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लोहरदगाः दिव्यांग होने का दंश झेलता आदिम जनजाति परिवार, नहीं पहुंची है इन तक सरकारी योजनाएं

लोहरदगा का एक परिवार दिव्यांग होने का दंश झेल रहा है. शारीरिक रूप से असमर्थ होने के कारण इनकी आर्थिक हालात काफी खराब है. इन्हें अब तक ये भी नहीं पता कि इनके विकलांगता की वजह क्या है. वहीं, दिव्यांगों के लिए बनी किसी सरकारी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिल पा रहा है.

दिव्यांग अदिम जनजाति के लोग
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Published : Aug 16, 2019, 2:02 PM IST

Updated : Aug 16, 2019, 3:51 PM IST

लोहरदगाः शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को सम्मान देने के लिए प्रधानमंत्री ने उन्हें एक नाम दिया, दिव्यांग. दिव्यांग मतलब जो ईश्वर का अंग हो. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि लोहरदगा में एक ही परिवार में तीन दिव्यांग हैं. सरकारी योजनाओं का लाभ तो दूर इनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है. ये संरक्षित कहे जाने वाले आदिम जनजाति समुदाय के सदस्य हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

सेन्हा प्रखंड के अलोदी पंचायत के ऊरु चटकपुर गांव के आदिम जनजाति परिवार के तीन सदस्य दिव्यांग हैं. इनके नाम रामदेव असुर, कतनी असुर और राहुल असुर है. इसमें से रामदेव असुर और कतनी असुर पैर से दिव्यांग है. दोनों लड़खड़ा कर चलते हैं. वहीं, राहुल असुर बोलने और सुनने में सक्षम नहीं हैं. ऐसे हालात में परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है.

दिव्यांगता की वजह भी नहीं है अब तक पता

दिव्यांग बच्चों के परिवार के सदस्य कहते हैं कि इन्हें लकवा मार गया है, पर सच्चाई यह है कि उन्हें भी पता नहीं कि हुआ क्या है. झोलाछाप डॉक्टर ने जो बता दिया बस उसे ही आज तक मानते आ रहे हैं. न तो कभी ठीक तरीके से जांच हुई है और न ही सरकार की किसी योजना का लाभ ही मिल पाया है.

न दिव्यांगता प्रमाण पत्र और न ही आयुष्मान भारत कार्ड

तीनों के न तो दिव्यांगता प्रमाण पत्र आज तक बने हैं, न ही आयुष्मान भारत कार्ड. ऐसे हालात में इनकी लाचारगी को समझा जा सकता है. आदिम जनजाति परिवार के इन सदस्यों के पास इतने पैसे भी नहीं कि इन तीनों दिव्यांग बच्चों का किसी अस्पताल में ले जाकर ठीक तरीके से इलाज भी करा पाएं. सरकारी योजनाएं भी इन तक पहुंच नहीं पाई. कभी स्वास्थ्य विभाग की टीम या प्रशासनिक टीम ने वहां पहुंचकर उनकी सुध तक लेने की कोशिश नहीं की.

ये भी पढ़ें- शिबू सोरेन ने JMM ऑफिस में फहराया झंडा, धारा 370 पर बोलने से बचे हेमंत सोरेन

वहीं, मामले में सिविल सर्जन डॉक्टर विजय कुमार कहते हैं कि वे स्वास्थ्य विभाग की टीम को वहां भेजेंगे, जांच कराएंगे. आवश्यकता अनुसार दिव्यांग प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराया जाएगा.

