लातेहार: समाज में हुनरमंद इंसानों की कमी नहीं है. कमी सिर्फ यह है कि हुनरमंद आज भी गुमनामी के अंधेरे में जी रहे हैं. ऐसे ही एक इंसान हैं सरदूल सिंह (Vaidya Sardul Singh of Latehar) , जो लातेहार और लोहरदगा जिले के बॉर्डर पर स्थित अमवाटीकर सांगडीह गांव में रहते हैं. सरदूल सिंह के पास प्राकृतिक उपचार की ऐसी कला है, जिसके सहारे वे हड्डी से संबंधित रोगों का इलाज (Natural treatment of bone related diseases) काफी आसानी से कर देते हैं. सरदूल सिंह की यह कला ग्रामीणों के लिए वरदान बना हुआ है. दूर-दूर से ग्रामीण अपना इलाज कराने उनके पास आते हैं और पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटते हैं.
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दरअसल, सरदूल सिंह झारखंड के विख्यात वैद्य बंधन सिंह खेरवार के रिश्तेदार हैं. बंधन सिंह खेरवार वही वैद्य हैं, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी तक का इलाज किया है. बंधन सिंह खेरवार से ही सरदूल सिंह ने प्राकृतिक उपचार की कला सीखी और लोगों का इलाज करना आरंभ किया. सरदूल के इस काम में उनकी पत्नी गायत्री देवी भी पूरा सहयोग करती है. गायत्री को भी प्राकृतिक जड़ी बूटियों की पूरी पहचान हो गई है और इलाज की पद्धति को भी गायत्री देवी पूरी तरह सीख चुकी है. दोनों पति-पत्नी के इस इलाज की कला का लाभ ग्रामीणों को मिल रहा है.
फिल्मी कहानी की तरह रहा है सरदूल का जीवन: सरदूल सिंह का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं रहा है. पोस्ट ग्रेजुएट तक की डिग्री हासिल करने के बाद भी कोई बेहतर नौकरी नहीं मिलने के कारण सरदूल सिंह होमगार्ड के जवान के रूप में काम करने लगे थे. लगभग 5 साल पहले एक दुर्घटना में सरदूल सिंह का पैर टूट गया. इसके बाद सरदूल सिंह ने कई बड़े डॉक्टरों से अपना इलाज कराया लेकिन, उनका पैर ठीक नहीं हो पा रहा था. रिम्स में 3 महीने इलाज के बाद भी जब वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए तो उनके रिश्तेदारों ने सरदूल को बंधन सिंह खेरवार के पास इलाज कराने की सलाह दी. सरदूल जड़ी-बूटी पर बिल्कुल ही विश्वास नहीं करते थे. ऐसे में वह वहां जाने से इनकार करते रहे लेकिन, बंधन सिंह खेरवार सरदूल की पत्नी गायत्री देवी के मौसा लगते हैं. ऐसे में पत्नी और अन्य रिश्तेदारों के समझाने के बाद सरदूल अपना इलाज कराने बंधन सिंह के पास पहुंचे. वहां लगभग एक माह के इलाज के बाद सरदूल सिंह पूरी तरह स्वस्थ हो गए, जिससे उनके मन में प्राकृतिक उपचार के प्रति विश्वास बढ़ गया.
बंधन सिंह ने सिखाई इलाज की पद्धति: इलाज के बाद जब सरदूल सिंह पूरी तरह स्वस्थ हो गए तो बंधन सिंह खेरवार ने सरदूल सिंह को इस विद्या को सीखने की सलाह दी. सरदूल सिंह पढ़ने लिखने में होशियार थे, इस कारण उन्होंने इस विद्या को काफी तेजी से सीख लिया. इलाज की पद्धति सीखने के बाद सरदूल अपने गांव वापस लौटे थे. इसी दौरान उनके एक मित्र का पैर टूट गया था. सरदूल ने सबसे पहले अपने मित्र महेंद्र सिंह का इलाज किया. लगभग 1 माह के इलाज के बाद महेंद्र सिंह का पैर पूरी तरह ठीक हो गया. उसके बाद सरदूल सिंह के बारे में आसपास के लोग भी जानने लगे और अपना इलाज कराने लगे.
दर्जनों का हो चुका है सफल इलाज: इलाज की प्राकृतिक पद्धति की जानकारी हासिल होने के बाद सरदूल सिंह ने अपने गांव और आसपास के गांव के दर्जनों रोगियों का पूरी तरह सफल इलाज किया है. सरदूल के बारे में दूर के लोग भी जानने लगे और अपना इलाज कराने आने लगे. मनिका प्रखंड के मटलौंग गांव के रहने वाले अशोक कुमार भारती ने बताया कि उनकी 85 वर्षीय वृद्ध मां का भी सरदूल सिंह ने हड्डी का सफल उपचार किया है. महेंद्र उरांव ने कहा कि उनके पैर की हड्डी टूट गई थी. कई जगह इलाज के बावजूद जब ठीक नहीं हुआ तो सरदूल सिंह ने प्राकृतिक उपचार से उन्हें स्वस्थ कर दिया. अरविंद कुजुर ने कहा कि उनके चेहरे पर लकवा मार दिया था परंतु सरदूल सिंह ने जड़ी बूटी से लकवा का इलाज कर दिया.
ग्रामीणों को मिल रहा है पूरा लाभ: गांव के सुजीत सिंह ने बताया कि गांव के लोगों को वैध जी का पूरा लाभ मिलता है. गांव के लोगों को इलाज के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं होती. हालांकि, लातेहार सिविल सर्जन डॉक्टर दिनेश प्रसाद ने कहा कि कई लोग नेचुरोपैथी से ग्रामीणों का इलाज करते हैं, जिससे लोग स्वस्थ भी हो जाते हैं. परंतु सबसे पहले विशेषज्ञ चिकित्सकों से ही इलाज कराना चाहिए.
फटे हाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं सरदूल: सैकड़ों लोगों का उपचार कर दुख दर्द को दूर करने वाले सरदूल सिंह आज भी फटे हाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं. मिट्टी के छोटे से घर में अपना जीवन यापन कर रहे सरदूल सिंह ने घर के एक कमरे में ही छोटा सा अस्पताल खोल रखा है. जहां मरीजों को मुफ्त में रहने की सुविधा भी देते हैं. जरूरत इस बात की है कि नेचुरोपैथी कला के माध्यम से इलाज करने वाले लोगों को भी सरकार बढ़ावा दें ताकि गरीब से गरीब लोगों को भी स्वास्थ्य का लाभ मिल सके.