचाने का काम शुरू किया, पहाड़िया बटालियन का गठन कर इन पहाड़िया ग्रामीणो के युवको को रोजगार देने का काम हुआ पर जो काम धरातल पर होना चाहिए स्वास्थ, शिक्षा, सड़क, पानी बिजली गांवो में बहाली का वह आज भी शत प्रतिशत पहाड़िया गांव में नही हो पाया है।


Conclusion:सरकार और प्रशासन में बैठे लोगो ने यदि समय रहने ध्यान नही दिया तो विलुप्ती के कगार पर पहुंच रही इन आदिम जनजाति पहाड़िया के बारे में हम और आप किताब के पन्नो में ही इन्हे जान पायेंगे।
Last Updated : Aug 7, 2019, 4:02 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.