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पाकुड़ के मां नित्यकाली मंदिर में उमड़ती है भक्तों की भीड़, राजा-महाराजा के समय से होती है काली पूजा

पाकुड़ जिला मुख्यालय सहित जिलेभर में शनिवार को काली पूजा, दीपावली और गणेश-लक्ष्मी पूजा धूमधाम से मनाई जाएगी. जिले के प्रमुख मंदिरों में से एक राजापाड़ा स्थित नित्यकाली मंदिर में काली पूजा के दिन भारी भीड़ उमड़ती है. नित्यकाली मंदिर न केवल पाकुड़ बल्कि बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के काली भक्तों की आस्था का केंद्रबिंदु वर्षों से बना हुआ है.

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Published : Nov 14, 2020, 1:57 PM IST

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मां काली की प्रतिमा

पाकुड़: दिवाली की रात मां काली की पूजा भी की जाती है. इस वर्ष मां काली को 14 नवंबर को ही पूजा जाएगा. ऐसे में मां के मंदिर में इस दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. पाकुड़ जिला मुख्यालय सहित जिलेभर में शनिवार को काली पूजा, दीपावली और गणेश-लक्ष्मी पूजा धूमधाम से मनाई जाएगी. राजापाड़ा स्थित नित्यकाली मंदिर में काली पूजा को लेकर हर साल भारी भीड़ उमड़ती है. न केवल पाकुड़ बल्कि बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के काली भक्तों की आस्था का केंद्र बिंदु वर्षों से बना हुआ है.

देखें स्पेशल स्टोरी

जिला मुख्यालय के राजापाड़ा स्थित नित्यकाली मंदिर में साधक न केवल साधना करने पहुंचते बल्कि, पूरे जिले और आसपास के श्रद्धालु प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को अपने परिवार के साथ पूजा-अर्चना और आरती में भाग लेने आते हैं. इस आशा और विश्वास से की मां नित्यकाली उनके कष्टों को हरेगी और सुख समृद्धि प्रदान करेगी.

पूरे संथाल परगना प्रमंडल में वैसे तो कई मां भगवती स्थल हैं, जहां लोग मन्नत पूरी होने पर मंदिरों में माथा टेकने पहुंचते हैं, लेकिन पाकुड़ जिला मुख्यालय का नित्यकाली मंदिर भी वर्षो से श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बना हुआ है. यहां राजा-महाराजा के काल में खासकर काली पूजा के मौके पर हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती थी, जिसमें आदिम जनजाति पहाड़िया और आदिवासी भी पहाड़ों और जंगलों से निकलकर मां की पूजा अर्चना, प्रतिमा दर्शन और महाप्रसाद ग्रहण करने पहुंचते थे.

इसे भी पढ़ें- भगवान बिरसा की जीवनी लोगों के लिए बनेगा प्रेरणा स्रोत, 15 नवंबर को पुराने जेल में बने स्मृति पार्क का होगा उद्घाटन

जमींदार और राजा महाराजा का शासन खत्म होने के बाद कुछ दिनों तक राजघराने के सदस्यों की ओर पूर्व की परिपाटी चलाई, लेकिन कालांतर में खासकर भोज-भंडारा की प्रथा खत्म हो गई लेकिन आज भी काली पूजा के मौके पर दूर-दराज से श्रद्धालु मां नित्यकाली की आराधना करने पहुंचते हैं.

श्रद्धालुओं में मान्यता है कि सच्चे मन से यदि हुई मां नित्यकाली से कुछ मांगते हैं तो उनकी मुरादें कम समय में पूरी हो जाती है. यह वही नित्यकाली का मंदिर है जहां कभी मां तारा के परम भक्त बामाखेपा साधना करने आते थे, जैसा कि पुरोहित भरत मिश्र बताते हैं.

पुरोहित के मुताबिक मंदिर का निर्माण के बाद भाव साधक बामाखेपा स्वयं यहां साधना करने आये थे. उन्होंने इस मंदिर में बामा खेपा तीन दिन तक मां की साधना किया. इस दौरान मां काली ने साधक बामाखेपा को तारापीठ जाकर साधना करने की बात कही.

