पाकुड़: जंगलों और पहाड़ों में बसे आदिवासी समाज के लोग आज भी जानलेवा कोरोना वायरस से महफूज हैं. ग्रामीण मानते हैं कि उनका रहन सहन और ग्रामीण परिवेश ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है. उनका मानना है कि उनका खानपान का तरीका ऐसा है कि कोरोना उन्हें छू भी नहीं सकता. ग्रामीणों का कहना है कि वे लोग पूरी तरह से प्राकृति पर निर्भर हैं. पूरा गांव चारों तरफ हरे-भरे पेड़ों से घिरा है. जिससे उन्हें शुद्ध ऑक्सिजन मिलती है. यह प्राकृतिक माहौल ही उन्हें स्वस्थ्य रखने में सहायक है. लेकिन इसके बाद भी वे सरकार के जारी गाइडलाइन का पालन करते हैं.
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सरकार भी कर रही कोशिश
हेमंत सरकार भी पूरी कोशिश कर रही है कि कोरोना को गांवों में फैसले से रोका जाए, यही वजह है कि गांव में कोरोना जांच अभियान चलाया जा रहा है. गांव में अगर कोई बाहर से आता है तो पहले उसकी जांच की जाती है फिर उसे आइसोलेशन में रखा जाता है. यही नहीं अगर किसी में कोरोना के लक्षण मिलते हैं को उसे पास के ही अस्पताल में भर्ती कराया जाता है.
कोरोना काल में बनाए नियमों का सख्ती से पालन
गांव के लोगों ने आपसी सूझबूझ के साथ कोरोना को मात दी है. कोरोना काल में इन्होंने इस तरह के नियम बनाए हैं कि गांवों में इस जानलेवा बीमारी ने अपने पैर नहीं पसारे हैं. गांवों में कोरोना ना फैले इसके लिए एक तरफ सरकार जहां जांच अभियान चला रही है, वहीं दूसरी और वैक्सीनेशन को लेकर भी अभियान चलाया जा रहा है. लोगों में वैक्सीनेशन को लेकर किसी भी प्रकार की कोई गफलत नहीं है और तेजी से टीकाकरण हो रहा है.
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बीमारी मचा रही तबाही
आज कोरोना से पूरा देश प्रभावित है. कई राज्यों में इस बीमारी ने ग्रामीण इलाकों में भी तबाही मचाई है. ऐसे में पाकुड़ के ग्रामीण इलाके में लोगों का कहना है कि उन्होंने कोरोना की पहली और दूसरी लहर का अच्छे से मुकाबला किया है. अब अगर कोरोना की तीसरी लहर आती है तो फिर उसका भी मुकाबला करेंगे.