लोहरदगाः शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को सम्मान देने के लिए प्रधानमंत्री ने उन्हें एक नाम दिया, दिव्यांग. दिव्यांग मतलब जो ईश्वर का अंग हो. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि लोहरदगा में एक ही परिवार में तीन दिव्यांग हैं. सरकारी योजनाओं का लाभ तो दूर इनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है. ये संरक्षित कहे जाने वाले आदिम जनजाति समुदाय के सदस्य हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

सेन्हा प्रखंड के अलोदी पंचायत के ऊरु चटकपुर गांव के आदिम जनजाति परिवार के तीन सदस्य दिव्यांग हैं. इनके नाम रामदेव असुर, कतनी असुर और राहुल असुर है. इसमें से रामदेव असुर और कतनी असुर पैर से दिव्यांग है. दोनों लड़खड़ा कर चलते हैं. वहीं, राहुल असुर बोलने और सुनने में सक्षम नहीं हैं. ऐसे हालात में परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है.

दिव्यांगता की वजह भी नहीं है अब तक पता

दिव्यांग बच्चों के परिवार के सदस्य कहते हैं कि इन्हें लकवा मार गया है, पर सच्चाई यह है कि उन्हें भी पता नहीं कि हुआ क्या है. झोलाछाप डॉक्टर ने जो बता दिया बस उसे ही आज तक मानते आ रहे हैं. न तो कभी ठीक तरीके से जांच हुई है और न ही सरकार की किसी योजना का लाभ ही मिल पाया है.

न दिव्यांगता प्रमाण पत्र और न ही आयुष्मान भारत कार्ड

तीनों के न तो दिव्यांगता प्रमाण पत्र आज तक बने हैं, न ही आयुष्मान भारत कार्ड. ऐसे हालात में इनकी लाचारगी को समझा जा सकता है. आदिम जनजाति परिवार के इन सदस्यों के पास इतने पैसे भी नहीं कि इन तीनों दिव्यांग बच्चों का किसी अस्पताल में ले जाकर ठीक तरीके से इलाज भी करा पाएं. सरकारी योजनाएं भी इन तक पहुंच नहीं पाई. कभी स्वास्थ्य विभाग की टीम या प्रशासनिक टीम ने वहां पहुंचकर उनकी सुध तक लेने की कोशिश नहीं की.

ये भी पढ़ें- शिबू सोरेन ने JMM ऑफिस में फहराया झंडा, धारा 370 पर बोलने से बचे हेमंत सोरेन

वहीं, मामले में सिविल सर्जन डॉक्टर विजय कुमार कहते हैं कि वे स्वास्थ्य विभाग की टीम को वहां भेजेंगे, जांच कराएंगे. आवश्यकता अनुसार दिव्यांग प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराया जाएगा.

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स्टोरी- आदिम जनजाति समुदाय के इन दिव्यागों की नहीं लेता सुध, नहीं पहुंच पाई है सरकार की योजनाएं
बाइट- रामदेव असुर, दिव्यांग
बाइट- चरण असुर, दिव्यांगों बच्चों का पिता
बाइट- डॉ. विजय कुमार, सिविल सर्जन
एंकर- विकलांगों को सम्मान देने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें एक नाम दिया, दिव्यांग. दिव्यांग मतलब जो ईश्वर का अंग हो. सरकार ने इन दिव्यांगों की दशा और दिशा में सुधार लाने को लेकर कई योजनाओं का संचालन भी किया. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि लोहरदगा में एक ही परिवार के तीन दिव्यांगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दिव्यांग किसी सामान्य जाति या समुदाय से नहीं आते हैं, बल्कि संरक्षित कहे जाने वाले आदिम जनजाति समुदाय के सदस्य हैं. इन दिव्यांग बच्चों तक सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं पहुंच पाया है. ना तो कभी चिकित्सकों ने इनकी जांच की है और ना ही इनका इलाज हो पाया है. गांव में आने वाले झोलाछाप डॉक्टर ही आज तक इनकी परेशानी को सुनते आए हैं. दिव्यांग बच्चों के परिवार के सदस्य कहते हैं कि इन्हें लकवा मार गया है, पर सच्चाई यह है कि उन्हें भी पता नहीं कि हुआ क्या है. झोलाछाप डॉक्टर ने जो बता दिया बस उसे ही आज तक मानते आ रहे हैं. ना तो कभी ठीक तरीके से जांच हुई है और ना ही सरकार की किसी योजना का लाभ ही मिल पाया है.