पुरोहित के मुताबिक प्रतिमा स्थापित करने के बाद मां का उग्र रूप देखते हुए पुत्र के रूप में गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित की गई. राज परिवार की मीरा प्रवीण सिंह ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण 1737 ई० में राजा पृथ्वीचंद्र शाही ने कराया था. उन्होंने बताया कि मां नित्यकाली एवं भगवान शिव की प्रतिमा एक ही शीला से बनाया गया था.

पाकुड़: दिवाली की रात मां काली की पूजा भी की जाती है. इस वर्ष मां काली को 14 नवंबर को ही पूजा जाएगा. ऐसे में मां के मंदिर में इस दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. पाकुड़ जिला मुख्यालय सहित जिलेभर में शनिवार को काली पूजा, दीपावली और गणेश-लक्ष्मी पूजा धूमधाम से मनाई जाएगी. राजापाड़ा स्थित नित्यकाली मंदिर में काली पूजा को लेकर हर साल भारी भीड़ उमड़ती है. न केवल पाकुड़ बल्कि बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के काली भक्तों की आस्था का केंद्र बिंदु वर्षों से बना हुआ है.

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जिला मुख्यालय के राजापाड़ा स्थित नित्यकाली मंदिर में साधक न केवल साधना करने पहुंचते बल्कि, पूरे जिले और आसपास के श्रद्धालु प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को अपने परिवार के साथ पूजा-अर्चना और आरती में भाग लेने आते हैं. इस आशा और विश्वास से की मां नित्यकाली उनके कष्टों को हरेगी और सुख समृद्धि प्रदान करेगी.

पूरे संथाल परगना प्रमंडल में वैसे तो कई मां भगवती स्थल हैं, जहां लोग मन्नत पूरी होने पर मंदिरों में माथा टेकने पहुंचते हैं, लेकिन पाकुड़ जिला मुख्यालय का नित्यकाली मंदिर भी वर्षो से श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बना हुआ है. यहां राजा-महाराजा के काल में खासकर काली पूजा के मौके पर हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती थी, जिसमें आदिम जनजाति पहाड़िया और आदिवासी भी पहाड़ों और जंगलों से निकलकर मां की पूजा अर्चना, प्रतिमा दर्शन और महाप्रसाद ग्रहण करने पहुंचते थे.

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जमींदार और राजा महाराजा का शासन खत्म होने के बाद कुछ दिनों तक राजघराने के सदस्यों की ओर पूर्व की परिपाटी चलाई, लेकिन कालांतर में खासकर भोज-भंडारा की प्रथा खत्म हो गई लेकिन आज भी काली पूजा के मौके पर दूर-दराज से श्रद्धालु मां नित्यकाली की आराधना करने पहुंचते हैं.

श्रद्धालुओं में मान्यता है कि सच्चे मन से यदि हुई मां नित्यकाली से कुछ मांगते हैं तो उनकी मुरादें कम समय में पूरी हो जाती है. यह वही नित्यकाली का मंदिर है जहां कभी मां तारा के परम भक्त बामाखेपा साधना करने आते थे, जैसा कि पुरोहित भरत मिश्र बताते हैं.

पुरोहित के मुताबिक मंदिर का निर्माण के बाद भाव साधक बामाखेपा स्वयं यहां साधना करने आये थे. उन्होंने इस मंदिर में बामा खेपा तीन दिन तक मां की साधना किया. इस दौरान मां काली ने साधक बामाखेपा को तारापीठ जाकर साधना करने की बात कही.

पुरोहित के मुताबिक प्रतिमा स्थापित करने के बाद मां का उग्र रूप देखते हुए पुत्र के रूप में गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित की गई. राज परिवार की मीरा प्रवीण सिंह ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण 1737 ई० में राजा पृथ्वीचंद्र शाही ने कराया था. उन्होंने बताया कि मां नित्यकाली एवं भगवान शिव की प्रतिमा एक ही शीला से बनाया गया था.

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