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जिंदगी के लिए जंग लड़ रहा खूंटी का डेविड, ग्लेशियर हादसे में घायल, शादी की मान्यता के लिए आया था कमाने - Marriage recognition khunti

23 अप्रैल को चमोली हादसे में जान गंवाने वाले 12 युवकों में से एक डेविड कंडुलना जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा है. डेविड ने पत्नी मंजू से अपनी शादी को मान्यता दिलाने का वादा कर उत्तराखंड जाकर कमाने का फैसला किया, ताकि पूरे गांव को भोज करा सके और उन्हें गांव वालों से ताने ना मिलें लेकिन ग्लेशियर हादसे ने मंजू के सपने को तहस-नहस कर दिया.

David Kandulna is fighting for life, Injured in chamoli glacier accident
खूंटी: जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहा डेविड कंडुलना, चमोली में ग्लेशियर हादसे का शिकार दो भाई
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Published : Apr 27, 2021, 8:15 AM IST

खूंटी: समाज में अपनी शादी को मान्यता दिलवाने के लिए डेविड कंडुलना पत्नी मंजू से अलग होकर उत्तराखंड काम करने तो निकला लेकिन उसे क्या पता था कि आगे एक आफत उसका इंतजार कर रही है. डेविड ने मंजू के साथ दो साल लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी की थी लेकिन उनकी शादी को गांव वालों ने मान्यता नहीं दी.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

इसे भी पढ़ें- चमोली हादसे में रेस्क्यू ऑपरेशन जारी, अभी तक 15 शव बरामद

आर्थिक तंगी के चलते जब वो ग्रामीणों के लिए उत्सव का आयोजन नहीं कर पाया तो गांव वाले हर दिन उसे ताना देने लगे. इससे तंग आकर ही डेविड ने उत्तराखंड जाकर कमाने का फैसला लिया, ताकि वापस लौटकर गांव को भोज करा सके और समाज में अपनी शादी को वैध बना सके.

चमोली ग्लेशियर हादसे का हुआ शिकार

डेविड के लिए 23 अप्रैल का दिन आफत बनकर आया. इस दिन चमोली ग्लेशियर फटा था, जिसमें 12 युवकों की जान चली गई. इस हादसे में डेविड गंभीर रूप से घायल हो गया. आज डेविड जिंदगी के लिए अस्पताल में जंग लड़ रहा है. बताते चलें कि ग्रामीणों के लिए उत्सव का आयोजन करने के लिए कम से कम 1 लाख रुपये की आवश्यकता थी, ताकि उनकी शादी को कानूनी जामा पहनाया जा सके.

परंपरागत रूप से आदिवासी समाज में पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं, जो उन्हें अपने जीवनसाथी को चुनने का अधिकार भी देता है. इसके तहत एक लड़की अपने पुरुष साथी के साथ भी लिव-इन रिलेशनशिप जिसे 'ढुकू' विवाह कहा जाता है, इसमें प्रवेश कर सकती है.

एक दूसरे से शादी कर रहे हैं. आम तौर पर, इन महिलाओं को अपने रिश्ते की सामाजिक मान्यता नहीं होने के चलते अपने पुरुष साथी की संपत्ति और अन्य संपत्ति पर कानूनी अधिकार नहीं है और अगर वो इसे प्राप्त करना चाहती हैं, तो उन्हें पूरे गांव को भोज खिलाना जरूरी होता है.

मंजू का छलका दर्द

मंजू के मुताबिक, लगभग 2 दो साल के प्रेमालाप के बाद जब उसकी शादी हुई, तो ग्रामीणों ने उनकी शादी की वैधता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए. उन्होंने समाज में शादी को मान्यता दिलाने के लिए उत्सव आयोजित नहीं किया था. मंजू ने बताया कि जनवरी में शादी करने के बाद ग्रामीणों ने हमारी वैवाहिक स्थिति पर टिप्पणी करना शुरू कर दिया था.

