लातेहार: लातेहार जिला मुख्यालय में बुधवार को आदिवासी समाज की ओर से रैली निकालकर विरोध प्रदर्शन किया गया. जमीन लूट के खिलाफ आक्रोशित रैली प्रदर्शन कार्यक्रम के तहत सैकड़ों की संख्या में उपस्थित आदिवासियों ने लातेहार में प्रस्तावित तूवेद कोल ब्लॉक और वन हरदी कोल ब्लॉक का विरोध करते हुए कहा कि किसी भी सूरत में अपनी जमीन कोल ब्लॉक के लिए नहीं देंगे. इस रैली में राज्य के बड़े आदिवासी नेता सह पूर्व मंत्री देव कुमार धान मुख्य रूप से उपस्थित रहे.
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दरअसल, लातेहार के तूवेद कोलियरी और वन हरदी कोलियरी को शुरू करने के लिए भूमि अधिग्रहण करना शुरू किया गया है. दोनों कोलियरी के खुलने से बड़ी संख्या में लोगों की जमीन जा रही है. कई लोगों के विस्थापित होने की भी संभावना है, परंतु ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनियों की ओर से अधिग्रहण और विस्थापन के बाद पुनर्वास को लेकर ना तो ग्रामीणों के साथ कोई सकारात्मक बैठक की गई है और ना ही कोई स्पष्ट बात ही कही जा रही है. ग्रामीण किसी भी सूरत में अपनी जमीन कंपनी को देने के लिए तैयार नहीं है. इसके बावजूद कंपनी बाहरी दलालों के साथ मिलकर फर्जी ग्राम सभा के माध्यम से ग्रामीणों की जमीन हड़पने का प्रयास कर रही है. कंपनी के इसी नीति के खिलाफ ग्रामीण एकजुट होकर लातेहार जिला मुख्यालय में विरोध प्रदर्शन और घेराव कार्यक्रम कर रहे हैं.
पूर्व मंत्री देव कुमार धान ने किया विरोध का समर्थन: आदिवासी नेता सह पूर्व मंत्री देव कुमार धान विरोध रैली में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. उन्होंने विरोध रैली का समर्थन करते हुए कहा कि बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां ग्रामीणों से जमीन तो ले ली जा रही है लोकिन, ग्रामीणों के पुनर्वास को लेकर कंपनियों के पास कोई प्लान नहीं है. आज तक जितने भी ग्रामीण विस्थापित हुए उनमें अधिकांश दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं. यह स्थिति लातेहार में भी ना बन जाए इसलिए विरोध प्रदर्शन जारी है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा लातेहार और लोहरदगा जिले में भूमि सर्वे में भी भारी गड़बड़ी की गई है. जिससे ग्रामीण काफी परेशान है. इसी व्यवस्था खिलाफ आज प्रदर्शन किया जा रहा है .
जमीन नहीं देने का लिया निर्णय: ग्रामीणों ने कहा कि वे लोग किसी भी कीमत पर अपनी जमीन को कंपनियों को नहीं देंगे. कंपनी के लोग दलालों के माध्यम से ग्रामीणों का जमीन हड़पना चाह रहे हैं. भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आदिवासियों की विशाल रैली कई मायने में महत्वपूर्ण बताई जा रही है. कंपनियों की दोहरे नीति के करण ग्रामीण कंपनियों से दूर हो गए हैं. ग्रामीण अब जान देंगे जमीन नहीं देंगे का नारा लगा रहे हैं.