इंट्रो- सेन्हा प्रखंड के अलोदी पंचायत अंतर्गत ऊरु चटकपुर गांव के आदिम जनजाति परिवार के तीन सदस्य दिव्यांग हैं, परंतु तीनों का ना तो दिव्यांग का प्रमाण पत्र आज तक बना है, ना ही आयुष्मान भारत कार्ड. ऐसे हालात में इनकी लाचारगी को समझा जा सकता है. आदिम जनजाति परिवार के इन सदस्यों के पास इतने पैसे भी नहीं की इन तीनों दिव्यांग बच्चों का किसी अस्पताल में ले जाकर ठीक तरीके से इलाज भी करा पाएं. स्वर्गीय सुकरा असुर के पुत्र रामदेव असुर, पुत्री कतनी असुर और भतीजा राहुल असुर दिव्यांग है. इसमें से रामदेव असुर और कतनी असुर पैर से दिव्यांग है. दोनों लड़खड़ा कर चलते हैं. ठीक तरीके से चल भी नहीं पाते. वहीं राहुल असुर बोलने और सुनने में सक्षम नहीं है. हालात ऐसे हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच ही नहीं पा रही. कभी स्वास्थ्य विभाग की टीम या प्रशासनिक टीम ने वहां पहुंचकर उनकी सुध लेने की कोशिश नहीं की. इस मामले में सिविल सर्जन डॉक्टर विजय कुमार का कहना है कि वे स्वास्थ्य विभाग की टीम को वहां भेजेंगे, जांच कराएंगे, इलाज कराएंगे. आवश्यकता अनुसार दिव्यांग प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराया जाएगा. बहरहाल देखना यह है कि विभाग का यह दावा और प्रयास कब तक पूरा हो पाता है.


Body:सेन्हा प्रखंड के अलोदी पंचायत अंतर्गत ऊरु चटकपुर गांव के आदिम जनजाति परिवार के तीन सदस्य दिव्यांग हैं, परंतु तीनों का ना तो दिव्यांग का प्रमाण पत्र आज तक बना है, ना ही आयुष्मान भारत कार्ड. ऐसे हालात में इनकी लाचारगी को समझा जा सकता है. आदिम जनजाति परिवार के इन सदस्यों के पास इतने पैसे भी नहीं की इन तीनों दिव्यांग बच्चों का किसी अस्पताल में ले जाकर ठीक तरीके से इलाज भी करा पाएं. स्वर्गीय सुकरा असुर के पुत्र रामदेव असुर, पुत्री कतनी असुर और भतीजा राहुल असुर दिव्यांग है. इसमें से रामदेव असुर और कतनी असुर पैर से दिव्यांग है. दोनों लड़खड़ा कर चलते हैं. ठीक तरीके से चल भी नहीं पाते. वहीं राहुल असुर बोलने और सुनने में सक्षम नहीं है. हालात ऐसे हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच ही नहीं पा रही. कभी स्वास्थ्य विभाग की टीम या प्रशासनिक टीम ने वहां पहुंचकर उनकी सुध लेने की कोशिश नहीं की. इस मामले में सिविल सर्जन डॉक्टर विजय कुमार का कहना है कि वे स्वास्थ्य विभाग की टीम को वहां भेजेंगे, जांच कराएंगे, इलाज कराएंगे. आवश्यकता अनुसार दिव्यांग प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराया जाएगा. बहरहाल देखना यह है कि विभाग का यह दावा और प्रयास कब तक पूरा हो पाता है.


Conclusion:आदिम जनजाति समुदाय के तीन दिव्यांग आज भी सरकार की योजना से वंचित हैं. इन तक सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाया है.
Last Updated : Aug 16, 2019, 3:51 PM IST
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