हम अपने बच्चे के बारे में चिंतित थे, जो लगभग 1.5 साल का है, क्योंकि इस तरह के विवाह आदिवासी समाज में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त हैं लेकिन सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किए जाते हैं. इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, डेविड ने कुछ पैसे कमाने का फैसला किया ताकि वो ग्रामीणों के लिए सामूहिक भोज का आयोजन कर सके. मसीहदास मरकी और डेविड जो दोनों भाई हैं. हर रविवार को फोन करता था और उससे वादा करता था कि वह जल्द ही वापस आएगा और गांव वालों के लिए फेस्ट का आयोजन करेगा.

खूंटी: समाज में अपनी शादी को मान्यता दिलवाने के लिए डेविड कंडुलना पत्नी मंजू से अलग होकर उत्तराखंड काम करने तो निकला लेकिन उसे क्या पता था कि आगे एक आफत उसका इंतजार कर रही है. डेविड ने मंजू के साथ दो साल लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी की थी लेकिन उनकी शादी को गांव वालों ने मान्यता नहीं दी.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

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आर्थिक तंगी के चलते जब वो ग्रामीणों के लिए उत्सव का आयोजन नहीं कर पाया तो गांव वाले हर दिन उसे ताना देने लगे. इससे तंग आकर ही डेविड ने उत्तराखंड जाकर कमाने का फैसला लिया, ताकि वापस लौटकर गांव को भोज करा सके और समाज में अपनी शादी को वैध बना सके.

चमोली ग्लेशियर हादसे का हुआ शिकार

डेविड के लिए 23 अप्रैल का दिन आफत बनकर आया. इस दिन चमोली ग्लेशियर फटा था, जिसमें 12 युवकों की जान चली गई. इस हादसे में डेविड गंभीर रूप से घायल हो गया. आज डेविड जिंदगी के लिए अस्पताल में जंग लड़ रहा है. बताते चलें कि ग्रामीणों के लिए उत्सव का आयोजन करने के लिए कम से कम 1 लाख रुपये की आवश्यकता थी, ताकि उनकी शादी को कानूनी जामा पहनाया जा सके.

परंपरागत रूप से आदिवासी समाज में पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं, जो उन्हें अपने जीवनसाथी को चुनने का अधिकार भी देता है. इसके तहत एक लड़की अपने पुरुष साथी के साथ भी लिव-इन रिलेशनशिप जिसे 'ढुकू' विवाह कहा जाता है, इसमें प्रवेश कर सकती है.

एक दूसरे से शादी कर रहे हैं. आम तौर पर, इन महिलाओं को अपने रिश्ते की सामाजिक मान्यता नहीं होने के चलते अपने पुरुष साथी की संपत्ति और अन्य संपत्ति पर कानूनी अधिकार नहीं है और अगर वो इसे प्राप्त करना चाहती हैं, तो उन्हें पूरे गांव को भोज खिलाना जरूरी होता है.

मंजू का छलका दर्द

मंजू के मुताबिक, लगभग 2 दो साल के प्रेमालाप के बाद जब उसकी शादी हुई, तो ग्रामीणों ने उनकी शादी की वैधता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए. उन्होंने समाज में शादी को मान्यता दिलाने के लिए उत्सव आयोजित नहीं किया था. मंजू ने बताया कि जनवरी में शादी करने के बाद ग्रामीणों ने हमारी वैवाहिक स्थिति पर टिप्पणी करना शुरू कर दिया था.

हम अपने बच्चे के बारे में चिंतित थे, जो लगभग 1.5 साल का है, क्योंकि इस तरह के विवाह आदिवासी समाज में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त हैं लेकिन सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किए जाते हैं. इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, डेविड ने कुछ पैसे कमाने का फैसला किया ताकि वो ग्रामीणों के लिए सामूहिक भोज का आयोजन कर सके. मसीहदास मरकी और डेविड जो दोनों भाई हैं. हर रविवार को फोन करता था और उससे वादा करता था कि वह जल्द ही वापस आएगा और गांव वालों के लिए फेस्ट का आयोजन करेगा.

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